
पुण्यतिथि 17 सितंबर के अवसर पर
मुंबई। हिन्दी फिल्मों में जब भी टाइटल गीतों का जिक्र होता है, गीतकार हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) का नाम सबसे पहले लिया जाता है । वैसे तो हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) ने हर तरह के गीत लिखे लेकिन फिल्मों के टाइटल पर गीत लिखने में उन्हें महारत हासिल थी।
हिन्दी फिल्मों के स्वर्ण युग के दौरान टाइटल गीत लिखना बड़ी बात समझी जाती थी । निर्माताओं को जब भी टाइटल गीत की जरूरत होती थी तब हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) से गीत लिखवाने की गुजारिश की जाती थी। उनके लिखे टाइटल गीतों ने कई फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) के लिखे कुछ टाइटल गीत हैं.. दीवाना मुझको लोग कहें ,दिल एक मंदिर है, रात और दिन दीया जले, तेरे घर के सामने इक घर बनाऊंगा, तेरे घर के सामने, ऐन इवनिंग इन पेरिस, गुमनाम है कोई बदनाम है कोई, दो जासूस करें महसूस आदि।
15 अप्रैल 1922 को जन्में हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) मूल नाम इकबाल हुसैन (Iqbal Husain) ने जयपुर (Jaipur) में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद अपने दादा फिदा हुसैन (Fida Hussain) से उर्दू (Urdu) और फारसी (Persian) की तालीम हासिल की। बीस वर्ष का होने तक उनका झुकाव शेरो-शायरी की तरफ होने लगा और वह छोटी-छोटी कविताएं लिखने लगे । वर्ष 1940 में नौकरी की तलाश में हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) ने मुंबई (Mumbai) का रूख किया और आजीविका चलाने के लिए वहां बस कंडक्टर के रूप में नौकरी करने लगे।
इस काम के लिये उन्हे मात्र 11 रुपये प्रति माह वेतन मिला करता था। इस बीच उन्होंने मुशायरों के कार्यक्रम में भाग लेना शुरू किया। उसी दौरान एक कार्यक्रम में पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) उनके गीत को सुनकर काफी प्रभावित हुये और उन्होने अपने पुत्र राजकपूर (Raj Kapoor) को हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) से मिलने की सलाह दी।
राजकपूर उन दिनों अपनी फिल्म ..बरसात ..के लिये गीतकार (lyricist) की तलाश कर रहे थे। उन्होंने हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) को मिलने का न्योता भेजा। राजकपूर से हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) की पहली मुलाकात .रायल ओपेरा हाउस. में हुयी और उन्होने अपनी फिल्म बरसात के लिये उनसे गीत लिखने की गुजारिश की। इसे महज संयोग ही कहा जायेगा कि फिल्म बरसात से ही संगीतकार शंकर जयकिशन (Shankar Jaikishan) ने भी अपने सिने कैरियर की शुरूआत की थी । राजकपूर के कहने पर शंकर जयकिशन ने हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) को एक धुन सुनाई और उसपर उनसे गीत लिखने को कहा।
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धुन के बोल कुछ इस प्रकार थे
..अंबुआ का पेड़ है वहीं मुंडेर है ..
आजा मेरे बालमा काहे की देर है ..
शंकर जयकिशन (Shankar Jaikishan) की इस धुन को सुनकर हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) ने गीत
लिखा..
जिया बेकरार है छाई बहार है
आजा मेरे बालमा तेरा इंतजार है ..
साल 1949 में प्रदर्शित फिल्म बरसात में अपने इस गीत.. की कामयाबी के बाद हसरत जयपुरी गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। बरसात की कामयाबी के बाद राजकपूर. हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) और शंकर-जयकिशन की जोडी ने कई फिल्मो मे एक साथ काम किया। हसरत जयपुरी की जोड़ी राजकपूर के साथ साल 1971 तक कायम रही।
संगीतकार जयकिशन (Jaikishan) की मौत और फिल्म मेरा नाम जोकर और कल आज और कल की बॉक्स आफिस पर नाकामयाबी के बाद राजकपूर ने हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) की जगह आनंद बख्शी को अपनी फिल्मों के लिये लेना शुरू कर दिया। हालांकि अपनी फिल्म ..प्रेम रोग ..के लिये राजकपूर ने एक बार फिर से हसरत जयपुरी को मौका देना चाहा लेकिन बात नही बनी । इसके बाद हसरत जयपुरी ने राजकपूर के लिये साल 1985 मे प्रदर्शित फिल्म राम तेरी गंगा मैली मे ..सुन साहिबा सुन..गीत लिखा जो काफी लोकप्रिय हुआ।
हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) को दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । हसरत जयपुरी वल्र्ड यूनिवर्सिटी टेबुल के डाक्ट्रेट अवार्ड और उर्दू कान्फ्रेंस में जोश मलीहाबादी अवार्ड से भी सम्मानित किये गये । फिल्म मेरे हुजूर में हिन्दी और ब्रज भाषा में रचित गीत ..झनक झनक तोरी बाजे पायलिया .. के लिये वह अम्बेडकर अवार्ड से सम्मानित किये गये। हसरत जयपुरी ने यूं तो कई रूमानी गीत लिखे लेकिन असल जिदंगी में उन्हें अपना पहला प्यार नही मिला।
बचपन के दिनों में उनका राधा नाम की हिन्दू लड़की से प्रेम हो गया था लेकिन उन्होंने अपने प्यार का इजहार नहीं किया। उन्होंने लेटर के जरिए से अपने प्यार का इजहार करना चाहा लेकिन राधा को देने की हिम्मत वह नहीं जुटा पाए। बाद में राजकपूर ने उस में लिखी कविता ..ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज ना होना .. का इस्तेमाल अपनी फिल्म..संगम ..के लिए किया।
हसरत जयपुरी (Hasrat Jaipuri) ने तीन दशक लंबे अपने सिने कैरियर में 300 से अधिक फिल्मों के लिये लगभग 2000 गीत लिखे। अपने गीतों से कई वर्षो तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाला यह शायर और गीतकार 17 सिंतबर 1999 को संगीतप्रेमियों को अपने एक गीत की इन पंक्तियों …
तुम मुझे यूं भूला ना पाओगे…
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे ..
की स्वर लहरियों में छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह दिया।