
हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में खुशनुमा माहौल मंगलवार को एक बुरे सपने में बदल गया क्योंकि चुनाव नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिया, जबकि भाजपा तीन बार सत्ता विरोधी लहर का सामना कर चुकी है। कांग्रेस के लिए यह एक चौंकाने वाली हार है, जबकि भाजपा के लिए यह ‘ऐतिहासिक’ जीत है।
नई दिल्ली (Shah Times): हरियाणा में शायद कांग्रेस ने सोचा भी ना होगा कि उनके सपनों पर इस तरह से पानी फिर जाएगा। जिस तरह कांग्रेस ने हरियाणा में हार की मार झेली है उससे एक बात तो साफ है कि कांग्रेस की अपनी गलतियां ही उस पर भारी पड़ गई हैं।
हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में खुशनुमा माहौल मंगलवार को एक बुरे सपने में बदल गया क्योंकि चुनाव नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिया, जबकि भाजपा तीन बार सत्ता विरोधी लहर का सामना कर चुकी है। कांग्रेस के लिए यह एक चौंकाने वाली हार है, जबकि भाजपा के लिए यह ‘ऐतिहासिक’ जीत है।
एग्जिट पोल भी हुए गलत साबित
एग्जिट पोल और राजनीतिक विशेषज्ञों ने भी राज्य में कांग्रेस की मजबूत लहर की बात कही है। कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के पीछे पार्टी में वर्चस्व हासिल करने को लेकर कलह, अंदरूनी कलह और आंतरिक कलह को मुख्य कारण माना जा रहा है।
आपसी फूट ही ले डूबी
विधानसभा चुनाव से पहले ही हरियाणा कांग्रेस में फूट पड़ गई थी और राज्य इकाई के भीतर कई गुट उभरकर सामने आए थे। अंदरूनी कलह शुरू हो गई थी, भूपेंद्र हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला जैसे पार्टी के दिग्गज नेता मुख्यमंत्री पद के लिए जोर आजमाइश कर रहे थे और अपनी महत्वाकांक्षा को सार्वजनिक करने से भी नहीं कतरा रहे थे।
पार्टी आलाकमान भी असफल रहा
पार्टी आलाकमान द्वारा असंतोष और कलह को शांत करने के प्रयास व्यर्थ गए। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा सत्ता विरोधी लहर, किसानों के गुस्से और पहलवानों के विरोध का सामना करने के बावजूद रिकॉर्ड तीसरी बार सत्ता में लौटी। कांग्रेस के वापसी के सपने और उम्मीदें अब भी चकनाचूर हैं।
बाहरी जिम्मेदार ठहराना होगा गलत
खास बात यह है कि इसके लिए किसी बाहरी ताकत को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। हरियाणा में जीत की ‘पसंदीदा’ पार्टी होने के बावजूद पार्टी चुनावी दौड़ से बाहर हो गई है।
अपने-अपने पक्ष के कारण हुआ नुकसान
हुड्डा और शैलजा के नेतृत्व में गुटबाजी और राहुल के विचार को सामूहिक रूप से खारिज करना चौंकाने वाली चुनावी हार का एक और कारण माना जा रहा है। हुड्डा और शैलजा दोनों ने टिकट वितरण के दौरान अपने उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार किया, जिससे उनके अंदरूनी झगड़े और मनमुटाव खुलकर सामने आ गए।
हुड्डा के लोगों को तरजीह बनी हार
हुड्डा के 72 ‘वफादारों’ को टिकट आवंटन में अधिक हिस्सा मिलने के कारण नाराज शैलजा ने लगभग दो सप्ताह तक पार्टी के प्रचार अभियान से खुद को अलग कर लिया और कांग्रेस आलाकमान द्वारा मनाए जाने के बाद ही उन्हें वापस लाया गया। कांग्रेस का दलित चेहरा होने के कारण भाजपा को ‘विभाजित’ पार्टी पर और अधिक प्रहार करने का मौका मिल गया।
राहुल की गलत जानकारी बनी हार का कारण
विधानसभा चुनावों के लिए टिकट आवंटन से ठीक पहले, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने आप सहित भारतीय ब्लॉक सहयोगियों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन करने का विचार रखा था, लेकिन राज्य इकाई के नेताओं ने इसे अस्वीकार कर दिया था। इसका कारण था – उनका यह विश्वास और अति आत्मविश्वास कि सत्ता विरोधी लहर नायब सिंह सैनी की सरकार को सत्ता से हटा देगी।







