
कुछ सभासदों के चक्रव्यूह में घिरी पालिका मशीनरी
रिपोर्ट :नदीम सिद्दीकी
वर्चस्व की जंग में हाईजैक हो रही व्यवस्था
मुजफ्फरनगर। विकास कार्यों के लिए छोड़े जाने वाले टेंडरों को अपने चेहतो के नाम स्वीकृत कराने को कुछ सभासदों में छिड़ी वर्चस्व की जंग में सिस्टम को किस तरह से हाईजेक किया जा रहा है इसकी बानगी नगर पालिका (Municipality) से ली जा सकती है। यहां किसी एक पटल पर नहीं बल्कि निर्माण कार्यों जिसमे स्वास्थ्य विभाग (health Department) व जलकल संबंधी छोड़े जाने वाले टेंडरों को अपने अपने चेहतों के नाम स्वीकृत कराने के लिए चल रहे रस्साकशी के खेल में विकास कार्य अधर में लटक गए।
हाल ही में ऐसे एक मामले की शिकायत सहारनपुर मंडल आयुक्त (Saharanpur Divisional Commissioner) तक पहुंची और नौबत जांच तक आई तो इससे पहले ही विवादित पांच करोड़ के टेंडरों को निरस्त कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद भी पालिका प्रशासन की पकड़ ढीली होने से पनप रही कमीशन की बेल में पटल के विभागीय अफसर और कुछ क्षेत्रीय प्रतिनिधि के बीच चल रही सौदेबाजी से टेंडरो को नियम विरूद्ध स्वीकृत किए जाने के मामले जिला स्तर के अधिकारियों से लेकर शासन तक गूंजे हैं।
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फजीहत झेल रहे पालिका प्रशासन ने ऐसे विवादित टेंडरों पर कैंची चलाकर भले ही अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया हो, लेकिन होने वाले विकास समेत अन्य कार्यों के टेंडरो में जब तक इन लोगों का हस्तक्षेप रहेगा तब तक नगर पालिका की स्थिति में सुधार नहीं हो सकेगा। ऐसे तो नहीं आएगी कार्यों में गुणवत्ता।
मुजफ्फरनगर निर्माण विभाग (Muzaffarnagar Construction Department) में सहायक अभियंता व पटल लिपिकों की सांठ गांठ से जो टेंडर स्वीकृत किए जा रहे हैं। उनमें 28 प्रतिशत से लेकर 30 प्रतिशत तक का बिलों आ रहा है, जबकि नियम अनुसार यह 10 से 15 प्रतिशत ही रहना चाहिए ताकि निर्माण कार्य गुणवत्तापरक हो सके। सूत्रों के मुताबिक यहां 22 से 28 प्रतिशत तक कमीशन का खेल चल रहा है। 30 प्रतिशत तक का बिलों कम आने से शेष बचे 42 प्रतिशत में ठेकेदार को गुणवत्तापरक कार्य करना है।
ऐसे में सवाल यही उठ रहा है कि या तो विभागीय अधिकारी काम का सही इंस्टीमेंट तैयार नहीं कर रहे या फिर नियम अनुसार काम नहीं हो रहा और ना ही गुणवत्ता की जांच हो रही। ऐसे में गुणवत्तापरक कार्य कैसे होंगे कुछ ऐसे ही मामलों को लेकर नगर पालिका की फजीहत हो रही है। जिस पर न तो पालिका अध्यक्ष का ध्यान है और न ही जिले के आला अफसरों का।