
After Jagdeep Dhankhar's resignation, the Vice President's chair stands vacant as political speculations rise. | Shah Times
उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू, नामों पर अटकलें
उपराष्ट्रपति चुनाव: सत्ता और विपक्ष आमने-सामने
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। भाजपा और विपक्ष दोनों अपने संभावित उम्मीदवारों को लेकर मंथन में जुटे हैं।
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति की दौड़: एक संवैधानिक पद की सियासी तपिश
भारतीय राजनीति में संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां सदैव गहन रणनीति, संगठनात्मक मजबूती और वैचारिक प्रतिबद्धता से जुड़ी होती हैं। उपराष्ट्रपति पद को लेकर यह द्वंद्व एक बार फिर सामने है, जब मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपना पद त्याग दिया। हालांकि, इस इस्तीफे को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है। ऐसे में चुनाव आयोग ने न सिर्फ नई प्रक्रिया की घोषणा कर दी है, बल्कि राज्यसभा महासचिव पीसी मोदी को मुख्य निर्वाचन अधिकारी नियुक्त कर इसे औपचारिक भी कर दिया है।
इस्तीफा या संकेत?
धनखड़ का इस्तीफा जितना औपचारिक है, उससे कहीं अधिक उसकी राजनीतिक व्याख्या हो रही है। विपक्ष इसे सिर्फ स्वास्थ्य कारण नहीं मान रहा, बल्कि इसे सरकार से नाराजगी का संकेत बता रहा है। जिस तरह धनखड़ ने अपने कार्यकाल के दौरान कभी न्यायपालिका पर टिप्पणियां कीं और कभी विपक्ष को कटघरे में खड़ा किया, वह उनके भाजपा समर्थक रुख को दर्शाता रहा। ऐसे में अचानक इस्तीफा देना महज़ व्यक्तिगत कारण नहीं माना जा सकता। विपक्ष इसे एक ‘मौन विद्रोह’ की तरह प्रस्तुत कर रहा है — एक संवैधानिक पद से सत्ता के खिलाफ खामोश असहमति।
आयोग की तेज़ी और प्रक्रिया की स्पष्टता
चुनाव आयोग ने बहुत ही स्पष्ट ढंग से अगली प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है। राज्यसभा महासचिव पीसी मोदी को निर्वाचन अधिकारी और गरिमा जैन व विजय कुमार को सहायक निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया गया है। यह स्पष्ट है कि 1974 के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव नियमों के अनुसार प्रक्रिया तेज़ी से पूरी की जाएगी।
इस चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के सदस्य मतदान करेंगे। कुल 782 सदस्य हैं और किसी भी उम्मीदवार को जीत के लिए 392 प्रथम वरीयता मतों की जरूरत होगी। लोकसभा में भाजपा के पास 293 और राज्यसभा में 130 सदस्य हैं, यानी भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के पास कुल 423 मत हैं, जो बहुमत से कहीं अधिक है।
विपक्ष की तैयारी: रणनीतिक संदेश
विपक्ष, खासकर INDIA गठबंधन, इस अवसर को राजनीतिक संदेश देने का जरिया बना रहा है। उनका प्रयास है कि एक संयुक्त उम्मीदवार उतार कर यह दिखाया जाए कि लोकतांत्रिक संस्थानों पर अंकुश लगाने के प्रयासों के खिलाफ उनका एकजुट विरोध कायम है। पिछली बार जब मार्गरेट अल्वा को विपक्ष का साझा प्रत्याशी बनाया गया था, तब भाजपा ने आसानी से चुनाव जीत लिया था, लेकिन यह प्रक्रिया विपक्ष को एकजुट करने में सहायक रही थी।
इस बार भी एक संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार के नाम पर मंथन हो रहा है, और कयास लगाए जा रहे हैं कि यह कोई दलित या पिछड़ा चेहरा हो सकता है ताकि समाज के व्यापक वर्गों को संदेश दिया जा सके।
भाजपा की रणनीति: संगठन बनाम प्रतीकात्मकता
भाजपा के लिए यह चुनाव जितना आसान दिखता है, उतना ही रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण भी है। पार्टी इस बार ‘प्रयोगधर्मिता’ से बचना चाहती है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जगदीप धनखड़ को जिस तरह से जाट समुदाय से जोड़कर प्रतीकात्मक रूप से चुना गया था, वह प्रयोग पार्टी को राजनीतिक रूप से उतना मजबूत नहीं कर सका जितनी उम्मीद थी।
इस बार चर्चा है कि भाजपा संगठन से जुड़े किसी वरिष्ठ नेता या पूर्व केंद्रीय मंत्री को इस पद के लिए नामित कर सकती है। 2017 में वेंकैया नायडू के चयन की तरह, यह पद किसी ऐसे चेहरे को मिल सकता है जो सरकार और संसद, दोनों की प्रक्रिया से भलीभांति परिचित हो।
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संभावित नाम: हरिवंश, रामनाथ ठाकुर या कोई और?
इस दौर में चर्चा में कई नाम हैं, जिनमें जेडीयू के वरिष्ठ सांसद हरिवंश का नाम प्रमुखता से सामने आया है। उन्होंने उपसभापति के रूप में लगभग सात वर्षों तक राज्यसभा में सत्तारूढ़ दल का विश्वास बनाए रखा है। हालांकि, चूंकि वे भाजपा के कोर संगठन से नहीं आते, इसलिए यह देखना रोचक होगा कि भाजपा इस बार किसी ‘बाहरी सहयोगी’ को मौका देती है या अपने ही किसी नेता पर भरोसा जताती है।
दूसरा नाम रामनाथ ठाकुर का है, जो बिहार से आते हैं और नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं। अगर भाजपा बिहार चुनाव को ध्यान में रखते हुए जातीय समीकरण साधना चाहती है तो यह नाम भी समीकरण में आ सकता है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह अधिक संभावित नहीं है।
भाजपा के लिए क्यों है यह चुनाव संवेदनशील?
भाजपा के लिए यह चुनाव भले ही गणितीय रूप से आसान हो, लेकिन राजनीतिक संदेश और आंतरिक संगठानात्मक स्थिति को देखते हुए यह उतना सरल नहीं है। जिस प्रकार धनखड़ के इस्तीफे को लेकर सवाल उठ रहे हैं, पार्टी यह नहीं चाहती कि अगला उपराष्ट्रपति किसी विवाद या वैचारिक द्वंद्व में फंसे। इसलिए उम्मीदवार का चयन इस बार बेहद सोच-समझकर किया जाएगा।
इस समय भाजपा को एक ऐसे चेहरे की तलाश है, जो पार्टी के वैचारिक ढांचे के साथ-साथ संवैधानिक मर्यादाओं का भी आदर करे और संसद में कुशलता से कार्य संचालन कर सके।
संविधानिक मर्यादा या राजनीतिक मोहरा?
उपराष्ट्रपति का पद सिर्फ एक औपचारिक संवैधानिक पद नहीं है। यह राज्यसभा के सभापति के रूप में संसद के कामकाज को नियंत्रित करता है और लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण संस्था है। ऐसे में उपराष्ट्रपति चुनाव केवल राजनीतिक दलों की ताकत नहीं, बल्कि उनके विचारों और लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति प्रतिबद्धता की परीक्षा भी बन जाता है।
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति की कुर्सी खाली जरूर हुई है, लेकिन अब यह कुर्सी किसे दी जाएगी — यह केवल संसद के गलियारों का नहीं, बल्कि देश के राजनीतिक विमर्श का भी एक अहम प्रश्न है।





