
Rahul Gandhi slams Modi on Indian economy after Trump 'dead economy' comment
मोदी-अडानी गठजोड़ ने अर्थव्यवस्था को बर्बाद किया: राहुल गांधी
भारत की अर्थव्यवस्था पर राहुल गांधी और डोनाल्ड ट्रंप के तीखे सवाल: क्या भारत ‘डेड इकोनॉमी’ की ओर बढ़ रहा है?
राहुल गांधी ने ट्रंप के ‘डेड इकोनॉमी’ बयान का समर्थन किया। मोदी-अडानी साझेदारी, ट्रेड डील और भारत की अर्थनीति पर बड़ा सवाल खड़ा किया।
भारत की अर्थव्यवस्था पर ट्रंप-गांधी हमला: आर्थिक और भू-राजनीतिक निहितार्थ
भारतीय राजनीति में भू-राजनीतिक विमर्श अब केवल विदेश नीति या सैन्य रणनीति तक सीमित नहीं रहा। अब यह सीधा आर्थिक नीति के मूल में प्रवेश कर चुका है। राहुल गांधी द्वारा डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान का समर्थन करना, जिसमें उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को “डेड इकोनॉमी” बताया था, न केवल एक राजनीतिक कटाक्ष है, बल्कि यह भारत-अमेरिका संबंधों और घरेलू आर्थिक हालात की गंभीर पड़ताल का संकेत भी देता है।
राहुल गांधी का हमला: मोदी सरकार की नीतियों पर कड़ा प्रहार
राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, “भारतीय अर्थव्यवस्था मर चुकी है। मोदी ने इसे खत्म कर दिया।” उनके आरोप बहुआयामी हैं:
अडानी-मोदी गठजोड़: राहुल का दावा है कि प्रधानमंत्री केवल गौतम अडानी के हित में फैसले ले रहे हैं, जिससे अन्य छोटे-मझोले व्यापार खत्म हो रहे हैं।
नोटबंदी और जीएसटी की विफलता: अर्थव्यवस्था को अव्यवस्थित करने वाले फैसलों के रूप में नोटबंदी और त्रुटिपूर्ण जीएसटी को चिन्हित किया गया है।
‘असेम्बल इन इंडिया’ की असफलता: मेक इन इंडिया के स्थान पर असेम्बल इन इंडिया की नीति को ‘नौकरियों की हानि’ का कारण बताया गया है।
एमएसएमई सेक्टर का सफाया: सरकार की नीतियों ने सबसे ज्यादा नुकसान सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को पहुंचाया है।
कृषि संकट: किसानों की हालत बदतर होने का जिम्मेदार भी केंद्र सरकार को ठहराया गया।
ट्रंप का बयान: डिप्लोमेसी या दबाव?
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और रूस दोनों की अर्थव्यवस्थाओं को “मरी हुई” बताते हुए सोशल मीडिया पर टिप्पणी की। साथ ही, भारत से आयातित वस्तुओं पर 25% टैरिफ लगाने की चेतावनी भी दी। यह व्यापारिक कूटनीति है या रणनीतिक दबाव, यह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसका भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर असर पड़ना तय है।
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भारत-अमेरिका व्यापार समझौता: किसके हित में?
राहुल गांधी का दावा है कि भारत और अमेरिका के बीच जो भी व्यापार समझौता होगा, वह ट्रंप की शर्तों पर होगा। इससे यह सवाल उठता है कि क्या भारत वैश्विक शक्तियों के दबाव में अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता कर रहा है?
यह टिप्पणी केवल राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं है, बल्कि यह ट्रेड नेगोशिएशन में भारत की स्वायत्तता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है।
विदेश नीति पर सवाल: क्या ‘स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी’ खतरे में है?
राहुल गांधी ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के “शानदार विदेश नीति” बयान को चुनौती देते हुए कहा कि जब अमेरिका भारत को अपमानित कर रहा है और चीन सामरिक रूप से आक्रामक है, तो क्या यह विदेश नीति की असफलता नहीं है?
इसके अलावा उन्होंने पाकिस्तान के संदर्भ में भी कहा कि भारत दुनिया में अपने पक्ष में समर्थन जुटाने में असफल रहा है। उनका तर्क है कि पाकिस्तानी जनरल आसिम मुनीर, जिसने पहलगाम हमले में कथित भूमिका निभाई, उसी के साथ ट्रंप लंच कर रहे हैं, और भारत इसे कूटनीतिक जीत बता रहा है।
‘डेड इकोनॉमी’ का तर्क: आंकड़ों में कितनी सच्चाई?
हालांकि भारत सरकार का दावा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में है, लेकिन ग्राउंड रियलिटी में बेरोजगारी, महंगाई, निवेश में गिरावट जैसे मुद्दे अक्सर मीडिया और थिंक टैंक्स की रिपोर्ट में सामने आते हैं। IMF, World Bank और RBI के आंकड़ों में वृद्धि दर तो दिखाई जाती है, लेकिन विकास का वितरण असमान प्रतीत होता है।
MSME सेक्टर में छंटनी, ग्रामीण खपत में कमी, कृषि संकट और शहरी युवाओं की बेरोजगारी जैसे संकेतक यह दिखाते हैं कि भारत में ‘जॉबलेस ग्रोथ’ हो रही है। ऐसे में ट्रंप का बयान भारत की आर्थिक साख के लिए खतरे की घंटी है।
मोदी सरकार की रणनीति: जवाब या चुप्पी?
राहुल गांधी ने सीधे सवाल किया कि प्रधानमंत्री मोदी ट्रंप के बयानों पर प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहे? क्या प्रधानमंत्री की चुप्पी रणनीतिक है या असहायता का संकेत?
अगर ट्रंप भारत के खिलाफ इतने तीखे बयान दे रहे हैं और फिर भी भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के लिए उतावला है, तो यह भारत की कूटनीतिक स्थिति की कमजोरी को उजागर करता है।
क्या यह चुनावी रणनीति का हिस्सा है?
इस बयानबाज़ी के समय पर भी चर्चा जरूरी है। 2024 में अमेरिका में और 2029 तक भारत में आम चुनाव होने हैं। क्या ट्रंप के बयान और राहुल गांधी की प्रतिक्रिया आंतरिक राजनीति के उपकरण बन रहे हैं? क्या यह ‘भारत बनाम अमेरिका’ के बदले ‘मोदी बनाम राहुल’ का नैरेटिव गढ़ने की कोशिश है?
भारत को चाहिए रणनीतिक संतुलन
राहुल गांधी और डोनाल्ड ट्रंप की टिप्पणियां भारत की अर्थव्यवस्था और वैश्विक छवि के लिए गंभीर चेतावनी हैं। यह जरूरी है कि भारत सरकार:
ट्रंप के बयानों पर स्पष्ट जवाब दे,
घरेलू आर्थिक सुधारों को मजबूती से लागू करे,
विदेश नीति में संतुलन और रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखे।
भारत जैसे उभरते हुए लोकतंत्र के लिए केवल आंकड़ों का विकास पर्याप्त नहीं है। यह भी जरूरी है कि विकास लोगों तक पहुंचे, रोजगार सृजित हों, और भारत वैश्विक मंच पर आत्मनिर्भर और सम्मानजनक भूमिका निभाए।





