माघी पूर्णिमा क्यों है शुभ और कैसे होते है पाप समाप्त जानिए

महाकुंभनगर,(शाह टाइम्स) इस दिन गंगा या किसी पवित्र सरोवर में स्नान व दान करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। मोक्ष व पुण्य प्राप्ति के लिए माघी पूर्णिमा स्नान शुभ माना जाता है।

ऋषियों द्वारा बनाई गई है परंपरा
शैव संप्रदाय के श्री जूना अखाड़े के जगद्गुरु व सूर्याचार्य कृष्णदेवानंद गिरि महाराज ने सेक्टर 12 स्थित शंकराचार्य मार्ग स्थित शिविर में बताया कि इस बार यह माह आश्लेषा नक्षत्र से शुरू हुआ है। पूर्णिमा पर मघा नक्षत्र होने के कारण ऋषियों ने इसका नाम माघ रखा है। जिसमें पवित्र स्थानों पर स्नान, दान व पूजा-पाठ करने से जाने-अनजाने में हुए पाप समाप्त हो जाते हैं और पुण्य फल की प्राप्ति भी होती है। माघ माह में आने वाले व्रत व त्योहार सकारात्मकता बढ़ाते हैं। ऋषियों द्वारा बनाई गई इन परंपराओं से आपसी प्रेम, सहयोग, त्याग, दया व प्रसन्नता की भावना बढ़ती है। उन्होंने बताया कि माघ मास का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इस समय प्रकृति में परिवर्तन का समय होता है और वह स्वयं को शुद्ध भी कर रही होती है। माघ पूर्णिमा का दिन आत्मशुद्धि, दान और ईश्वर के प्रति समर्पण का दिन होता है। इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को पुण्य फल की प्राप्ति होती है और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जगद्गुरु ने बताया कि कल्पवासी एक माह तक कल्पवास करते हैं। इसका पूरा फल उन्हें इसी माघ पूर्णिमा स्नान पर मिलता है। उन्होंने बताया कि प्रयागराज सभी तीर्थों का राजा है, इसीलिए यहां कल्पवास की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता और यहां कल्पवासियों को जो अनंत पुण्य मिलता है, वह अन्यत्र नहीं मिलता। सूर्याचार्य ने बताया कि हिंदू धर्म पूर्णिमा को शुभ मानता है। पूर्णिमा तिथि हर माह पड़ती है लेकिन माघ मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान और दान करने से व्यक्ति अपने जीवन के सभी पापों से मुक्ति पा लेता है। इस दिन गंगा किसी न किसी रूप में स्नान करने के लिए धरती पर आती हैं, इसलिए यह तिथि बहुत पवित्र और अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है।

भगवान विष्णु की होती है विशेष कृपा
पद्म पुराण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि माघ मास में जप, होम और दान का विशेष महत्व है। इस मास में सूर्योदय से पहले स्नान, विभिन्न दान और भगवान विष्णु के स्तोत्र का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस मास में सूर्य के त्वष्टा स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। पुराणों में उल्लेख है कि इस मास में भगवान कृष्ण और भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए। शिव पूजा में तिल के तेल का दीपक जलाने से शारीरिक परेशानियां नहीं होती हैं।

सूर्योदय से पहले करना चाहिए स्नान स्नान
जूना अखाड़े के जगद्गुरु ने बताया कि महाभारत और अन्य पुराणों में उल्लेख है कि इस मास में सूर्योदय से पहले उठकर गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। अगर किसी कारणवश ऐसा संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगा जल की कुछ बूंदें डालकर स्नान करने से पवित्र स्नान का पुण्य मिलता है। साथ ही पानी में तिल डालकर स्नान करना चाहिए। इससे कई जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं। इस माह में तांबे के बर्तन में तिल भरकर दान करना चाहिए।