
Former J&K Governor Satyapal Malik faces CBI charges in Kiru Hydropower corruption case – Shah Times
किरू प्रोजेक्ट पर उठते सवाल: क्या सत्यपाल मलिक भ्रष्टाचार के दोषी हैं या राजनीतिक शिकार?
2200 करोड़ के घोटाले की जांच और पूर्व राज्यपाल की आत्मस्वीकृति के बीच देश के लोकतांत्रिक चरित्र की कसौटी
✍️ Shah Times विश्लेषण विशेष
CBI ने सत्यपाल मलिक समेत 6 अन्य लोगों के खिलाफ किरू जलविद्युत परियोजना में भ्रष्टाचार के मामले में चार्जशीट दाखिल की है। पूर्व राज्यपाल की भावुक प्रतिक्रिया और संस्थागत निष्पक्षता पर उठते सवालों का संतुलित विश्लेषण।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा किरू जलविद्युत परियोजना के कथित भ्रष्टाचार मामले में चार्जशीट दाखिल करना न केवल एक प्रशासनिक कार्रवाई है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों, सत्यनिष्ठा और संस्थागत पारदर्शिता की भी गहन परीक्षा है। इस मामले ने जहां एक ओर सत्ता और नीति-निर्माण के केंद्रों में व्याप्त भ्रांतियों को उजागर किया है, वहीं दूसरी ओर यह भी सवाल खड़ा किया है कि क्या यह कार्रवाई निष्पक्ष जांच का परिणाम है या फिर पूर्व राज्यपाल के राजनीतिक बयानों की प्रतिक्रिया?
🔍 क्या है किरू जलविद्युत परियोजना घोटाला?
जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में स्थित किरू जलविद्युत परियोजना (Kiru Hydroelectric Project) लगभग 2200 करोड़ रुपए की लागत वाली एक अहम विकास परियोजना है, जिसका क्रियान्वयन Chenab Valley Power Projects Pvt. Ltd. (CVPPPL) द्वारा किया जा रहा है। CBI की चार्जशीट के अनुसार, परियोजना के सिविल वर्क्स के लिए ई-टेंडरिंग और रिवर्स ऑक्शन की बोर्ड बैठक में स्वीकृत प्रक्रिया को दरकिनार कर पटेल इंजीनियरिंग लिमिटेड को सीधा ठेका दिया गया, जो गंभीर अनियमितता की श्रेणी में आता है।
🎯 सत्यपाल मलिक की प्रतिक्रिया: बीमारी, भावुकता और बेबाकी
दिल्ली के एक अस्पताल में ICU में भर्ती सत्यपाल मलिक ने हाल ही में एक भावुक पोस्ट में अपने स्वास्थ्य, ईमानदारी और जीवन संघर्षों का उल्लेख करते हुए CBI कार्रवाई को “राजनीतिक प्रतिशोध” करार दिया। उन्होंने दावा किया कि जब वे गवर्नर थे, तब उन्हें परियोजना की दो फाइलों के बदले 300 करोड़ रुपये रिश्वत की पेशकश हुई थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।
वे यह भी कहते हैं कि उन्होंने स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भ्रष्टाचार की जानकारी दी थी और उसी के बाद उस टेंडर को रद्द भी किया था। उनका दावा है कि टेंडर उनके स्थानांतरण के बाद किसी और के हस्ताक्षर से जारी किया गया। वे खुद को “किसान कौम से जुड़ा निडर व्यक्ति” बताते हैं।
🏛️ संस्थानों की विश्वसनीयता पर प्रश्न
इस पूरे प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि क्या देश की जांच एजेंसियां वास्तव में स्वतंत्र हैं? क्या यह सिर्फ एक पूर्व राज्यपाल की राजनीतिक असहमति और आलोचनात्मक टिप्पणियों का दमन है? या फिर यह एक गंभीर घोटाले का सच सामने लाने की न्यायिक प्रक्रिया है?
यदि Malik की बातों में दम है, तो सरकार और एजेंसियों को पारदर्शिता के साथ इन बिंदुओं पर सफाई देनी चाहिए। वहीं यदि CBI के पास ठोस साक्ष्य हैं, तो मामला अदालत में तथ्यों के आधार पर तय होना चाहिए — न कि भावनाओं, आरोपों या राजनीतिक माहौल के अनुसार।
🔎 मामला और गहराता है क्योंकि…
- सत्यपाल मलिक पुलवामा हमले की निष्पक्ष जांच पर सरकार से सवाल कर चुके हैं।
- वे महिला पहलवानों के आंदोलन में मुखर रूप से सामने आए।
- वे किसान आंदोलन में सरकार के खिलाफ सक्रिय रहे।
इन सभी तथ्यों से यह संकेत मिलता है कि वे सत्ता के खिलाफ खड़े रहे हैं। क्या यही उनकी जांच का कारण बना? या उन्होंने अपने गवर्नर काल में जो फाइलें रोकीं, वह आज उनका गला बन गईं?
🧾 निष्कर्ष: लोकतंत्र की असली परीक्षा
इस पूरे प्रकरण से लोकतंत्र की आत्मा, यानी पारदर्शिता, ईमानदारी और संस्थानों की निष्पक्षता की असली परीक्षा होती है। सत्यपाल मलिक पर लगे आरोप गंभीर हैं, लेकिन उतनी ही गंभीर हैं वे परिस्थितियां जिनमें वे उठे हैं।
इस मामले में न्याय प्रक्रिया का सम्मान करते हुए, मीडिया, सरकार और नागरिक समाज को निष्पक्षता बनाए रखनी होगी। किसी को भी ‘पूर्व गवर्नर’ या ‘राजनीतिक आलोचक’ होने के आधार पर दोषी या निर्दोष नहीं माना जा सकता — सच वही होगा जो अदालत में साक्ष्यों से सिद्ध होगा।