
A large oil tanker passes between U.S. and Russian flags with a refinery in the background, symbolizing India's balanced energy strategy – Shah Times
भारत की रणनीतिक आर्थिक नीति: अमेरिका-रूस के बीच ऊर्जा और व्यापार संतुलन की चाल
अमेरिका से तेल, रूस से रक्षा सहयोग: भारत की दोहरी रणनीति
भारत ने रूस और अमेरिका दोनों के साथ तेल और रक्षा सौदों में तेजी लाकर अपनी अर्थव्यवस्था को रणनीतिक हथियार में बदल दिया है।
ऊर्जा आपूर्ति की नई कूटनीति: रणनीति या मजबूरी?
भारत अब पारंपरिक कूटनीति की सीमाओं से आगे निकलते हुए अपनी आर्थिक नीति, बाजार और व्यापार संबंधों को रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। एक तरफ वह रूस के साथ रक्षा साझेदारी मजबूत कर रहा है, तो दूसरी ओर अमेरिका से ऊर्जा आयात बढ़ाकर दोनों देशों के बीच संतुलन साध रहा है। भारत की यह दोहरी रणनीति न केवल ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार वार्ताओं में उसकी सौदेबाजी की ताकत को भी बढ़ा रही है।
विशेषज्ञ इसे एक सोची-समझी रणनीति मानते हैं, जो पश्चिम एशिया में अस्थिरता और वैश्विक व्यापार तनावों के बीच भारत को ऊर्जा आपूर्ति के बहु-स्रोत विकल्प प्रदान करती है।
रूस से रक्षा सौदा, अमेरिका से कच्चा तेल
भारत ने 2018 में रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली के पांच स्क्वाड्रन की 40,000 करोड़ रुपये की डील की थी, जिसमें अब तक तीन स्क्वाड्रन प्राप्त हो चुके हैं। वहीं दूसरी ओर, भारत ने अमेरिका से कच्चे तेल का आयात तेजी से बढ़ाया है। 2025 के पहले चार महीनों में ही भारत ने अमेरिका से 270% अधिक कच्चा तेल खरीदा है।
वाणिज्यिक खुफिया और सांख्यिकी महानिदेशालय (DGCIS) के आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी से अप्रैल 2025 में भारत ने अमेरिका से 6.31 मिलियन टन कच्चा तेल खरीदा, जबकि 2024 में यह आंकड़ा मात्र 1.69 मिलियन टन था। इससे अमेरिका की भारत के कुल कच्चे तेल आयात में हिस्सेदारी 7% तक पहुँच गई है।
ट्रंप युग में व्यापारिक संतुलन की कवायद
डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक व्यापार नीति के पुनरागमन की संभावना के बीच भारत ने अमेरिका से आयात बढ़ाकर व्यापार घाटे को संतुलित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2025 में भारत का अमेरिका से कुल आयात 63% बढ़कर 5.24 अरब डॉलर हो गया, जबकि अप्रैल 2024 में यह 3.20 अरब डॉलर था। परिणामस्वरूप, भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष 3.4 अरब डॉलर से घटकर 3.1 अरब डॉलर रह गया।
इसका सीधा प्रभाव आगामी भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर पड़ सकता है, जिसकी घोषणा 9 जुलाई तक संभव है। यह सौदा भारत को अमेरिकी कारों, रक्षा उपकरणों और कृषि उत्पादों के लिए अपने बाजार को और अधिक खोलने की दिशा में ले जा सकता है।
एक ऊर्जा रणनीति, जो सौदेबाजी को मजबूती देती है
भारत की ऊर्जा जरूरतों का 88% हिस्सा आयात पर निर्भर है, ऐसे में अमेरिका जैसे वैकल्पिक स्रोतों से तेल खरीदना उसकी ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि वे भारत को अमेरिकी ऊर्जा का प्रमुख ग्राहक बनाना चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक में उन्होंने इस दिशा में ठोस प्रयासों का संकेत दिया था।
जानकारों का मानना है कि अमेरिकी तेल की बढ़ती खरीद भारत को OPEC देशों से बेहतर सौदेबाजी की स्थिति में लाती है। यदि अमेरिका सस्ता तेल देता है, तो अन्य आपूर्तिकर्ता प्रतिस्पर्धी दरों पर तेल देने के लिए बाध्य हो सकते हैं।
रूस से कोयले की खरीद में भी इजाफा
रूस के साथ भारत के ऊर्जा संबंध सिर्फ तेल तक सीमित नहीं हैं। मई 2025 में भारत का रूस से कोयले का आयात मासिक आधार पर 52% बढ़कर 13 लाख टन के स्तर पर पहुँच गया, जो पिछले दो वर्षों का उच्चतम स्तर है। यह जानकारी रूस के व्यावसायिक अखबार “कोमर्सेंट” ने सेंटर फॉर प्राइस इंडिसेज (CCI) के हवाले से दी है।
विश्लेषकों का कहना है कि रूस की लचीली मूल्य निर्धारण रणनीति और बेहतर ईंधन गुणवत्ता ने इस वृद्धि में योगदान दिया है। हालांकि भारत में बढ़ते घरेलू उत्पादन और लॉजिस्टिक लागत के चलते रूस की बाजार हिस्सेदारी में लंबी अवधि में बड़ी वृद्धि की संभावना सीमित मानी जा रही है।
भारत की ऊर्जा रणनीति: संतुलन बनाम निर्भरता
मई 2025 में भारत का कुल कोयला आयात भी 10% बढ़कर 1.74 करोड़ टन पहुंच गया, जिसमें रूस का हिस्सा 7.5% रहा। वहीं इंडोनेशिया से कोयला आयात 98 लाख टन तक पहुंच गया। यह दर्शाता है कि भारत अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाकर न केवल सप्लाई जोखिम को कम कर रहा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी ऊर्जा कूटनीति को भी मजबूत बना रहा है।
निष्कर्ष: आर्थिक नीति का नया चेहरा
भारत अब नीतिगत रूप से वैश्विक शक्तियों के साथ तालमेल बनाते हुए अपने हितों की रक्षा के लिए ‘स्मार्ट डिप्लोमेसी’ का प्रयोग कर रहा है। अमेरिका और रूस के बीच ऊर्जा, रक्षा और व्यापार संतुलन साधना भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
यह नीति न केवल आर्थिक रूप से भारत को स्थायित्व प्रदान करती है, बल्कि वैश्विक मंच पर उसकी ताकत को भी बढ़ाती है। 2025 की यह तस्वीर स्पष्ट करती है कि भारत अब केवल वैश्विक घटनाओं का पर्यवेक्षक नहीं, बल्कि सक्रिय रणनीतिक खिलाड़ी बन चुका है।