
भारतीयों पर पड़ेगा असर? ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीज़ा में नया प्रस्ताव
H-1B वीज़ा चयन में बदलाव: अब योग्यता और सैलरी होगी प्राथमिकता
H-1B वीज़ा में बदलाव का प्रस्ताव! अब योग्यता और सैलरी के आधार पर वीज़ा मिलेगा, ट्रंप प्रशासन लॉटरी सिस्टम को खत्म करने की तैयारी में।
प्रस्तावित नया सिस्टम: लॉटरी से योग्यता आधारित चयन की ओर
अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीज़ा प्रणाली में बड़ा बदलाव लाने का प्रस्ताव दिया है। अभी तक यह वीज़ा एक रैंडम लॉटरी सिस्टम के जरिए आवेदकों को मिलता रहा है, लेकिन अब Department of Homeland Security (DHS) ने वेटेड सिलेक्शन सिस्टम यानी वजनित चयन प्रणाली का सुझाव दिया है, जिसमें आवेदकों की सैलरी, योग्यता या वरिष्ठता जैसे मापदंडों को आधार बनाया जाएगा।
यह बदलाव 85,000 सालाना वीज़ा की स्टैचुटरली कैप्ड कैटेगरी को प्रभावित करेगा। भारत के आईटी और अन्य तकनीकी क्षेत्र के पेशेवरों पर इसका सीधा असर पड़ सकता है क्योंकि H-1B वीज़ा प्राप्त करने वालों में भारतीयों की भागीदारी सबसे अधिक है।
H-1B वीज़ा प्रणाली क्या है?
H-1B वीज़ा अमेरिका में उच्च-शिक्षित और कुशल विदेशी श्रमिकों को काम करने की अनुमति देता है। टेक कंपनियाँ जैसे कि Amazon, Microsoft, Meta आदि इस वीज़ा के जरिए बड़ी संख्या में विदेशी पेशेवरों को नियुक्त करती हैं।
साल 2022 में, 3.2 लाख वीज़ा में से 77% भारतीयों को दिए गए।
2023 में यह आंकड़ा 72.3% रहा, जो दर्शाता है कि भारतीय नागरिक इस वीज़ा प्रोग्राम में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
मौजूदा लॉटरी सिस्टम में समस्याएं
वर्तमान H-1B प्रणाली में लॉटरी के आधार पर चयन होता है, जिससे सभी आवेदकों के चयन की संभावना बराबर होती है, चाहे उनकी योग्यता, अनुभव, सैलरी कुछ भी हो। इस सिस्टम के कारण कई बार उच्च योग्य और अत्यधिक कुशल पेशेवर वीज़ा से वंचित रह जाते हैं।
इसका दूसरा पहलू यह भी है कि बड़ी टेक कंपनियाँ, जो भारी मात्रा में आवेदन दाखिल करती हैं, ज्यादा संख्या में वीज़ा हासिल कर लेती हैं। इससे आउटसोर्सिंग फर्मों को लाभ होता है, जो कम वेतन पर विदेशी श्रमिकों को नियुक्त करती हैं।
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नया प्रस्ताव: योग्यता आधारित चयन प्रक्रिया
DHS के नए प्रस्ताव के अनुसार, अब वीज़ा चयन में सैलरी और क्वालिफिकेशन जैसे मानकों को प्राथमिकता दी जा सकती है। इससे उच्च दक्षता वाले और अधिक वेतन पाने वाले उम्मीदवारों के चयन की संभावना बढ़ेगी।
20,000 वीज़ा वैसे ही मास्टर डिग्रीधारी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं।
अगर यह नियम लागू होता है, तो इससे निम्न बदलाव देखने को मिल सकते हैं:
औसत H-1B वेतन $106,000 से बढ़कर $172,000 हो सकता है।
PhD धारकों और विशेषज्ञों को प्राथमिकता मिलेगी।
कम सैलरी पर काम करवाने वाली कंपनियों को नुकसान होगा।
अमेरिका में उच्च तकनीकी और अनुसंधान प्रतिभा को बढ़ावा मिलेगा।
प्रस्ताव का आधार और विचार
इस प्रणाली की सिफारिश Jeremy L Neufeld और Institute for Progress (IFP) द्वारा किए गए एक विश्लेषण पर आधारित है। उनके अनुसार यदि वीज़ा वितरण प्रक्रिया को सैलरी आधारित किया जाए, तो H-1B प्रोग्राम का आर्थिक मूल्य 88% तक बढ़ सकता है।
Connor O’Brien, जो Economic Innovation Group के शोधकर्ता हैं, ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा:
“H-1B दुनिया के सबसे कुशल श्रमिकों को अमेरिका लाने का प्राथमिक तरीका है, इसे रैंडम तरीके से बांटना अनुचित है।”
अमेरिकी नीति और भारत पर प्रभाव
भारत के लिए यह बदलाव बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि IT सेक्टर में बड़ी संख्या में पेशेवर हर साल H-1B वीज़ा के जरिए अमेरिका जाते हैं। अगर चयन प्रक्रिया अब योग्यता आधारित होगी, तो निम्नलिखित प्रभाव होंगे:
सकारात्मक प्रभाव:
उच्च दक्षता वाले भारतीय पेशेवरों को प्राथमिकता।
PhD, AI, ML, क्लाउड और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में विशेष दक्षता रखने वालों के लिए अवसर।
नकारात्मक प्रभाव:
आउटसोर्सिंग कंपनियों की अमेरिका में पहुँच पर असर।
शुरुआती स्तर के कम वेतन वाले कर्मचारियों के लिए अवसरों में कटौती।
ट्रंप प्रशासन की नीति की पृष्ठभूमि
डोनाल्ड ट्रंप की “America First” नीति के अंतर्गत, उनकी सरकार द्वारा पहले भी वीज़ा पॉलिसी में कई बदलाव लाने की कोशिश की गई है। उनका मुख्य उद्देश्य है:
अमेरिकी नागरिकों को प्राथमिकता देना।
विदेशी श्रमिकों की संख्या कम करना।
सिस्टम में पारदर्शिता और दक्षता लाना।
भविष्य की राह: आगे क्या होगा?
फिलहाल, USCIS इस प्रस्तावित बदलाव पर नियमावली तैयार कर रहा है। इस प्रक्रिया में अभी कई चरण शेष हैं जैसे:
पब्लिक कमेंट्स इनवाइट करना
फाइनल गवर्नमेंट अप्रूवल
इम्प्लीमेंटेशन गाइडलाइन
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह बदलाव अगले वीज़ा सत्र पर लागू नहीं होगा, क्योंकि वर्ष 2025 के लिए वीज़ा कैप पहले ही पूरा हो चुका है।
निष्कर्ष: क्या वाकई बेहतर होगा नया सिस्टम?
नई प्रणाली उच्च योग्य पेशेवरों के लिए एक सुनहरा अवसर हो सकती है। इससे अमेरिका को भी फायदा होगा क्योंकि वे ज्यादा दक्ष और अनुभवी लोगों को नियुक्त कर सकेंगे। हालांकि, इस बदलाव से उन कंपनियों को नुकसान होगा जो कम वेतन पर विदेशियों को नियुक्त कर के लागत बचाती हैं।
नीति-निर्माताओं के लिए संतुलन बनाना होगा:
अमेरिका के आर्थिक हित
भारतीय पेशेवरों का भविष्य
वैश्विक टेक इकोसिस्टम में प्रतिस्पर्धा