
अवैध निवेश का ख़ौफ़नाक कारोबार: पश्चिम यूपी से दुबई तक फैला धोखाधड़ी का जाल
📍मुजफ्फरनगर🗓️ 15 अक्टूबर 2025✍️आसिफ़ ख़ान
ईडी की हालिया छापेमारी ने एक बार फिर भारत के फॉरेक्स ट्रेडिंग घोटालों की सच्चाई उजागर कर दी है। लविश चौधरी उर्फ़ नवाब अली, जो अब दुबई में बैठा है, ने निवेशकों को 5-6% मासिक रिटर्न का सपना दिखाकर ₹400 करोड़ से ज़्यादा की ठगी की। QFX और YFX जैसी कंपनियों के ज़रिए उसने एक अंतरराष्ट्रीय पॉन्ज़ी नेटवर्क बनाया, जिसका मकसद भोले-भाले निवेशकों की कमाई को हवाला और क्रिप्टो के रास्ते दुबई भेजना था। ईडी की यह कार्रवाई न केवल धोखेबाज़ नेटवर्क को बेनक़ाब करती है बल्कि आम जनता को चेतावनी भी देती है — तेज़ मुनाफ़े की चाह कभी-कभी पूरे जीवन की बचत को डुबो देती है।
धोखे का जाल: फ़ॉरेक्स के नाम पर पॉन्ज़ी स्कीम
मुजफ्फरनगर की सुबह जब ईडी की गाड़ियाँ नरा गाँव की गलियों में पहुँचीं, तो लोग समझ नहीं पाए कि यह सिर्फ़ एक छापा नहीं, बल्कि एक पूरे वित्तीय षड्यंत्र की जाँच की शुरुआत है।
लविश चौधरी, जो खुद को “क्वांटम फॉरेक्स एक्सपर्ट” बताता था, असल में एक बेहद चालाक फ्रॉड मास्टरमाइंड निकला। उसने QFX Trade Ltd., YFX और BotBro जैसी फर्मों के ज़रिए मासिक 6% रिटर्न का वादा किया। सोचिए — जब सरकारी बैंक भी सालाना इतना ब्याज देने में हिचकिचाते हैं, तो क्या यह तर्कसंगत था? मगर जब लोगों ने अपने आस-पास वालों को मुनाफ़ा कमाते देखा, तो भरोसा बढ़ता चला गया।
असलियत में, यह एक क्लासिक पॉन्ज़ी स्कीम थी — नए निवेशकों के पैसे से पुराने निवेशकों को भुगतान, ताकि “विश्वास” का भ्रम बना रहे। यह खेल तब तक चलता है, जब तक नए निवेशक आते रहते हैं। जैसे ही रुकावट आती है, पूरा साम्राज्य गिर जाता है — और यही हुआ।
लविश चौधरी का वेस्ट यूपी से दुबई तक का सफ़र
घासीपुरा, मुजफ्फरनगर का रहने वाला यह नौजवान दुबई पहुँचकर खुद को एक “ग्लोबल वेंचर कैपिटलिस्ट” के रूप में पेश करने लगा। सोशल मीडिया पर उसने अपने निजी जेट, महंगी कारों और दुबई के आलीशान इवेंट्स की तस्वीरें डालकर युवाओं को लुभाया।
लोगों को लगा, “यह लड़का तो कमाल कर गया।” मगर हक़ीक़त यह थी कि वो दूसरों की मेहनत की कमाई से यह तमाशा कर रहा था।
उसके एजेंट्स — नवाब हसन, हरेंदर पाल सिंह और कई अन्य — छोटे शहरों में सेमिनार आयोजित करते, “ट्रेडिंग ट्रेनिंग” के नाम पर लोगों से निवेश करवाते, और बदले में छोटा कमीशन पाते। यही एजेंट्स हज़ारों लोगों को इस जाल में फँसाते गए।
ईडी की छापेमारी में ₹94 लाख नकद और कई डिजिटल एसेट्स जब्त होना यह साबित करता है कि यह नेटवर्क आज भी एक्टिव था।
मनी लॉन्ड्रिंग का नेटवर्क: शेल कंपनियाँ और USDT का जादू
लविश ने पैसे की हेराफेरी इतनी चालाकी से की कि सामान्य जांच एजेंसियाँ भी चकरा जाएँ।
निवेशकों से आने वाला पैसा पहले NPay Box Pvt Ltd., Tiger Digital Services, Capter Money Solutions जैसी शेल कंपनियों में जमा होता।
फिर वही पैसा अलग-अलग खातों में घुमाया जाता ताकि उसका “ट्रेस” मिट जाए — इसे “लेयरिंग” कहा जाता है।
अंत में, रुपयों को USDT (Tether) नामक वर्चुअल करेंसी में बदलकर दुबई भेज दिया जाता।
क्रिप्टो की यह दुनिया नियमन से बाहर है, इसलिए यह काले धन को सफ़ेद करने का सबसे आसान रास्ता बन गई।
ईडी की जाँच में यह भी सामने आया कि इस पैसे से दुबई और भारत में 45 से ज़्यादा प्रॉपर्टी खरीदी गईं, लग्ज़री कारें ली गईं, और “बिजनेस सेमिनार” के नाम पर भव्य पार्टियाँ की गईं।
ईडी की कार्रवाई: सच की परतें खुलती गईं
शुरुआत में ठगी की राशि ₹210 करोड़ बताई जा रही थी, मगर जांच के बाद ईडी ने इसे ₹400 करोड़ तक पहुँचता पाया।
फ़रवरी से अक्टूबर 2025 के बीच हुई कार्रवाई में:
₹170 करोड़ की चल संपत्ति फ्रीज़
45 अचल संपत्तियाँ कुर्क
दो प्रमुख एजेंट गिरफ्तार
दुबई में बैठे लविश चौधरी के ख़िलाफ़ इंटरपोल लुकआउट नोटिस जारी
ईडी ने अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से मदद मांगी है ताकि इस भगोड़े को भारत लाया जा सके।
यह सिर्फ़ एक व्यक्ति का केस नहीं, बल्कि उस प्रणाली का आईना है जो तेज़ मुनाफ़े के लालच में अपने ही नागरिकों को गुमराह कर रही है।
समाज का आईना: क्यों फँसते हैं लोग?
यह सवाल सबसे अहम है — आखिर लोग क्यों बार-बार ऐसे स्कैम में फँसते हैं?
शायद इसलिए कि हमारे समाज में “जल्दी अमीर बनने” की मानसिकता गहरी हो गई है।
कोई अपने पड़ोसी को नई कार लेते देख सोचता है — “मुझे भी यह करना चाहिए।”
फिर चाहे रास्ता कितना भी संदिग्ध क्यों न हो।
आर्थिक शिक्षा की कमी, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखावटी सफलता, और लोगों की “फियर ऑफ मिसिंग आउट” (FOMO) इस ठगी को आसान बना देते हैं।
यह केस सिर्फ़ लविश चौधरी के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि उस मानसिकता के ख़िलाफ़ है जो बिना रिस्क समझे पैसा लगाने को तैयार रहती है।
वैकल्पिक दृष्टिकोण: सख़्ती के साथ शिक्षा भी
ईडी की कार्रवाई निस्संदेह ज़रूरी है, लेकिन केवल दंड से समाज नहीं सुधरता।
सरकार और नियामक संस्थाओं को चाहिए कि वे वित्तीय साक्षरता (Financial Literacy) को स्कूली स्तर से पढ़ाएँ।
जब लोग जानेंगे कि “रिटर्न जितना बड़ा, रिस्क उतना ऊँचा,” तो शायद ऐसे फ्रॉड की गुंजाइश कम रह जाएगी।
यह केस आने वाले निवेशकों के लिए चेतावनी है — और नीति-निर्माताओं के लिए एक सबक।
नज़रिया
लविश चौधरी का फ़ॉरेक्स फ़्रॉड भारत के लिए एक आर्थिक सबक है।
यह सिर्फ़ मनी लॉन्ड्रिंग का केस नहीं, बल्कि समाज में बढ़ते लालच, तकनीक के दुरुपयोग, और नियामकीय कमज़ोरियों की कहानी है।
जब तक ऐसे मामलों में त्वरित न्याय और वित्तीय शिक्षा का संयोजन नहीं होगा, तब तक यह “फ़ॉरेक्स फ़्रॉड का जिन्न” बार-बार लौटेगा।
ईडी की यह कार्रवाई सही दिशा में एक मज़बूत क़दम है — उम्मीद यही है कि अगला अध्याय “वसूली” और “इंसाफ़” का होगा।