
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: संवैधानिक टकराव या राजनीतिक मजबूरी?
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से हिली राजनीति, विपक्ष हमलावर
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा क्या सिर्फ स्वास्थ्य कारणों से था? जानें महाभियोग, मोदी की नाराजगी और राजनीतिक हलचल की पूरी कहानी।
भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का 21 जुलाई 2025 को अचानक इस्तीफा देना भारतीय राजनीति में एक गहरी हलचल पैदा कर गया। मानसून सत्र की शुरुआत से ठीक पहले उनके द्वारा स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर पद छोड़ना जितना अचानक था, उससे कहीं ज्यादा चौंकाने वाला था वह घटनाक्रम जो अब सामने आ रहा है। सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या यह वास्तव में स्वास्थ्य कारणों से लिया गया निर्णय था, या इसके पीछे राजनीतिक मतभेद और दबाव की कहानी छिपी हुई है?
आधिकारिक कारण: स्वास्थ्य, लेकिन…
धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखते हुए अपने इस्तीफे का कारण “स्वास्थ्य” को बताया और कहा कि वे चिकित्सीय सलाह का पालन कर रहे हैं। यह कारण सुनने में जितना साधारण लगता है, राजनीतिक गलियारों में उतनी ही तेजी से चर्चाएं उठने लगीं कि क्या कोई और बात है जो जनता से छुपाई जा रही है?
सोशल मीडिया पर फैली अफवाहें: कार्यालय सील, टीम बर्खास्त?
जैसे ही इस्तीफे की खबर फैली, सोशल मीडिया पर दावे होने लगे कि उपराष्ट्रपति आवास को तुरंत खाली करने का आदेश दिया गया, और उनका आधिकारिक कार्यालय भी सील कर दिया गया है। कुछ ने तो यहाँ तक दावा किया कि उनकी सोशल मीडिया टीम को भी बर्खास्त कर दिया गया। इन दावों को PIB (प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो) की फैक्ट चेक टीम ने “पूरी तरह फर्जी” करार दिया।
पीआईबी का स्पष्टीकरण: खबरें फर्जी हैं
PIB की ओर से जारी बयान में स्पष्ट रूप से कहा गया कि उपराष्ट्रपति का सरकारी आवास सील करने और तुरंत खाली कराने जैसी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जगदीप धनखड़ फिलहाल चर्च रोड पर बने उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में रह रहे हैं और नियमों के अनुसार पूर्व उपराष्ट्रपतियों को टाइप-8 श्रेणी का सरकारी बंगला भी अलॉट किया जाता है।
असल कारण: जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला बना टकराव का केंद्र
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार, इस्तीफे के पीछे असल कारण जगदीप धनखड़ द्वारा राज्यसभा में विपक्ष द्वारा जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करना था। यह प्रस्ताव विपक्ष के 63 सांसदों ने लाया था, जिसमें राहुल गांधी का नाम भी था।
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यह फैसला सरकार के लिए असुविधाजनक था, क्योंकि सरकार चाहती थी कि कोई भी बड़ा कदम लोकसभा से शुरू हो। लेकिन धनखड़ ने नियमों के अनुसार कार्रवाई करते हुए राज्यसभा में यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके करीबी मंत्रियों की नाराजगी सामने आई।
मोदी सरकार की नाराजगी: फोन कॉल और बहिष्कार
इसी मुद्दे को लेकर केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने तुरंत धनखड़ को कॉल किया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, फोन पर काफी तीखी बातचीत हुई, जिसमें रिजिजू ने यह भी कहा कि “बिना सरकार से सलाह लिए ऐसे फैसले गलत संदेश देते हैं।” धनखड़ ने इसका जवाब देते हुए कहा कि वे केवल राज्यसभा के नियमों का पालन कर रहे हैं।
इसके बाद उसी दिन शाम को बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की मीटिंग रखी गई जिसमें दोनों मंत्री शामिल नहीं हुए। इसे धनखड़ ने व्यक्तिगत अनदेखी के रूप में लिया और रात 9:25 बजे उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
राजनीतिक अपमान या स्वाभिमान की रक्षा?
एक उपराष्ट्रपति का इस तरह अचानक इस्तीफा देना एक गंभीर संवैधानिक और राजनीतिक घटनाक्रम है। धनखड़ का अब तक का राजनीतिक करियर संघर्षों और स्पष्टवादिता से भरा रहा है। चाहे वह राज्यपाल रहते हुए ममता बनर्जी की सरकार से टकराव हो, या फिर उपराष्ट्रपति रहते संसद की कार्यवाही में विपक्ष को संयमित करने की कोशिश—धनखड़ हमेशा केंद्र में रहे।
इसलिए यह सवाल लाजिमी है कि क्या वे वास्तव में बीमार थे या फिर उन्हें ‘राजनीतिक रूप से’ बीमार घोषित कर दिया गया?
विपक्ष का दावा: जबरन लिया गया इस्तीफा
कांग्रेस नेता जयराम रमेश का बयान साफ था—“धनखड़ बिल्कुल स्वस्थ दिख रहे थे, यह इस्तीफा एक राजनीतिक दबाव का परिणाम है।” विपक्ष की यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यह दर्शाता है कि संवैधानिक पदों पर भी सत्ताधारी दल की इच्छा और असहमति का दबाव पड़ सकता है।
क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है?
अगर एक उपराष्ट्रपति, जो कि राज्यसभा के सभापति भी होते हैं, केवल इसलिए हटते हैं क्योंकि उन्होंने एक ‘असुविधाजनक’ महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार किया—तो यह संवैधानिक प्रक्रिया और लोकतंत्र दोनों के लिए खतरे की घंटी है।
ऐसे में यह बहस जरूरी हो जाती है कि क्या हम उस दिशा में जा रहे हैं जहाँ विचारों की स्वतंत्रता और संवैधानिक पद की गरिमा को राजनीतिक अनुकूलता से तौला जाएगा?
अब आगे क्या? नया उपराष्ट्रपति कौन?
धनखड़ के इस्तीफे के बाद अब नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा? क्या बीजेपी किसी ऐसे चेहरे को लाएगी जो पूरी तरह से पार्टी के अनुकूल हो? या फिर विपक्ष इस बार कोई संयुक्त उम्मीदवार लाकर मुकाबला देने की रणनीति अपनाएगा?
नतीजा: बहस का अंत नहीं, शुरुआत है
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा केवल एक व्यक्ति का पद त्याग नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र में संस्थागत स्वतंत्रता, कार्यपालिका बनाम विधायिका और संवैधानिक मर्यादाओं पर एक गंभीर विमर्श की शुरुआत है। स्वास्थ्य कारण भले ही सतही वजह लगे, लेकिन इसके पीछे की राजनीतिक कहानी कहीं गहरी है।
अब यह जनता और संसद दोनों की जिम्मेदारी है कि वे इस घटनाक्रम को केवल एक खबर के तौर पर न देखें, बल्कि इसके दूरगामी प्रभावों पर चर्चा करें।