
The Supreme Court stayed an Allahabad HC order that said "grabbing breasts or pulling pajama strings is not rape." Calling the remarks insensitive, SC emphasized strict action in sexual assault cases
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाई, जिसमें “स्तन पकड़ना या पायजामे का नाड़ा खींचना बलात्कार नहीं” कहा गया था। शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी को असंवेदनशील बताते हुए यौन हिंसा के मामलों में सख्त रुख अपनाने का संकेत दिया।
नई दिल्ली (शाह टाइम्स ): सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक विवादास्पद फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि “किसी महिला के स्तन को पकड़ना या पायजामे का नाड़ा खींचना बलात्कार या बलात्कार का प्रयास नहीं माना जा सकता।” शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट की इस टिप्पणी को “असंवेदनशील, अमानवीय और कानून के मूल सिद्धांतों के विपरीत” बताते हुए तत्काल प्रभाव से उस पर रोक लगाई।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला (विशेषकर पैराग्राफ 21, 24 और 26) “पूरी तरह से असंवेदनशील दृष्टिकोण दर्शाता है और यौन हिंसा की गंभीरता को कम करता है।” कोर्ट ने कहा, “ऐसी टिप्पणियाँ न्यायिक संवेदनशीलता के खिलाफ हैं और महिलाओं के खिलाफ हिंसा को सामान्य बनाती हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया और केंद्र व यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी हाईकोर्ट के फैसले को “चौंकाने वाला” बताया।
हाईकोर्ट ने क्या कहा था?
17 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि:
- “महिला के प्राइवेट पार्ट को छूना या पायजामे का नाड़ा खींचना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता।”
- यह धारा 354-B (महिला को निर्वस्त्र करने का प्रयास) और POCSO की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत आ सकता है, लेकिन बलात्कार का प्रयास नहीं।
- हाईकोर्ट ने कहा कि बलात्कार का प्रयास साबित करने के लिए “अपराधी का इरादा स्पष्ट होना चाहिए,” जो इस मामले में नहीं दिखता।
मामले की पृष्ठभूमि
- घटना नवंबर 2021 में उत्तर प्रदेश के कासगंज में हुई।
- 14 वर्षीय पीड़िता को आरोपियों ने बाइक पर बिठाकर अकेले जगह ले जाने की कोशिश की।
- उन्होंने उसके गुप्तांगों को पकड़ा, पायजामे का नाड़ा खींचा और उसे घसीटने की कोशिश की। गवाहों के आने पर वे भाग गए।
- स्थानीय अदालत ने बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाया, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की आपत्तियाँ
- असंवेदनशील भाषा: हाईकोर्ट ने यौन हिंसा को गंभीरता से नहीं लिया।
- कानून की गलत व्याख्या: IPC की धारा 375 (बलात्कार) और POCSO एक्ट के तहत ऐसे कृत्य गंभीर अपराध हैं।
- महिलाओं की सुरक्षा पर प्रभाव: ऐसे फैसले यौन हिंसा के मामलों को कमजोर कर सकते हैं।
आगे की कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर तत्काल रोक लगा दी है और सभी पक्षों को नोटिस भेजा है। अब केंद्र व यूपी सरकार को जवाब देना होगा।
निष्कर्ष:
यह फैसला यौन हिंसा के खिलाफ कानूनी लड़ाई में एक अहम मोड़ हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि “छोटे” समझे जाने वाले यौन अपराध भी गंभीर हैं और उन्हें कम करके नहीं आंका जा सकता।