
Gautam Adani's unconditional bid complicates JP Associates acquisition process for Indian lenders.
जेपी एसोसिएट्स की नीलामी में नई पेचीदगी: अडानी ग्रुप की रणनीति या जोखिम?
जेपी एसोसिएट्स अधिग्रहण में घमासान: अडानी, वेदांता, डालमिया आमने-सामने
गौतम अडानी की बिना शर्त बोली से जेपी एसोसिएट्स की बिक्री में पेच आ गया है। जानिए कैसे बैंकों के लिए यह डील बनी दुविधा का कारण। Shah Times पर पढ़ें पूरा विश्लेषण।
गौतम अडानी की चाल से उलझा जेपी एसोसिएट्स का अधिग्रहण, बैंकों के लिए बनी नई दुविधा
भूमिका भारतीय कॉर्पोरेट जगत में इन दिनों जेपी एसोसिएट्स की बिक्री को लेकर जबरदस्त हलचल मची हुई है। भारी कर्ज में डूबी इस कंपनी को खरीदने के लिए कई नामी-गिरामी समूहों ने बोली लगाई है, जिनमें अडानी ग्रुप, डालमिया सीमेंट, वेदांता और जिंदल पावर जैसे बड़े नाम शामिल हैं। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में है गौतम अडानी की अगुवाई वाले अडानी एंटरप्राइजेज की वह बोली जो बिना किसी शर्त के दी गई है। यहीं से पूरा मामला और जटिल हो गया है।
अडानी ग्रुप की ‘बिना शर्त’ बोली: गेम चेंजर या जाल?
अडानी एंटरप्राइजेज ने जेपी एसोसिएट्स को खरीदने के लिए करीब 12,600 करोड़ रुपये की बोली बिना किसी शर्त के लगाई है। यह बोली इसलिए खास मानी जा रही है क्योंकि इसमें भुगतान को किसी कानूनी विवाद, अनुमोदन या परिसंपत्ति मूल्यांकन जैसी बाधाओं से नहीं जोड़ा गया है। यानी अगर अडानी की बोली को स्वीकार किया जाता है, तो वे सीधे तौर पर कंपनी को खरीदने और भुगतान करने को तैयार हैं, भले ही भविष्य में कोई भी अप्रत्याशित जोखिम सामने आए।
लेकिन यहां एक पेच है। अडानी की यह बोली राशि के लिहाज से सबसे ऊंची नहीं है। अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनियों ने 12,000 से 14,000 करोड़ रुपये तक की बोली लगाई है, लेकिन उन्होंने कुछ शर्तें जोड़ रखी हैं। खासकर ज़मीन विवाद से जुड़ी शर्तें। ऐसे में बैंकों और कर्जदाताओं के सामने यह बड़ी दुविधा खड़ी हो गई है कि वे ज्यादा रकम की शर्तीय बोली स्वीकारें या कम रकम की बिना शर्त बोली?
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बैंकों की दुविधा: IBC कानून के तहत क्या है विकल्प?
इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC), 2016 के तहत कर्जदाता अपनी व्यावसायिक समझ के आधार पर किसी भी बोली को स्वीकार कर सकते हैं। यह जरूरी नहीं कि सबसे ज्यादा राशि वाली बोली को ही प्राथमिकता दी जाए, बल्कि कर्ज वसूली की गारंटी, प्रक्रिया में पारदर्शिता और लंबी अवधि के जोखिमों को भी ध्यान में रखा जाता है।
हालांकि, इस मामले में चूंकि अडानी की बोली बिना शर्त है, इसलिए वह अधिक ‘सुरक्षित’ मानी जा सकती है। लेकिन राशि कम होने के चलते बैंकों को कर्ज का अपेक्षित रिटर्न नहीं मिलेगा। वहीं दूसरी ओर, जिन बोलीदाताओं ने अधिक राशि की पेशकश की है, उनकी शर्तों के चलते भुगतान में देरी या कानूनी उलझनों की आशंका बनी हुई है।
क्या है स्विस चैलेंज मेथड?
बैंकों के बीच इस बात पर भी मंथन चल रहा है कि अगर बोली प्रक्रिया में पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा लानी है, तो वे स्विस चैलेंज मेथड अपनाएं। इस प्रक्रिया में सबसे ऊंची बोली को आधार माना जाता है, और अन्य इच्छुक बोलीदाता उससे बेहतर बोली लगाने का मौका पा सकते हैं। इसका उद्देश्य यह होता है कि सभी को समान अवसर मिले और कर्जदाताओं को अधिकतम लाभ सुनिश्चित हो।
सूत्रों के अनुसार, कर्जदाता उन शर्तों की भी समीक्षा कर रहे हैं जो अन्य कंपनियों ने अपनी बोलियों में शामिल की हैं। वे यह जानना चाहते हैं कि क्या वे शर्तें कानूनी रूप से व्यावहारिक हैं या सिर्फ जोखिम टालने का उपाय हैं।
क्या जेपी एसोसिएट्स को मिलेगा नया जीवन?
जेपी एसोसिएट्स, जो पहले इंफ्रास्ट्रक्चर और सीमेंट निर्माण क्षेत्र में अग्रणी हुआ करती थी, आज भारी कर्ज के बोझ तले दबी हुई है। उसके खिलाफ NCLT में दिवालिया प्रक्रिया चल रही है और अब समाधान की प्रक्रिया अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। सवाल यह है कि कौन-सी कंपनी इसे अधिग्रहित करेगी और क्या वाकई वह इसे पुनर्जीवित कर पाएगी?
इस मामले में अडानी ग्रुप की भूमिका बेहद रणनीतिक है। पिछले कुछ वर्षों में अडानी ग्रुप ने देश के इंफ्रास्ट्रक्चर, एनर्जी और सीमेंट क्षेत्रों में आक्रामक विस्तार किया है। अंबुजा और एसीसी सीमेंट के अधिग्रहण के बाद, जेपी एसोसिएट्स को खरीदना उनके सीमेंट साम्राज्य को और मजबूती दे सकता है।
रणनीतिक दृष्टिकोण: क्यों अहम है यह डील?
रियल एस्टेट और सीमेंट सेक्टर में हिस्सेदारी बढ़ाने का मौका: जेपी एसोसिएट्स के पास देशभर में फैली हजारों एकड़ जमीन है, जिसका व्यावसायिक उपयोग हो सकता है।
अडानी ग्रुप के रिटर्न स्ट्रेटजी के लिए मुफीद: बिना शर्त बोली लगाकर अडानी ने कर्जदाताओं को यह संकेत देने की कोशिश की है कि वे जोखिम उठाने को तैयार हैं और कंपनी की पुनर्निर्माण क्षमता में भरोसा रखते हैं।
बाजार में साख बढ़ाने का अवसर: अडानी समूह पर हाल ही में कई विवाद और जांचें हुई हैं। ऐसे में इस डील को लेकर पारदर्शिता और प्रतिबद्धता उन्हें बाज़ार में दोबारा मज़बूत कर सकती है।
क्या फैसला होगा कर्जदाताओं का?
जेपी एसोसिएट्स की बिक्री अब एक कॉर्पोरेट रणनीति, कानूनी व्याख्या और व्यावसायिक प्राथमिकताओं का जटिल मिश्रण बन गई है। जहां एक ओर अडानी ग्रुप की बिना शर्त बोली आकर्षक और जोखिम मुक्त दिखती है, वहीं दूसरी ओर अन्य कंपनियों की ऊंची बोली रिटर्न के लिहाज से ज्यादा फायदेमंद हो सकती है। लेकिन उनकी शर्तें ही सबसे बड़ी बाधा हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कर्जदाता अडानी ग्रुप की पारदर्शिता और प्रतिबद्धता को तरजीह देते हैं या फिर उच्चतम राशि की पेशकश को चुनते हैं। एक बात तय है, यह सौदा न सिर्फ जेपी एसोसिएट्स के भविष्य को तय करेगा, बल्कि यह भी दिखाएगा कि भारतीय कॉर्पोरेट दिवालियापन प्रक्रिया में “विश्वास बनाम मूल्य” की लड़ाई में किसकी जीत होती है।




