
U.S. President Donald Trump and Russian President Vladimir Putin shake hands in Alaska, with Indian Prime Minister Narendra Modi standing between them, surrounded by global flags during a high-profile diplomatic meeting.
अलास्का में ट्रंप-पुतिन की वार्ता: भारत पर टैरिफ वार की आहट
अलास्का में ट्रंप-पुतिन की मुलाकात: भारत पर टैरिफ वार की धमकी और वैश्विक समीकरण
अलास्का में ट्रंप-पुतिन मीटिंग से रूस-यूक्रेन युद्ध समाधान की उम्मीद, लेकिन भारत पर टैरिफ वार की चेतावनी से बढ़ी वैश्विक हलचल।
अलास्का में बदलते वैश्विक समीकरण
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच अलास्का में होने वाली मुलाकात सिर्फ दो महाशक्तियों के बीच कूटनीतिक वार्ता नहीं, बल्कि मौजूदा वैश्विक राजनीति के पावर बैलेंस का अहम पड़ाव है। भारतीय समयानुसार 15-16 अगस्त की दरमियानी रात 1 बजे शुरू होने वाली यह मीटिंग पहले वन-ऑन-वन बातचीत से होगी और फिर दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडलों के साथ नाश्ते के दौरान जारी रहेगी।
यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पूरी दुनिया आर्थिक और ऊर्जा अस्थिरता का सामना कर रही है। अमेरिका की नजर इस मीटिंग से युद्ध खत्म करने के किसी ठोस समझौते पर है, जबकि पुतिन की प्राथमिकता अपने हितों की सुरक्षा और पश्चिमी प्रतिबंधों में ढील है।
भारत पर ट्रंप के आरोप और टैरिफ वार की धमकी
ट्रंप पहले ही आरोप लगा चुके हैं कि भारत, रूस से कच्चा तेल खरीदकर ग्लोबल मार्केट में ऊंचे दामों पर बेचकर भारी मुनाफा कमा रहा है और इससे रूस को अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन युद्ध में फंडिंग मिल रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर पुतिन के साथ बैठक फेल होती है तो भारत पर और ज्यादा टैरिफ लगाए जाएंगे।
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने ब्लूमबर्ग को बताया कि अगर हालात बिगड़े तो भारत पर सेकंडरी टैरिफ और बढ़ सकते हैं। पहले ही रूस से तेल और हथियार खरीद पर 25% टैरिफ के अलावा अतिरिक्त 25% पेनल्टी लगाने की घोषणा हो चुकी है, जो 27 अगस्त से लागू हो सकती है।
भारत का सख्त जवाब
भारत के विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि रूस से तेल खरीदना कोई विकल्प नहीं, बल्कि ग्लोबल मार्केट की मजबूरी है। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि यूक्रेन संघर्ष के बाद पारंपरिक सप्लायर्स ने यूरोप को सप्लाई देना शुरू कर दिया था, तब अमेरिका ने खुद भारत को ऐसे कदम उठाने के लिए प्रेरित किया था ताकि ऊर्जा बाजार स्थिर रह सके।
भारत ने यह भी कहा कि आलोचना करने वाले देश भी रूस से व्यापार कर रहे हैं, इसलिए दोहरे मापदंड स्वीकार नहीं होंगे।
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रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अलास्का वार्ता की अहमियत
ट्रंप ने संकेत दिया है कि अगर मीटिंग अच्छी रही तो वह एक दूसरी बैठक आयोजित करेंगे जिसमें यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की भी शामिल होंगे। हालांकि पुतिन, जेलेंस्की के साथ किसी भी तरह की सीधी बातचीत से इंकार करते आए हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मीटिंग तीन स्तरों पर महत्वपूर्ण है:
युद्धविराम की संभावना – अगर अमेरिका और रूस किसी मिनी-डील पर सहमत होते हैं, तो युद्ध में तत्काल कमी आ सकती है।
ऊर्जा बाजार पर असर – रूस से तेल और गैस सप्लाई पर सहमति होने से वैश्विक कीमतों में स्थिरता आ सकती है।
भारत की स्थिति – अगर टैरिफ वार बढ़ी, तो भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव आ सकता है, जिससे व्यापार और निवेश प्रभावित हो सकते हैं।
ट्रंप का ‘डीलमेकिंग’ अंदाज़ और पुतिन की रणनीति
ट्रंप की राजनीतिक शैली सीधी और डील-ओरिएंटेड मानी जाती है। वे सार्वजनिक तौर पर भी कड़े बयान देते हैं, ताकि वार्ता में मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहे। पुतिन, दूसरी तरफ, रणनीतिक चुप्पी और लंबी वार्ता के जरिए अपने पत्ते आखिरी समय तक छिपाए रखने के लिए जाने जाते हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि अलास्का मीटिंग में असली चुनौती ‘आपसी विश्वास’ की कमी होगी। दोनों ही नेता अपने-अपने घरेलू राजनीतिक दबावों में हैं—ट्रंप अमेरिकी चुनावी राजनीति में मजबूती चाहते हैं, जबकि पुतिन पश्चिमी प्रतिबंधों से राहत पाना चाहते हैं।
अगर डील फेल हुई तो क्या होगा?
व्हाइट हाउस ने शुरुआत में इस बैठक को केवल ‘लिसनिंग एक्सरसाइज़’ बताया था, लेकिन ट्रंप ने उम्मीदें बढ़ा दी हैं। उन्होंने कहा है कि अगर मीटिंग फेल होती है, तो वह सीधे घर चले जाएंगे और भारत व यूरोप पर टैरिफ और आर्थिक दबाव बढ़ाने के विकल्प खुले रहेंगे।
इसका मतलब है कि भारत के लिए यह मीटिंग अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक जोखिम भी लेकर आ रही है। अगर अमेरिका टैरिफ बढ़ाता है, तो भारतीय निर्यातकों और ऊर्जा सेक्टर पर भारी असर पड़ेगा।
भारत के लिए कूटनीतिक अवसर और चुनौती
भारत की विदेश नीति लंबे समय से ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ पर आधारित रही है। अलास्का वार्ता के बाद भारत के पास दो विकल्प होंगे—
संतुलन बनाए रखना – रूस से ऊर्जा सप्लाई और अमेरिका से व्यापारिक संबंध दोनों को सुरक्षित रखना।
सक्रिय मध्यस्थता – अगर अवसर मिला तो भारत, रूस-यूक्रेन शांति वार्ता में अप्रत्यक्ष भूमिका निभा सकता है, जैसा कि पहले जी20 मंच पर हुआ था।
अलास्का में ट्रंप-पुतिन मुलाकात सिर्फ दो नेताओं की राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि आने वाले महीनों में वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने वाला पल हो सकती है। भारत के लिए यह मीटिंग एक ‘टेस्ट केस’ है, जिसमें उसकी विदेश नीति, ऊर्जा सुरक्षा और व्यापारिक हित—all at stake हैं।
अगर मीटिंग से सकारात्मक नतीजे निकलते हैं, तो यह न सिर्फ रूस-यूक्रेन युद्ध में राहत देगा, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी स्थिरता ला सकता है। लेकिन अगर वार्ता फेल होती है, तो भारत को टैरिफ और कूटनीतिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है।