~ मसूद हसन
बिहार में जाति आधारित जनगणना के पश्चात उत्तर प्रदेश में भी राजनीतिक पार्टियां और राजनीतिक मोर्चे इस मुद्दे को जोर से उठा रहे हैं और सरकार पर आक्रामक होते चले जा रहे हैं। विपक्षी पार्टियां सरकार से जोरदार मांग कर रही हैं कि जाति आधारित गणना अति आवश्यक है जिससे यह पता चल सके कि कौन किसके अधिकार पर कब्जा कर रखा है। बहुजन समाज पार्टी ने जाति गणना कराने की मांग फिर से उठाई है और मांग की है इस बारे में अविलम्ब कदम उठाने चाहिए। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि सामाजिक न्याय की लड़ाई सिर्फ समाजवादी पार्टी ही लड़ सकती है।
जातीय जनगणना होने से समाज के हर वर्ग को भागीदारी का अधिकार मिल सकेगा। सरकार जातीय जनगणना न कराके सभी को अधिकार और सम्मान से वंचित कर रही है। अखिलेश यादव ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी लोकतंत्र के लिये खतरा है। लाभार्थियों के सुविधाओं का राजनीतिक इस्तेमाल कर लोकतंत्र की निष्पक्षता को नष्ट कर रही है। कांग्रेस नेता जननायक राहुल गांधी ने एक बार फिर जातिगत जनगणना की वकालत की और कहा है कि जिस दिन ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदायों को अपनी आबादी का पता लग जायेगा उस दिन मुल्क हमेशा के लिये बदल जायेगा। उन्होंने कहा कि जाति आधारित जनगणना एक ऐतिहासिक निर्णय होगा और यह आज़ादी के बाद सबसे बड़ा क्रांतिकारी निर्णय होगा। कांग्रेस पार्टी आपके लिये, आपके साथ मिलकर यह निर्णय लेने जा रही है।
बिहार राज्य में जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद सवर्ण समाज ने यह बहस छेड़ दी है कि दलितों ने महादलितों और पिछड़ा वर्ग ने अति पिछड़ा वर्ग के अधिकारों पर कब्जा कर लिया है। 6743 जतियों में बंटे दलित और पिछडा वर्ग के लोगों को संघर्ष के लिये उत्तेजित किया जा रहा है यह कहकर कि महादलितों के अधिकारों को किसी और ने नहीं बल्कि दलितों ने ही छीना है और पिछड़ा वर्ग की समृद्ध जतियों ने अति पिछड़ा वर्ग के हिस्से में आने वाली सरकारी नौकरियों पर अपना अधिकार कर लिया है।
बिहार राज्य ने जो जातीय गणना के आंकड़े जारी किए हैं, उसके हिसाब से ब्राह्मणों, राजपूतों और भूमिहार की आबादी 3.65 प्रतिशत से कुछ अधिक है। राज्यों और केंद्र सरकार की नौकरियों में सबसे ज्यादा लोग किस जाति के लोग हैं, यह चर्चा का विषय होना चाहिए, कि दलितों और पिछड़ा वर्ग के लोगों को इस वास्तविकता का पता चल गया तो बहुजन समाज के लोगों को मालूम हो जाएगा कि किसने किसका हक छीना है। ऐसी स्थिति में सवर्ण जातियों द्वारा यह अफवाह फैलायी जा रही कि
दलितों ने महादलितों और पिछड़ी जाति में समृद्ध जातियों ने अति पिछडा वर्ग के अधिकारों को छीना है, सरकारी नौकरियों, न्यायपालिका, सेना व अन्य सेवाओं में किस वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के हिसाब से कहीं ज्यादा है।
बहुजन नायक कांशीराम जी नारा दिया था कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी। कांशीराम जी ने बसपा के गठन से पहले दलितों, पिछड़ा वर्ग की आबादी और उनको सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों में मिल रहे प्रतिनिधित्व के बारे में गहन अध्ययन किया और पाया कि इन वर्गों की देश में इनकी आबादी के मुताबिक इन्हें उचित अधिकार और प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। अब कांग्रेस नेता जननायक राहुल गांधी भी कांशीराम जी की बात को आगे बढा रहे हैं, वे भी देश में जातीय गणना की मांग को प्रमुखता से उठा रहे हैं और कांग्रेस शासित राज्यों में जातीय गणना कराने का निर्णय भी ले लिया गया है।
जननायक राहुल गांधी का मानना है कि देश में जातीय गणना होने के बाद इस बात की जानकारी उपलब्ध हो सकेगी कि देश में किस जाति की कितनी आबादी है और उन्हें अभी तक उनकी आबादी के मुताबिक सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों में उनके अधिकार दिये गए हैं या नहीं। जननायक राहुल गांधी का कहना है कि सरकार बनने पर जिन वर्गों की जितनी आबादी है, उन्हें उनकी आबादी के अनुपात में सरकारी और गैर सरकारी संसाधनों में प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। इन वर्गों ने निजी क्षेत्रों में भी नौकरियों में आरक्षण दिये जाने की मांग उठानी शुरू की तो सरकार ने धीरे-धीरे करके सरकारी संस्थाओं का निजीकरण करना शुरू कर दिया और सरकारी संस्थानों में भी सारे पदों को आउट सोर्सिंग के जरिये भरना शुरू कर दिया। आउट दलितों और सोर्सिंग और संविदा पर भरना शुरू कर दिया।
पिछड़ा वर्ग के लोग इन सवर्णों के गलत तरीके से पेश किए जा रहे आंकड़ों का कोई जवाब नहीं दे पा रहे हैं, शिक्षा व सामाजिक जानकारी के अभाव में महादलित और अति पिछड़ा वर्ग ये मान रहा है कि उनके अधिकारों को मनुवादी मानसिकता से प्रेरित सवर्णों ने नहीं बल्कि उनके अपने समाज के लोगों ने ही छीना है दलितों के साथ ही पिछडा वर्गों के लिए विभिन्न विभागों में लाखों पद खाली हैं, लेकिन इन रिक्त पदों पर इस वर्ग के लोगों को आजतक नौकरी पर नहीं रखा गया। एक तो इन वर्ग के लोगों को इनके मौलिक अधिकार अभी तक नहीं दिये गए और उल्टे इन वर्गों को यह बताया जा रहा है कि उनके अधिकार उनके समाज में पहले से शिक्षित समाज के लोगों ने हड़प लिए हैं।
पूर्व नौकरशाह कुँवर फतेह बहादुर जो सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष भी हैं,उनका कहना है कि बुद्धिजीवियों में जो विचार-विमर्श हो रहे हैं उन्हें यह भी बताना चाहिए कि उच्च न्यायालया और उच्चतम न्यायालय में किन जतियों के लोगों का प्रतिनिधित्व है और विश्वविद्यालयों में दलित और पिछड़ा वर्ग के कितने प्रोफेसर और कुलपति हैं, केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री के जरिये सीधे केंद्र में संयुक्त सचिव और उप सचिव और निदेशक के पद पर लोगों की सीधी नियुक्ति कर ली, इस सीधी भर्ती में किस वर्ग के लोग लाभान्वित हो रहे हैं, क्या इन भर्तियों में भी आरक्षण की कोई व्यवस्था लागू की गयी है, संभवतः इन भर्तियों में दलितों और पिछड़ा वर्ग के लिए किसी भी तरह की कोई आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं की गयी है। कुँवर फतेह बहादुर का कहना है कि बिहार में कराये गए आर्थिक सर्वे के आंकड़े आने बाकी हैं, जल्द ही वहाँ आर्थिक सर्वे के आंकड़े जारी होंगे। इसके बाद ये और ज्यादा साफ हो जाएगा कि शोषित और वंचित समाज के अधिकारों को किसने छीना है।
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