
Congress MP Rahul Gandhi speaks at the OBC Leadership Justice Conference held at Talkatora Stadium in Delhi.
राहुल गांधी बोले: मोदी दिखावे की राजनीति करते हैं, दम नहीं है
क्या राहुल गांधी जातिगत राजनीति के नए चैंपियन बनेंगे?
राहुल गांधी ने ओबीसी सम्मेलन में स्वीकारा कि जाति जनगणना न कराना उनकी गलती थी। कांग्रेस अब सामाजिक न्याय के नए एजेंडे पर जोर दे रही है।
ओबीसी न्याय सम्मेलन से राहुल गांधी का आत्मस्वीकृति और जातीय राजनीति पर नया एजेंडा
📍 नई दिल्ली,(Shah Times)।कांग्रेस पार्टी ने शुक्रवार को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में “ओबीसी नेतृत्व भागीदारी न्याय सम्मेलन” आयोजित कर केंद्र सरकार पर सामाजिक न्याय की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए आगामी राजनीतिक एजेंडा को स्पष्ट किया। इस सम्मेलन में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ओबीसी, दलित और आदिवासी वर्गों की भागीदारी को लेकर गहन चिंतन किया और केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोला।
राहुल गांधी की आत्मस्वीकृति: “यह मेरी गलती थी”
राहुल गांधी ने कार्यक्रम की शुरुआत आत्मस्वीकृति से की। उन्होंने कहा, “मैं 2004 से राजनीति में हूं। जब पीछे देखता हूं, तो समझ आता है कि मैंने ओबीसी वर्ग के मुद्दों को ठीक से नहीं समझा। अगर मुझे तब उनके इतिहास और समस्याओं की गहराई का ज्ञान होता, तो मैं जाति जनगणना करवाने के लिए पहल करता।” यह स्वीकारोक्ति न केवल व्यक्तिगत स्तर पर आत्मविश्लेषण थी बल्कि कांग्रेस की भविष्य की रणनीति का संकेत भी।
जाति जनगणना: कांग्रेस का नया वादा?
जातिगत जनगणना की मांग अब राहुल गांधी की व्यक्तिगत गलती स्वीकारने के बाद कांग्रेस का एक केंद्रीय चुनावी वादा बन सकता है। उनका कहना कि “यह कांग्रेस की नहीं, मेरी गलती थी,” यह दर्शाता है कि पार्टी अब जातीय गणना को सामाजिक न्याय की आधारशिला मान रही है।
जातिगत जनगणना को लेकर विपक्ष पहले से ही आक्रामक रहा है, लेकिन राहुल गांधी की इस स्वीकारोक्ति से यह मुद्दा अब राष्ट्रीय बहस का केंद्र बनता दिख रहा है। यह संदेश उन वर्गों तक सीधा पहुंचता है जो वर्षों से सामाजिक प्रतिनिधित्व में पिछड़े हैं।
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मल्लिकार्जुन खरगे का पीएम मोदी पर सीधा हमला
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, “वे झूठों के सरदार हैं। दो करोड़ नौकरी, काला धन, एमएसपी— हर बात झूठ निकली। अब ओबीसी की आय बढ़ाने की बात भी केवल प्रचार है।” खरगे का यह आरोप स्पष्ट करता है कि कांग्रेस 2024 के बाद भी बीजेपी को सामाजिक न्याय के मुद्दे पर घेरे में लेने की कोशिश कर रही है।
राहुल गांधी की मोदी पर निजी टिप्पणी: “दम नहीं है”
राहुल गांधी ने एक कदम आगे बढ़कर प्रधानमंत्री को “ओवररेटेड” बताया और कहा कि “जब मैं उनके साथ कमरे में बैठा तो महसूस हुआ कि वे कोई बड़ी चुनौती नहीं हैं। मीडिया ने उन्हें जरूरत से ज्यादा महत्त्व दे दिया है।” यह बयान राजनीतिक रूप से बेहद अहम है क्योंकि राहुल गांधी अब केवल नीतियों पर ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत राजनीतिक छवि पर भी सवाल उठा रहे हैं।
प्रशासन में प्रतिनिधित्व पर बड़ा सवाल
राहुल गांधी ने सम्मेलन में प्रशासनिक पदों में ओबीसी, दलित और आदिवासी वर्ग की कम भागीदारी पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि “जब बजट बनता है और हलवा बांटा जाता है, तब 90% भारत की प्रतिनिधित्वहीन आबादी का कोई चेहरा वहां नहीं होता।” यह आरोप देश के प्रशासनिक ढांचे पर एक कठोर टिप्पणी है, जो आरक्षण और समान अवसर जैसे मुद्दों को और अधिक उभारता है।
तेलंगाना मॉडल का उदाहरण और गिग इकॉनमी की सच्चाई
राहुल गांधी ने तेलंगाना का उदाहरण देते हुए कहा कि कॉरपोरेट सेक्टर और उच्च वेतन वाले पदों में ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग की भागीदारी न के बराबर है। उन्होंने कहा कि “मनरेगा मजदूरों और गिग वर्कर्स में यही वर्ग छाए हुए हैं, लेकिन निर्णय लेने वाले पदों पर नहीं।”
यह विश्लेषण कांग्रेस की उस नई सोच को दर्शाता है जिसमें सामाजिक न्याय को केवल सरकारी नौकरी तक सीमित न रखकर व्यापक आर्थिक ढांचे से जोड़ा गया है।
शैक्षणिक संस्थानों में बहुजनों की उपेक्षा: “यह सिर्फ लापरवाही नहीं, साजिश है”
राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट कर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षित सीटों के खाली रहने को “सुनियोजित साजिश” बताया। उनका दावा है कि “यह बहुजन समाज को शिक्षा, रिसर्च और नीति निर्माण से बाहर करने की एक सोची-समझी रणनीति है।”
उन्होंने कहा कि “मनुवादी बहिष्कार” का यह रूप लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ है और रिक्त पदों को तत्काल भरने की मांग की।
बीजेपी का पलटवार: “मुखौटा उतर रहा है राहुल गांधी का”
राहुल गांधी के इन आरोपों पर बीजेपी ने तुरंत पलटवार किया। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर कहा कि “यह तब होता है जब एक कैथोलिक मां और पारसी पिता का बेटा हर किसी की जाति पूछता है।” उन्होंने राहुल गांधी की राजनीति को “विभाजनकारी और पाखंडी” बताया।
यह पलटवार कांग्रेस पर हिंदू विरोधी और जातीय ध्रुवीकरण की राजनीति करने के आरोपों की पुनरावृत्ति है।
विश्लेषण: क्या राहुल गांधी की ‘नई कांग्रेस’ सामाजिक न्याय को केंद्र में लाएगी?
राहुल गांधी की स्वीकारोक्ति, ओबीसी प्रतिनिधित्व पर चिंता, जाति जनगणना का वादा और गिग वर्कर्स पर जोर—ये सब कांग्रेस के नए एजेंडे की ओर इशारा करते हैं। कांग्रेस अब केवल विपक्ष नहीं बल्कि वैकल्पिक सामाजिक ढांचे की बात कर रही है।
यह संपादकीय सवाल उठाता है कि क्या 2024 में हार के बाद कांग्रेस ‘नरम हिंदुत्व’ से हटकर सामाजिक न्याय को ही केंद्र बनाकर 2029 की तैयारी कर रही है?
नतीजा
राहुल गांधी की यह स्वीकारोक्ति और भागीदारी सम्मेलन का आयोजन कांग्रेस की रणनीतिक दिशा को स्पष्ट करता है—जातिगत जनगणना, सामाजिक प्रतिनिधित्व, और प्रशासनिक हिस्सेदारी के जरिए एक नई राजनीतिक व्याख्या की कोशिश। भाजपा के “सबका साथ, सबका विकास” के मुकाबले यह “सामाजिक न्याय, सबका प्रतिनिधित्व” की थीम गढ़ने की कवायद है।