
Fire and smoke rise after Iranian missile attack in Haifa -Shah Times
ईरान-इजरायल संघर्ष में हाईफा पर दोबारा हमला, राष्ट्रपति पेजेश्कियन की चेतावनी और भारत से समर्थन की अपील। पढ़ें Shah Times का विस्तृत संपादकीय विश्लेषण।
“दुश्मन की आक्रामकता को बिना शर्त रोका जाए, नहीं तो हमारी प्रतिक्रिया घातक होगी।” — ईरानी राष्ट्रपति डॉ. मसूद पेजेश्कियन
🔴 Middle East में उबाल और वैश्विक चिंता
ईरान और इजरायल के बीच चल रहा संघर्ष अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। जबसे ईरानी मिसाइलों ने इजरायल के हाईफा शहर पर दोबारा हमला किया है, तबसे क्षेत्रीय अस्थिरता की आग पूरी दुनिया में चिंता का विषय बन गई है। इस बीच भारत की भूमिका को लेकर ईरान की ओर से विशेष संदेश आया है। राष्ट्रपति डॉ. मसूद पेजेश्कियन ने जहां इजरायल को चेताया है, वहीं भारत से खुलेआम समर्थन की गुहार भी लगाई है।
🚀 ईरानी मिसाइलों का दोबारा प्रहार: हाईफा जल उठा
शुक्रवार को ईरान ने इजरायल के हाईफा शहर पर भीषण मिसाइल हमला किया। ईरानी मीडिया के अनुसार, इस हमले में इजरायल की माइक्रोसॉफ्ट बिल्डिंग को भी निशाना बनाया गया। दृश्य इतने भयावह थे कि काले धुएं और आग की लपटों ने आसमान को ढक दिया।
तेल-अवीव और वेस्ट बैंक के कई हिस्सों में भी हवाई हमलों के सायरन गूंज उठे। लोगों को बंकरों में जाने की हिदायत दी गई। यह हमला सिर्फ सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश था – “ईरान अब पीछे नहीं हटेगा।”
💬 ईरानी राष्ट्रपति का संदेश: अब और सहन नहीं
ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉ. मसूद पेजेश्कियन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर कहा:
“हमने हमेशा शांति की कामना की है, लेकिन इस थोपे गए युद्ध को समाप्त करने का एकमात्र तरीका दुश्मन की आक्रामकता को बिना शर्त समाप्त करना है। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो हमारी प्रतिक्रिया कठोर और पश्चातापपूर्ण होगी।”
यह बयान सिर्फ चेतावनी नहीं, बल्कि युद्ध नीति का स्पष्ट संकेत है।
🧨 माइक्रोसॉफ्ट बिल्डिंग और एल्काना बस्ती पर हमले
ईरान की मिसाइलों ने सिर्फ हाईफा नहीं, बल्कि वेस्ट बैंक की एल्काना बस्ती को भी निशाना बनाया। यह बस्ती अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार अवैध मानी जाती है। इससे यह स्पष्ट है कि ईरान अब इजरायली कब्जे वाली बस्तियों को भी युद्ध के दायरे में ला चुका है।
🇮🇳 भारत पर ईरान की निगाहें: क्या निभाएगा दक्षिण का नेतृत्व?
👉 “भारत को अब भूमिका निभानी चाहिए” — मोहम्मद जवाद हुसैनी, ईरानी उप-राजदूत
नई दिल्ली स्थित ईरानी दूतावास से उप-राजदूत मोहम्मद जवाद हुसैनी ने भारत को स्पष्ट संदेश दिया है:
“अगर अक्टूबर 2023 में हमास के खिलाफ इजरायल की कार्रवाई की वैश्विक स्तर पर निंदा की गई होती, तो आज वह ईरान जैसे संप्रभु देश पर हमला करने की हिम्मत नहीं करता।”
हुसैनी ने भारत को वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ बताया और कहा कि भारत को इस मुद्दे पर नैतिक नेतृत्व निभाना चाहिए।
☢️ IAEA की निष्पक्षता पर सवाल: परमाणु हथियारों का मिथक
हुसैनी ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निष्पक्षता पर सीधा प्रश्नचिन्ह लगाया। उन्होंने कहा कि IAEA की रिपोर्ट्स में स्पष्ट है कि ईरान सैन्य परमाणु गतिविधियों में शामिल नहीं है, फिर भी वह इजरायल की कार्रवाई का समर्थन कर रहा है।
उन्होंने दो टूक कहा:
“हमारी रक्षा नीति में परमाणु हथियारों का कोई स्थान नहीं है। यह एक झूठा नैरेटिव है, जो शासन परिवर्तन (Regime Change) के एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।”
🇵🇰 पाकिस्तान पर सवाल: क्या अमेरिका ज़मीन का इस्तेमाल करेगा?
एक पत्रकार द्वारा पूछे गए सवाल पर कि क्या अमेरिका पाकिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल कर सकता है, इस पर हुसैनी ने विश्वास जताया कि पाकिस्तान ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को ईरान के साथ खड़ा होना चाहिए, विशेषकर इज़रायल जैसे आक्रामक देश के खिलाफ।
⚠️ ईरान की गोपनीय युद्ध क्षमताएं: एक छुपा हथियार?
ईरानी उप-राजदूत ने यह भी खुलासा किया कि:
“हमारे पास कुछ ऐसी क्षमताएं हैं जो अभी तक सामने नहीं आई हैं। हमने उन्हें रणनीतिक कारणों से भविष्य के लिए सुरक्षित रखा है।”
यह बयान यह संकेत देता है कि अगर इजरायल और अमेरिका द्वारा ईरान को उकसाया गया, तो वह ऐसी क्षमताओं का इस्तेमाल कर सकता है जिनसे क्षेत्रीय संतुलन पूरी तरह बदल सकता है।
🧭 भारत की रणनीतिक दुविधा: कहां खड़ा हो देश?
भारत के लिए यह समय रणनीतिक समझदारी और संतुलन का है। एक ओर भारत के इजरायल से गहरे रक्षा और तकनीकी संबंध हैं, वहीं दूसरी ओर ईरान उसके ऊर्जा सुरक्षा, चाबहार पोर्ट और मध्य एशियाई व्यापार का अहम द्वार है।
भारत का तटस्थ रुख लंबे समय से उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा को बनाए रखने में मदद करता आया है, लेकिन अब जब ईरान जैसे देश भारत से स्पष्ट समर्थन की मांग कर रहे हैं, तो कूटनीतिक दबाव बढ़ गया है।
🌎 दुनिया की प्रतिक्रिया: संयुक्त राष्ट्र मौन, अमेरिका टालमटोल में
अभी तक संयुक्त राष्ट्र की ओर से कोई निर्णायक प्रतिक्रिया नहीं आई है। अमेरिका की ओर से बयानबाज़ी जरूर हुई है, लेकिन वह इजरायल को नियंत्रित करने में विफल साबित हो रहा है। रूस और चीन ने परोक्ष रूप से ईरान का समर्थन किया है, लेकिन सक्रिय सैन्य समर्थन की बात अभी तक सामने नहीं आई है।
📢 क्या यह युद्ध परमाणु मोड़ ले सकता है?
ईरानी पक्ष ने बार-बार कहा है कि वह परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा, लेकिन इजरायल की “Preemptive Strike” नीति और अमेरिका की रणनीति इस संघर्ष को परमाणु संकट की ओर धकेल सकती है।
अगर हालात काबू से बाहर होते हैं, तो यह युद्ध केवल ईरान-इजरायल तक सीमित नहीं रहेगा। यह पूरा मध्य एशिया, यूरोप और भारत तक को संकट में डाल सकता है।
✅ अब समय है निर्णायक कूटनीति का
- ईरान और इजरायल के बीच बढ़ती हुई यह जंग केवल क्षेत्रीय तनाव नहीं, बल्कि विश्व व्यवस्था की अग्नि परीक्षा बन चुकी है।
- भारत जैसे देश को चाहिए कि वह नैतिक नेतृत्व दिखाते हुए संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय कानून के पक्ष में खड़ा हो।
- शांति के हर प्रयास को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, लेकिन आक्रामकता की खुली आलोचना भी उतनी ही जरूरी है।
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