
धर्म की प्रभावना से व्यक्ति को आत्मीय शांति होती है प्राप्त
क्षमा भाव रखन वाले जीवन को सफल बना सकते है
मुरादाबाद। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी (TMU), मुरादाबाद में पर्वाधिराज दसलक्षण महामहोत्सव (Parvadhiraj Dasalakshana Mahamahotsav) के दूसरे दिन उत्तम मार्दव पर रिद्धि-सिद्धि भवन (Riddhi-Siddhi Bhavan) आस्था के सागर में डूबा नज़र आया। प्रतिष्ठाचार्य ऋषभ जैन शास्त्री (Rishabh Jain Shastri) के सानिध्य में विधि-विधान से पूजा-अर्चना हुई तो दूसरी ओर भोपाल से आई सुनील सरगम एंड पार्टी ने संगीतमय प्रस्तुति से सबका मन मोह लिया। इस मौके पर कुलाधिपति सुरेश जैन, फर्स्ट लेडी वीना जैन, जीवीसी मनीष जैन,ऋचा जैन, एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर अक्षत जैन की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। दूसरी ओर सीसीएसआईटी के छात्रों ने ऑडी में सांस्कृतिक कार्यक्रम में जिनशासन की महिमा में एक शाम वैराग्य के नाम धार्मिक नाटक प्रस्तुति दी।
इससे पूर्व कुलाधिपति सुरेश जैन, स्टील इलेक्ट्रॉनिक्स प्रा.लि. के सिस्टम एनालिटिक सौरभ सिंघई ने बतौर मुख्य अतिथि, प्रो. आरके द्विवेदी, प्रो. आशेन्द्र कुमार सक्सेना आदि ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके सांस्कृतिक संध्या का श्रीगणेश किया।
रिद्धि-सिद्धि भवन (Riddhi-Siddhi Bhavan) में उत्तम मार्दव पर रजत कलश से शांतिधारा करने का सौभाग्य कुलाधिपति परिवार से जीवीसी मनीष जैन और एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर अक्षत जैन को मिला, जबकि श्रीजी का प्रथम स्वर्ण कलश से अंकित जैन, द्वितीय स्वर्ण कलश से शुभांश जैन, तृतीय कलश से हर्षित जैन, और चतुर्थ स्वर्ण कलश से अमन जैन को अभिषेक करने का सौभाग्य मिला। श्रीजी की स्वर्णकलश से शांति धारा करने का सौभाग्य हर्ष, आर्यन, आगम, मोहांश और हर्षित जैन आदि को प्राप्त हुआ। साथ ही अष्ट प्रातिहार्य का सौभाग्य अष्ट कन्याओं- अवधि, विशाखा, आस्था, सोम्मा, स्तुति, कनन, कनिष्का और प्रिया जैन ने प्राप्त किया तो द्रव्य दान का पुण्य डॉ. एसके जैन ने कमाया।
मंगलाचरन में भव से पार लगा प्रभु…, करके करले करले आदिनाथ का ध्यान तू कर ले… आदि पर सीसीएसआईटी के स्टुडेंट्स ने मनमोहनी प्रस्तुति दी। जिनशासन की महिमा पर केंद्रित- एक शाम वैराग्य के नाम नाटक में सीसीएसआईटी के छात्र-छात्राओं ने अपनी अमिट छाप छोड़ी। नाटक में पात्रों ने झूठ और फरेब पर करारी चोट की। नाटक के माध्यम से सभी पात्र यह संदेश देने में सफल रहे कि यदि धर्म का अंतर्मन से पालन होता है तो समृद्धि, शांति और संस्कृति का निर्माण होता है। यदि हम धर्म का पालन अप्रभावी तरीकों से होता हैं या धर्म की अवहेलना होती है तो जिनशासन की महिमा- एक शाम वैराग्य के नाम सरीखी कथा देखने और सुनने को मिलती है।
लाट नगर के राजा जिंदत्, पुत्री नीली, सेठ समुद्र दत्त और पुत्र सागर दत्त सरीखे पात्रों में सीसीएसआईटी के छात्र-छात्राओं की संवाद अदायगी और परिधानों ने नाटक को जीवंतता प्रदान की है। नाटक में नरेटर की भूमिका फैकल्टी आदित्य जैन ने निभाई है। सीसीएसआईटी की ओर से फैकल्टी डॉ. शंभू भारद्वाज, डॉ. आरसी त्रिपाठी, डॉ. संदीप वर्मा, नवनीत विश्नोई, डॉ. रंजना शर्मा, रूपल गुप्ता, नवनीत विश्नोई द्वितीय, डॉ. शालिनी, ज्योति लाभ, मनीष तिवारी आदि मौजूद रहे।
सुनील सरगम एंड पार्टी की ओर से प्रस्तुत सुरमय भजनों जैसे- तेरी वाणी का इंतज़ार करते है…, महामंत्र णमोकार का जिसने सुमिरन कर लिया…, पत्थर की प्रतिमा प्यारी बड़ी शक्ति है तेरी भक्ति में… आदि पर रिद्धि सिद्धि भवन झूम उठा। श्रावक-श्राविकाएं भक्तिरस से सराबोर नजर आए। भक्ति रस में लीन कुलाधिपति सुरेश जैन ने श्रावक-श्राविकाओं को प्रसिद्ध तीर्थस्थल अहिक्षेत्र चलने का प्रोग्राम साझा किया।
दैनिक शाह टाइम्स अपने शहर के ई-पेपर पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें
उत्तम मार्दव धर्म (Uttam Mardav Dharma) के तहत प्रतिष्ठाचार्य ऋषभ जैन शास्त्री (Rishabh Jain Shastri) के सानिध्य में नवदेवता पूजन, समुच्चय चौबीसी पूजन, सोलहकारण पूजन, पंचमेरु पूजन और दशलक्षण पूजा हुई, जिसमें सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने विधि-विधान से श्रीजी की आराधना की। प्रतिष्ठाचार्य ने दशलक्षण की महिमा के संग-संग पांच नित्य नियमों पर विस्तार से प्रकाश ड़ाला। उन्होंने बताया, णमोकार मंत्र के 27 जाप, सिर्फ दो बार भोजन, दिए गए मंत्र की माला जाप, बाजार की खाद्य वस्तुओं का त्याग करना चाहिए। शास्त्री जी ने भगवान की पूजा में स्थापना करने की प्रामाणिक विधि और 24 तीर्थंकरों को सिद्ध शिला पर विराजमान कर आगे की प्रक्रिया के बारे में भी विस्तार से समझाया। णमोकार मंत्र की पुरानी लिपि के बारे में भी बताया।
श्रावक-श्राविकाओं से बोले, उत्तम मार्दव धर्म का पालन करते हुए हमें आज घमण्ड नहीं करना है। धर्ममय माहौल में तत्वार्थसूत्र जैसे संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों वाली रचना के द्वितीय अध्याय को छात्रा अंशी जैन ने बड़े ही रोचक और भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया। इससे पूर्व उत्तम क्षमा की संध्या पर प्रतिष्ठाचार्य ने मानतूगाचार्य द्वारा रचित भक्तांमर स्त्रोत का पाठ का वाचन किया।
शास्त्री जी ने प्रसंग के जरिए बेवजह क्रोध नहीं करने की प्रेरणा दी। बोले, व्यक्ति में क्रोध का भाव जितना होगा उतनी ही बीमारियां होगी और जिस व्यक्ति में क्रोध का भाव कम होगा उसमें उतना अधिक स्वस्थ और संतुलन होगा। स्वभाव में परिवर्तन लाना ही धर्म है। धर्म की प्रभावना से व्यक्ति को आत्मीय शांति प्राप्त होती है। धर्म के माध्यम से क्षमा भाव उत्पन्न होते हैं। क्षमा भाव रखते हुए व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है।
रिद्धि-सिद्धि भवन में हुई पूजा-अर्चना में सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं के संग-संग ब्रहमचारिणी कल्पना दीदी, प्रो. आरके जैन, प्रो. एसके जैन, प्रो. विपिन जैन, विपिन जैन, डॉ. अर्चना जैन, रितु जैन, अहिंसा जैन, डॉ. नम्रता जैन, आरती जैन, डॉ. विनोद जैन, आशीष सिंघई, डॉ. रत्नेश जैन, डॉ. आदित्य विक्रम, आदित्य जैन, निकिता जैन, संजय जैन आदि की भी उपस्थिति रही।