
Donald Trump, Grand Ayatollah Naser Makarem Shirazi, and Benjamin Netanyahu set against the backdrop of Tehran’s iconic mosque amid escalating Iran-Israel tensions. | Shah Times
ईरान में ट्रंप और नेतन्याहू के खिलाफ फतवा, मुस्लिमों से वैश्विक एकता की मांग
ईरानी ग्रैंड अयातुल्ला की सख्त चेतावनी: अल्लाह के खिलाफ जंग है ये!
ईरान के शीर्ष मौलवी ने ट्रंप और नेतन्याहू को ‘अल्लाह का दुश्मन’ बताते हुए फतवा जारी किया, मुस्लिमों से अमेरिका-इजरायल का विरोध करने की अपील।
Shah Times GeoPoltics News
मिडिल ईस्ट में इजरायल और ईरान के दरमियान छिड़ी जंग ने अब मज़हबी आयाम ले लिया है। 12 दिनों तक चले युद्धविराम के तुरंत बाद, ईरान के शीर्ष शिया मौलवी और ग्रैंड अयातुल्ला नसेर माकारेम शिराजी ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ एक कठोर धार्मिक फतवा जारी किया है। इस फतवे ने केवल राजनीति नहीं, बल्कि पूरे इस्लामी समुदाय को एकजुटता और प्रतिरोध की नई दिशा देने का काम किया है।
क्या कहा गया फतवे में?
शिराजी ने अपने फतवे में ट्रंप और नेतन्याहू को “अल्लाह का दुश्मन” करार देते हुए स्पष्ट किया कि जो भी व्यक्ति या शासन ईरानी नेतृत्व को धमकी देता है, वह ‘मोहरेब’ है—यानी अल्लाह के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाला। ईरानी कानून में यह अपराध गंभीरतम श्रेणियों में आता है, जिसके लिए मौत की सजा, अंग काटना, सूली पर चढ़ाना या निर्वासन जैसे दंड शामिल हैं।
फतवे में मुसलमानों से कहा गया है कि अमेरिका और इजरायल जैसे “शत्रु ताकतों” का किसी भी रूप में समर्थन हराम है। साथ ही, इस संघर्ष में भाग लेने वाले मुस्लिमों को ‘अल्लाह की राह का योद्धा’ मानकर स्वर्ग में स्थान देने की बात कही गई है।
धार्मिक फतवा ऐसे समय में क्यों आया?
13 जून 2025 को इजरायल ने ईरान में सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले शुरू किए। इस हमले में शीर्ष सैन्य अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए। इसके बाद ईरान ने भीषण बैलिस्टिक मिसाइलों से इजरायली शहरों को निशाना बनाया। इस जवाबी कार्रवाई में कई इजरायली बेस ध्वस्त हुए।
इसके जवाब में अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर बमबारी की और युद्ध में खुलकर कूद पड़ा। इसके प्रतिशोध में ईरान ने कतर में मौजूद अमेरिकी सैन्य अड्डे को निशाना बनाया। फिलहाल युद्धविराम लागू है, लेकिन माहौल बेहद तनावपूर्ण है।
क्या यह केवल धार्मिक प्रतिक्रिया है या राजनीतिक रणनीति?
विशेषज्ञ मानते हैं कि शिराजी का यह फतवा न केवल धार्मिक, बल्कि कूटनीतिक हथियार भी है। यह मुस्लिम दुनिया को पश्चिमी दखल के खिलाफ एकजुट करने की कोशिश है। साथ ही, यह संदेश भी कि अब संघर्ष केवल सैन्य नहीं, वैचारिक और धार्मिक भी हो गया है।
इस तरह के फतवे इस्लामी गणराज्य ईरान को वैचारिक नेतृत्व प्रदान करते हैं और युद्ध को केवल राजनीतिक नहीं, एक धार्मिक कर्तव्य की तरह स्थापित करते हैं।
क्या यह युद्ध अब वैश्विक स्वरूप ले रहा है?
इस घटनाक्रम के बाद चिंता बढ़ गई है कि यह टकराव अब सिर्फ इजरायल और ईरान तक सीमित नहीं रहेगा। अमेरिका की सक्रियता और अब इस्लामी दुनिया को आह्वान के बाद कई मुस्लिम राष्ट्रों की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण हो जाएगी।
सऊदी अरब, तुर्की, कतर, पाकिस्तान जैसे देश इस फतवे के नैतिक दबाव में आ सकते हैं।
कूटनीतिक संतुलन और खतरे:
जहां पश्चिमी राष्ट्र इसे एक चरमपंथी प्रतिक्रिया मान सकते हैं, वहीं इस्लामी राष्ट्रों के बीच इससे अलग-अलग भावनाएं पैदा हो सकती हैं। कुछ देश इस फतवे को गंभीरता से लेंगे, तो कुछ इसे केवल आंतरिक ईरानी मामला मानेंगे।
भारत जैसे लोकतांत्रिक और विविध धार्मिक परिदृश्य वाले देशों के लिए इस घटनाक्रम की अहमियत इस बात में है कि यह पूरे दक्षिण एशिया की सुरक्षा रणनीति को प्रभावित कर सकता है।
निष्कर्ष:
ईरानी फतवे की भाषा और संदेश दोनों ही तीखे हैं। यह स्पष्ट करता है कि अब संघर्ष केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रहा। धार्मिक घोषणाएं कूटनीतिक हथियार बन चुकी हैं, और यह संदेश मुस्लिम दुनिया को संघर्ष के एक नए चरण में धकेल सकता है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या यह फतवा दुनिया के मुसलमानों को राजनीतिक रूप से प्रेरित करता है या फिर यह केवल एक धार्मिक चेतावनी बनकर रह जाएगा।






