
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: संसद सत्र से ठीक पहले क्यों लिया फैसला?
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: क्या राजनीतिक बदलाव की आहट है?
भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से अचानक इस्तीफा दिया। क्या यह केवल स्वास्थ्य कारण है या इसके पीछे कोई और कहानी है?
उपराष्ट्रपति धनखड़ का इस्तीफा: क्या सिर्फ़ स्वास्थ्य कारण, या कोई राजनीतिक संकेत?
21 जुलाई 2025 की शाम को जैसे ही यह खबर आई कि भारत के 14वें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, भारतीय राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई। उन्होंने अपने त्याग पत्र में स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है और संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के तहत तत्काल प्रभाव से पद छोड़ दिया।
हालांकि, यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है, जो इस फैसले को महज स्वास्थ्य मुद्दा कहकर नजरअंदाज करना मुश्किल बनाता है। ऐसे में सवाल उठता है—क्या यह सिर्फ एक निजी स्वास्थ्य का मामला है, या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक रणनीति है?
स्वास्थ्य कारण – तथ्य या बहाना?
धनखड़ को मार्च 2025 में दिल्ली एम्स में भर्ती किया गया था। हृदय संबंधित दिक्कतों के कारण उनकी एंजियोप्लास्टी की गई थी और स्टेंट डाला गया था। इसके बाद वे फिर से सक्रिय हो गए थे और राज्यसभा की कार्यवाही में भाग ले रहे थे।
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जून में भी उनकी तबीयत बिगड़ी थी जब वे उत्तराखंड के नैनीताल में एक कार्यक्रम में गए थे। इन घटनाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उनकी स्वास्थ्य स्थिति सच में चुनौतीपूर्ण रही है। लेकिन क्या यह इतना गंभीर था कि उन्हें संसद सत्र शुरू होने से ठीक पहले इस्तीफा देना पड़े?
एक प्रेरणादायक राजनीतिक जीवन
धनखड़ का जीवन सच में प्रेरणादायक रहा है। एक सामान्य किसान परिवार से निकलकर वे भारत के उपराष्ट्रपति तक पहुंचे।
जन्म: 18 मई 1951, किठाना गांव, झुंझुनूं, राजस्थान
शिक्षा: सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़, महाराजा कॉलेज जयपुर (B.Sc.), एलएलबी राजस्थान यूनिवर्सिटी
करियर: सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट, वाणिज्यिक मामलों के विशेषज्ञ
राजनीतिक सफर:
1989: झुंझुनूं से लोकसभा सदस्य (जनता दल)
1990: संसदीय कार्य राज्य मंत्री
1993: राजस्थान विधानसभा सदस्य (कांग्रेस)
2003: भाजपा में शामिल
2019-2022: पश्चिम बंगाल के राज्यपाल
2022: भारत के 14वें उपराष्ट्रपति नियुक्त
उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि भारत का लोकतंत्र कैसे विविध पृष्ठभूमियों के लोगों को सर्वोच्च पदों तक पहुंचने का अवसर देता है।
उपराष्ट्रपति के रूप में भूमिका और कार्यकाल
धनखड़ का उपराष्ट्रपति कार्यकाल विवादों से मुक्त नहीं रहा। उन्होंने सदन की गरिमा को बनाए रखने का प्रयास किया और कई बार विपक्ष के साथ टकराव की स्थिति भी आई।
राज्यसभा के सभापति के रूप में वे सख्त, लेकिन संतुलित रवैया रखने वाले नेता के तौर पर पहचाने गए।
उनका यह कथन बहुत कुछ कह जाता है:
“भारत के आर्थिक विकास और अभूतपूर्व परिवर्तनकारी दौर का साक्षी बनना मेरे लिए सौभाग्य और संतोष का विषय रहा है।”
इस्तीफे की चिट्ठी: भावुक शब्दों में छुपा संकेत?
धनखड़ द्वारा राष्ट्रपति को भेजी गई चिट्ठी में आभार, भावुकता और भविष्य की आशा तीनों दिखाई देती है। वे प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और सांसदों के प्रति आभार जताते हैं और कहते हैं कि उन्होंने बहुत कुछ सीखा।
लेकिन चिट्ठी का एक हिस्सा राजनीतिक संकेत दे सकता है:
“भारत की वैश्विक उन्नति और अभूतपूर्व उपलब्धियों पर गर्व महसूस कर रहा हूँ तथा उसके उज्ज्वल भविष्य के प्रति अटूट विश्वास रखता हूँ।”
यह वाक्य स्पष्ट करता है कि वे किसी भी तरह की नाराजगी या विरोध में नहीं जा रहे हैं, बल्कि किसी और “भूमिका” के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं?
क्या बीजेपी में कोई नई भूमिका तय है?
धनखड़ के इस्तीफे के समय को देखते हुए राजनीतिक विश्लेषक यह अनुमान भी लगा रहे हैं कि उन्हें पार्टी द्वारा कोई नई ज़िम्मेदारी दी जा सकती है।
क्या वे किसी संवैधानिक पद के लिए तैयारी कर रहे हैं?
क्या 2026 के किसी राजनीतिक समीकरण में उनका नाम निर्णायक हो सकता है?
यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह जरूर है कि भाजपा में उनका प्रभाव और जुड़ाव आज भी मजबूत है।
कांग्रेस और विपक्ष की प्रतिक्रिया: चुप्पी या रणनीति?
अब तक विपक्ष की तरफ से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई है। यह चुप्पी दर्शाती है कि इस इस्तीफे को सिर्फ “व्यक्तिगत निर्णय” मान लिया गया है या शायद विपक्ष भी किसी बड़े राजनीतिक फेरबदल की प्रतीक्षा में है।
संवैधानिक प्रक्रिया: अगला कदम क्या होगा?
संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति पद रिक्त होने की स्थिति में 6 महीने के भीतर चुनाव कराना आवश्यक है।
अब चुनाव आयोग की निगरानी में प्रक्रिया शुरू होगी।
प्रश्न यह भी है कि अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा? क्या फिर से दक्षिण भारत या अल्पसंख्यक समाज से कोई चेहरा चुना जाएगा?
निष्कर्ष: यह सिर्फ इस्तीफा नहीं, राजनीतिक संकेत है
धनखड़ का इस्तीफा केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं लगता। यह एक रणनीतिक मोड़ हो सकता है—एक ऐसा निर्णय जो आने वाले हफ्तों या महीनों में भारतीय राजनीति के नए समीकरणों की भूमिका तैयार कर रहा है।
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि संघर्ष, शिक्षा और अनुशासन के सहारे कोई भी व्यक्ति भारत के शीर्ष पदों तक पहुंच सकता है।
उनका इस्तीफा एक युग का अंत नहीं, बल्कि किसी नए युग की शुरुआत हो सकती है।