
भारत एक अनौखा गांव, ईमानदारी कि मिशाल के लिए है प्रसिद्ध।
पढ़ने में यह भले ही यह आपको किसी कहानी जैसा लगे, लेकिन भारत में एक ऐसी जगह सचमुच मौजूद है। हम बात कर रहे हैं नागालैंड के खूबसूरत खोनोमा विलेज की, जो सिर्फ अपनी सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि अपनी बेमिसाल ईमानदारी के लिए भी जाना जाता है। आइए जानते हैं, कैसे यह छोटा-सा गांव आज के इस भागदौड़ भरे जमाने में सालों से ईमानदारी की मिसाल पेश कर रहा है।खोनोमा गांव की गलियों में चलते हुए आपको सब्जियों की छोटी दुकानें या किताबें शॉप्स देखेंगे, लेकिन आपको वहां कोई दुकानदार नहीं नजर आएगा। ऐसे में, ग्राहक अपनी जरूरत का सामान खुद उठाता है और उसके बदले निर्धारित रकम पास रखे डिब्बे में डाल देता है। यह देखकर ऐसा लगता है मानो हम किसी और ही दुनिया में आ गए हों। यह व्यवस्था वर्षों से चली आ रही है और आज भी पूरी ईमानदारी के साथ निभाई जा रही है। खोनोमा के लोग इतने सादगीपूर्ण और भरोसेमंद हैं कि वे अपने घरों पर भी ताला नहीं लगाते। उन्हें विश्वास है कि उनका सामान सुरक्षित है और कोई चोरी नहीं करेगा। इस तरह का माहौल आपको शायद ही किसी और जगह देखने को मिले।
ईमानदारी का गांव कहना नहीं होगा गलत।
अगर खोनोमा को ‘ईमानदारी का गांव’ कहा जाए तो यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा। यहां के निवासियों का भरोसा इतना गहरा है कि दुकानदार अक्सर अपनी दुकानें बिना किसी की निगरानी में छोड़ देते हैं। ग्राहक अपनी जरूरत का सामान लेते हैं और खुद ही पेमेंट कर देते हैं। इस तरह के सिस्टम, जिसे अक्सर ‘ऑनेस्टी शॉप’ कहा जाता है, अन्य कई देशों में भी पाई जाती है, लेकिन खोनोमा में यह पूरी तरह से गांव की संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। यह भरोसा सिर्फ दुकानों तक सीमित नहीं है, बल्कि घरों में भी दिखाई देता है, जहां दरवाजे खुले रहते हैं, क्योंकि लोगों को यकीन है कि उनके सामान को कोई हाथ नहीं लगाएगा।
विश्वास पर चलती हैं दुकानें
खोनोमा गांव की गलियों में चलते हुए आपको सब्जियों की छोटी दुकानें या किताबें शॉप्स देखेंगे, लेकिन आपको वहां कोई दुकानदार नहीं नजर आएगा। ऐसे में, ग्राहक अपनी जरूरत का सामान खुद उठाता है और उसके बदले निर्धारित रकम पास रखे डिब्बे में डाल देता है। यह देखकर ऐसा लगता है मानो हम किसी और ही दुनिया में आ गए हों। यह व्यवस्था वर्षों से चली आ रही है और आज भी पूरी ईमानदारी के साथ निभाई जा रही है।
कारीगरी और शिल्प का है खजाना
यह गांव अपनी बांस और बेंत की कलाकारी के लिए भी मशहूर है। यहां के कारीगर अपनी निपुणता से ऐसी चीजें बनाते हैं जो न केवल खूबसूरत होती हैं बल्कि टिकाऊ भी होती हैं। यह हुनर पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रहा है।
एशिया का पहला ग्रीन विलेज
नागालैंड की सुरम्य पहाड़ियों में बसा खोनोमा गांव सिर्फ एक खूबसूरत पहाड़ी गांव नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की मिसाल बन चुका है। यही कारण है कि इसे एशिया का पहला “ग्रीन विलेज” कहा जाता है। पर यह पहचान इसे एक दिन में नहीं मिली, इसके पीछे है गांववालों की एकजुटता, दूरदर्शिता और प्रकृति के प्रति गहरी निष्ठा। 1990 के दशक की बात है, जब खोनोमा के आस-पास के जंगलों में अंधाधुंध शिकार और पेड़ों की कटाई शुरू हो गई थी
घरों में भी ताले नहीं लगते है।
खोनोमा के लोग इतने सादगीपूर्ण और भरोसेमंद हैं कि वे अपने घरों पर भी ताला नहीं लगाते। उन्हें विश्वास है कि उनका सामान सुरक्षित है और कोई चोरी नहीं करेगा। इस तरह का माहौल आपको शायद ही किसी और जगह देखने को मिले।
नैतिकता कि मजबूत जड़
यह ईमानदारी और अनुशासन यहां की अंगामी जनजाति से जुड़ी परंपरा ‘केन्यो’ से आता है। इसमें 154 तरह के नियम और वर्जनाएं शामिल हैं जो लोगों को प्रकृति से प्रेम करना, दूसरों की इज्जत करना और गलत कामों से दूर रहना सिखाते हैं। यही कारण है कि गांव में अनुशासन और नैतिकता की गहरी जड़ें हैं।
➡️निष्कर्ष
नागालैंड की यह गांव सिर्फ एक गांव ही नही बल्कि हमारे लिए एक आईना है। खोनोमा गांव हमें सिखाता है कि विश्वास और ईमानदारी से भरी एक दुनिया आज भी संभव है। यह गांव सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि एक सबक है, जो हमें याद दिलाता है कि इंसानियत और आपसी भरोसा आज भी सबसे बड़ी दौलत हैं।