
भारत ने नाटो चीफ की धमकी को खारिज किया, ऊर्जा आवश्यकताओं को बताया सर्वोपरि
भारत ने नाटो की धमकी ठुकराई, कहा- ऊर्जा जरूरतें सर्वोपरि
भारत ने नाटो की धमकी को किया खारिज: ऊर्जा सुरक्षा सर्वोपरि, रूस से तेल खरीद पर नहीं होगा कोई समझौता
भारत ने नाटो चीफ की धमकी को ठुकराया। विदेश मंत्रालय ने कहा- ऊर्जा जरूरतें सर्वोपरि हैं। रूस से तेल खरीद पर नहीं बदलेगा रुख।
Shah Times Editorial
भारत की ऊर्जा नीति पर नाटो का प्रहार और नई दिल्ली की सख्त प्रतिक्रिया
भारत और रूस के बीच ऊर्जा सहयोग को लेकर हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। नाटो के नवनियुक्त महासचिव मार्क रूट द्वारा भारत, चीन और ब्राज़ील को दी गई चेतावनी – कि अगर ये देश रूस से तेल और गैस खरीदना जारी रखते हैं तो उन पर 100% सेकेंडरी टैरिफ लगाए जा सकते हैं – ने कूटनीतिक हलकों में नई बहस को जन्म दिया है। भारत ने इस धमकी को सख्ती से खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि देश की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति सर्वोच्च प्राथमिकता है।
रणधीर जायसवाल की दो टूक
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत की ऊर्जा रणनीति बाजार की स्थितियों और वैश्विक परिस्थितियों पर आधारित है, और इसमें कोई बाहरी ताकत हस्तक्षेप नहीं कर सकती। उन्होंने पश्चिमी देशों को “दोहरे मापदंड” अपनाने के खिलाफ चेतावनी भी दी।
यह टिप्पणी ऐसे समय आई जब नाटो के महासचिव और अमेरिका की ओर से रूस पर दबाव बनाने के लिए सेकेंडरी सैंक्शन की रणनीति अपनाई जा रही है। लेकिन भारत के लिए यह सिर्फ एक भू-राजनीतिक मामला नहीं, बल्कि सीधे तौर पर आर्थिक और रणनीतिक सुरक्षा से जुड़ा हुआ विषय है।
क्यों भारत के लिए रूस से तेल जरूरी है?
भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है। वर्ष 2025 की पहली छमाही में भारत ने रूस से सबसे अधिक तेल आयात किया है। मौजूदा समय में भारत का 40% कच्चा तेल रूस से आता है। इस सहयोग से भारत को अपेक्षाकृत सस्ता और स्थिर तेल आपूर्ति का विकल्प मिलता है, जिससे घरेलू महंगाई पर भी नियंत्रण रखने में मदद मिलती है।
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केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इस विषय पर कहा कि भारत किसी भी विपरीत परिस्थिति से निपटने को तैयार है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत ने 40 देशों के साथ तेल आपूर्ति के लिए समझौते किए हैं। इसका मतलब यह है कि भारत ने अपने ऊर्जा आपूर्ति स्रोतों में विविधता लाने का प्रयास किया है।
क्या है सेकेंडरी सैंक्शन और उसका प्रभाव?
सेकेंडरी सैंक्शन वे दंडात्मक आर्थिक उपाय होते हैं जिन्हें एक देश, आमतौर पर अमेरिका, उन तीसरे देशों पर लागू करता है जो किसी लक्षित देश – इस मामले में रूस – के साथ व्यापार कर रहे होते हैं। अमेरिका और अब नाटो का यह प्रयास है कि वैश्विक स्तर पर रूस को अलग-थलग किया जाए और उसकी तेल-गैस से होने वाली कमाई को रोका जाए।
लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत जैसे उभरते हुए देश, जो वैश्विक दक्षिण का प्रतिनिधित्व करते हैं, अपने ऊर्जा और सामरिक हितों को बलि चढ़ा देंगे? जवाब है – नहीं।
पश्चिम का दोहरा मापदंड?
भारत का आरोप है कि पश्चिमी देश खुद रूस से ऊर्जा व्यापार करते हैं या अप्रत्यक्ष रूप से इससे लाभ उठाते हैं, जबकि उभरते देशों पर दबाव बनाते हैं। हरदीप पुरी ने इसी दोहरे रवैये को उजागर करते हुए कहा था कि भारत जितना तेल रूस से एक क्वार्टर में खरीदता है, उतना यूरोप आधे दिन में खरीद लेता है।
यह बयान कई मायनों में पश्चिमी देशों के “अधिकारवादी” रवैये पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। जब एक ओर यूरोप खुद अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस पर निर्भर रहता है, तो भारत जैसे देश से यह अपेक्षा करना कि वह वैश्विक राजनीति में भागीदार बनने के लिए अपने घरेलू हितों की अनदेखी करे, न केवल अव्यावहारिक है बल्कि अनुचित भी।
ट्रंप की धमकी: घरेलू राजनीति या वैश्विक रणनीति?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि अगर पुतिन ने 50 दिनों में यूक्रेन के साथ शांति समझौता नहीं किया, तो रूस से व्यापार करने वाले देशों पर 100% सेकेंडरी टैरिफ लगाया जाएगा।
इस बयान को अमेरिका की आगामी राष्ट्रपति चुनावी राजनीति से भी जोड़ा जा रहा है। ट्रंप अपनी “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत वैश्विक कूटनीति को आक्रामक रूप देना चाहते हैं, लेकिन यह नीति कितनी व्यावहारिक होगी, खासकर तब जब भारत, ब्राजील और चीन जैसे बड़े बाजार रूस से अपने हितों के चलते व्यापार जारी रखना चाहते हैं?
भारत की रणनीतिक स्वायत्तता
भारत हमेशा से अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर जोर देता रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जब पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे थे, भारत ने न्यूट्रल रहते हुए रूस से व्यापार को न केवल जारी रखा, बल्कि उसे और मजबूत किया। यह नीति भारत के “बहुध्रुवीय दुनिया” के सिद्धांत पर आधारित है, जहां कोई भी देश किसी एक ब्लॉक के दबाव में आकर अपने निर्णय नहीं लेता।
रणधीर जायसवाल की यह टिप्पणी कि “हम दोहरे मापदंड के खिलाफ आगाह करते हैं” इस बात की पुष्टि करती है कि भारत न तो किसी का पिछलग्गू है और न ही किसी के कहने पर अपनी नीति बदलता है।
संभावित विकल्प और वैकल्पिक बाजार
हरदीप पुरी ने यह भी कहा कि भारत ने गुयाना, ब्राजील, कनाडा जैसे नए और पारंपरिक तेल उत्पादक देशों के साथ बातचीत शुरू की है। भारत की योजना है कि अगर रूस से तेल आपूर्ति में किसी कारणवश बाधा आती है, तो इन देशों से विकल्प तैयार रखा जाए।
इसके अलावा भारत घरेलू तेल उत्पादन में भी निवेश कर रहा है ताकि दीर्घकालिक रूप से आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके। इसका एक बड़ा लाभ यह होगा कि भारत को विदेशी दबावों के आगे झुकने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की स्थिति
भारत आज वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व कर रहा है। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के कई देश भारत की विदेश नीति को संतुलित और तर्कसंगत मानते हैं। रूस से तेल खरीद को लेकर भारत का रुख यह संदेश देता है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देने के साथ-साथ वैश्विक भू-राजनीति में एक जिम्मेदार भूमिका निभा रहा है।
दबाव के आगे नहीं झुकेगा भारत
नाटो चीफ की धमकी और ट्रंप की चेतावनियों के बावजूद भारत का रुख स्पष्ट और मजबूत है। भारत किसी भी बाहरी दबाव के सामने झुके बिना अपनी ऊर्जा जरूरतों को सर्वोपरि मानता है। यह नीति भारत की आर्थिक मजबूती और रणनीतिक आत्मनिर्भरता का संकेत देती है।
यह भी साफ है कि भारत अपनी बात कहने से डरता नहीं है। चाहे बात अमेरिकी प्रतिबंधों की हो या नाटो की धमकियों की, भारत ने हमेशा तथ्यों के साथ अपनी स्थिति स्पष्ट की है। और यही वह दृष्टिकोण है जो भारत को वैश्विक राजनीति में मजबूती से स्थापित करता है।