
Congress MP Priyanka Gandhi delivering a powerful speech in Lok Sabha during the Operation Sindoor discussion. | Shah Times
संसद में प्रियंका गांधी का हमला: ’26 नागरिक मारे गए, कोई ज़िम्मेदार नहीं!’
‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर प्रियंका गांधी का तीखा हमला: पहलगाम आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी कौन लेगा?
प्रियंका गांधी ने संसद में ऑपरेशन सिंदूर व पहलगाम हमले पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा, इस्तीफे और TRF हमलों की जिम्मेदारी तय करने की मांग की।
प्रियंका गांधी का संसद में हमला: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम पर ज़िम्मेदारियों से भाग रही सरकार?
लोकसभा में मंगलवार को चल रही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर बहस के दौरान कांग्रेस नेता और वायनाड सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सरकार और विशेष रूप से गृह मंत्री अमित शाह पर कड़े शब्दों में हमला बोला। उन्होंने हालिया पहलगाम आतंकी हमले को लेकर सरकार से तीखे सवाल पूछे—सबसे महत्वपूर्ण यह कि “क्या किसी ने इस्तीफा दिया?” और “किसकी ज़िम्मेदारी थी 26 नागरिकों की सुरक्षा की?”
संसद में उठा निजी दुख और राष्ट्रीय प्रश्न
प्रियंका गांधी ने अपने भाषण की शुरुआत निजी पीड़ा के उल्लेख से की। उन्होंने कहा, “आज मैं 26 परिवारों के दर्द की बात इस सदन में कर पा रही हूं तो उसके पीछे वही दर्द है जो मैंने सहा है। जब आतंकवादियों ने मेरे पिता को शहीद किया, मेरी माँ रो पड़ी थीं। वह सिर्फ़ 46 साल की थीं।” यह व्यक्तिगत पीड़ा उन्हें उन पीड़ित परिवारों से जोड़ती है जिनके परिजन पहलगाम में मारे गए।
गृहमंत्री पर तीखा पलटवार
प्रियंका गांधी ने गृह मंत्री अमित शाह पर 2008 के बटला हाउस एनकाउंटर को लेकर दिए गए बयान पर भी प्रतिक्रिया दी, जिसमें शाह ने कहा था कि “सोनिया गांधी आतंकवादियों के लिए रोई थीं।” प्रियंका ने जवाब दिया कि सोनिया गांधी केवल तब रोई थीं जब उनके पति राजीव गांधी की हत्या आतंकवादियों ने की थी।
उन्होंने पूछा कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद क्या किसी भी शीर्ष पदाधिकारी—सेना प्रमुख, खुफिया प्रमुख या गृह मंत्री ने इस्तीफा दिया? उन्होंने कहा, “इस्तीफा तो छोड़िए, इस हमले की जिम्मेदारी तक नहीं ली गई।”
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मुंबई हमलों के बाद हुए थे इस्तीफे, अब क्यों नहीं?
प्रियंका गांधी ने 26/11 मुंबई हमलों के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री और गृह मंत्री द्वारा दिए गए इस्तीफों का ज़िक्र किया और पूछा कि जब उस समय जिम्मेदारी ली जा सकती थी, तो अब क्यों नहीं?
उन्होंने कहा, “आप कहते हैं कि UPA सरकार ने कुछ नहीं किया। लेकिन आतंकियों को मारा गया और एक को पकड़ा भी गया जिसे फांसी दी गई। आज जब पहलगाम में हमला हुआ, तब आप क्या कर रहे थे?”
‘कितने भी ऑपरेशन कर लें, सच नहीं छुपेगा’
प्रियंका गांधी ने कहा, “आप कितने भी ऑपरेशन कर लें, इस सच से नहीं छुप सकते कि बैसरन वैली में मारे गए लोगों को आपने सुरक्षा नहीं दी। वे भगवान भरोसे थे।” उन्होंने संसद में मारे गए सभी 26 लोगों के नाम भी पढ़े और जब भाजपा सांसदों ने ‘हिंदू’ कहा, तब विपक्ष ने एक स्वर में कहा ‘भारतीय’।
TRF पर सरकार की चुप्पी और लापरवाही?
प्रियंका गांधी ने टीआरएफ (The Resistance Front) द्वारा किए गए हमलों की विस्तृत सूची संसद में पेश की। उन्होंने कहा कि 2020 से 2025 के बीच TRF ने 41 सुरक्षा बलों की हत्या, 27 नागरिकों की हत्या और 54 को घायल किया। इसके बावजूद भारत सरकार ने TRF को तीन साल बाद 2023 में आतंकी संगठन घोषित किया।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब यह समूह खुलेआम हमले कर रहा था, तब खुफिया एजेंसियां क्या कर रही थीं? अगर जानकारी थी, तो क्या सुरक्षा उपाय किए गए?
TRF: एक मुखौटा संगठन या नया आतंकी चेहरा?
TRF की स्थापना 12 अक्टूबर 2019 को अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के कुछ ही हफ्तों बाद हुई थी। यह लश्कर-ए-तैयबा का ही एक फ्रंट संगठन है जो सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों के ज़रिए जम्मू-कश्मीर में अपनी गतिविधियाँ चलाता है। इसका उद्देश्य स्पष्ट है—कश्मीर को भारत से अलग करना और आतंकवाद को एक लोकल नैरेटिव की शक्ल देना।
इस संगठन ने अपने डिजिटल प्रचार तंत्र के माध्यम से जम्मू-कश्मीर में आतंक को नई शक्ल दी है। इनके टेलीग्राम चैनल, ट्विटर हैंडल और अब रूसी मैसेजिंग प्लेटफॉर्म ‘टैम टैम’ के माध्यम से यह लगातार युवाओं को कट्टरता की ओर धकेल रहा है।
हालिया आतंकी घटनाएं और TRF की भूमिका
25 अप्रैल, 2025: पहलगाम में पर्यटकों पर हमला, 26 लोगों की हत्या।
20 अक्टूबर, 2024: गांदरबल में डॉक्टर समेत 7 नागरिकों की हत्या।
9 जून, 2024: रियासी में वैष्णो देवी यात्रियों की बस पर हमला।
2 फरवरी, 2020: श्रीनगर के लाल चौक में हमला।
इन घटनाओं में TRF की संलिप्तता साबित हो चुकी है और अमेरिका तक ने इसे पहलगाम हमले के लिए ज़िम्मेदार मानते हुए इसे ग्लोबल टेरर ग्रुप घोषित किया है।
राजनीति बनाम जवाबदेही
प्रियंका गांधी के सवाल केवल भावनात्मक नहीं थे, वे सत्ता की जवाबदेही की बुनियाद पर खड़े थे। उन्होंने कहा, “यह सरकार श्रेय तो लेना चाहती है, पर जिम्मेदारी नहीं। यह ताज सोने का नहीं, कांटों का है।”
नतीजा
प्रियंका गांधी का संसद में दिया गया भाषण केवल एक विपक्षी नेता की आलोचना नहीं थी, बल्कि एक नागरिक की पुकार थी—जवाबदेही के लिए, पारदर्शिता के लिए और उन 26 परिवारों के न्याय के लिए जिन्होंने अपने प्रियजनों को बैसरन वैली में खोया।
इस बहस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल एक सैन्य रणनीति नहीं, बल्कि एक राजनीतिक विमर्श का हिस्सा है, जिसमें सवाल पूछना और जवाब लेना लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत हो सकती है।