
Uttarakhand High Court with police deployed during Nainital Panchayat election dispute
Uttarakhand High Court ने Nainital Panchayat Polls पर जताई नाराज़गी
Uttarakhand High Court सख़्त: Law and Order फेल, डीएम-एसएसपी से स्पष्टीकरण तलब
Report : अफ़ज़ल हुसैन फ़ौजी
नैनीताल पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट ने डीएम-एसएसपी से हलफ़नामा मांगा। हथियारबंद गिरोह, सोशल मीडिया वीडियो और पुनर्मतदान पर अदालत गंभीर।
Nanital ,(Shah Times) । नैनीताल ज़िला पंचायत अध्यक्ष चुनाव का मसला अब सिर्फ़ एक स्थानीय विवाद नहीं रह गया, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शफ़ाफ़ियत और प्रशासनिक ज़िम्मेदारी का अहम इम्तिहान बन चुका है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले पर बेहद सख़्त तेवर दिखाते हुए जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से शपथपत्र मांगा है। अदालत ने साफ़ कहा कि Law and Order में किसी भी तरह का compromise बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
अदालत की टिप्पणियाँ और पुलिस की नाकामी
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और जस्टिस आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान बेहद तल्ख़ टिप्पणियाँ कीं। अदालत ने कहा कि polling centre से महज़ 200 मीटर की दूरी पर हथियारबंद गिरोह की मौजूदगी किसी भी तरह से normal घटना नहीं मानी जा सकती। इसे पुलिस की नाकामी बताया गया।
जजों ने कहा कि वोटिंग जैसी प्रक्रिया में slightest disturbance भी democratic structure के लिए ख़तरा है। अगर वोट डालने वाले नागरिक को यह भरोसा न रहे कि उसकी सुरक्षा state की पहली ज़िम्मेदारी है, तो पूरा election process संदिग्ध हो जाएगा। अदालत ने एसएसपी से विस्तृत हलफ़नामा पेश करने को कहा ताकि साफ़ हो सके कि पुलिस ने उस वक़्त क्या strategy अपनाई थी।
डीएम की सफ़ाई और अदालत की नाराज़गी
वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए डीएम वंदना ने अदालत में कहा कि सुबह 3 बजे मतगणना कराना नियमों के मुताबिक़ था और सभी मतपत्र treasury locker में सुरक्षित रखे गए। ballot papers को अदालत के सामने भी प्रस्तुत किया गया।
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लेकिन अदालत ने यह सफ़ाई क़बूल करने से इनकार करते हुए कहा कि सिर्फ़ oral explanation काफ़ी नहीं, बल्कि affidavit ज़रूरी है। कोर्ट का रुख साफ़ था कि इस तरह के संवेदनशील मामले में documentary evidence ही acceptable होगा।
कांग्रेस की याचिका और पुनर्मतदान की मांग
कांग्रेस पार्टी ने इस मामले को आगे बढ़ाते हुए fresh writ petition दाख़िल की है। उनका कहना है कि irregularities और disturbances की वजह से चुनाव की credibility पूरी तरह ख़त्म हो गई है। इसलिए re-polling होना ज़रूरी है।
अदालत में पेश किए गए वीडियो में साफ़ दिखा कि raincoat पहने कुछ लोग ज़िला पंचायत सदस्यों को बलपूर्वक ले जाते हैं। इसने electoral process की legitimacy पर गहरे सवाल उठा दिए हैं।
सोशल मीडिया वीडियो और विवाद
सुनवाई के दौरान अदालत ने उस वीडियो पर भी गंभीर चिंता जताई जिसे सोशल मीडिया पर “नैनीताल को हिला डाला” शीर्षक से अपलोड किया गया। अदालत ने कहा कि ऐसे videos सिर्फ़ माहौल बिगाड़ते नहीं बल्कि लोगों के दिलों में डर और अविश्वास भी पैदा करते हैं।
एसएसपी ने अदालत को भरोसा दिलाया कि सभी आरोपियों की जल्द गिरफ़्तारी होगी और investigation पूरी transparency से की जाएगी। अदालत ने इस मामले को भी हलफ़नामे के रूप में दर्ज करने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट का बड़ा संकेत
सुनवाई के दौरान अदालत ने संकेत दिया कि re-polling पर विचार किया जा सकता है, मगर कोई immediate फैसला नहीं दिया। अदालत ने कहा कि मामले की गहराई से पड़ताल होगी और अगली सुनवाई 19 अगस्त को होगी। यह deferment बताता है कि अदालत जल्दबाज़ी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहती बल्कि evidence-based conclusion तक पहुँचना चाहती है।
लोकतंत्र और कानून व्यवस्था का इम्तिहान
यह मामला सिर्फ़ एक चुनावी विवाद नहीं बल्कि पूरे democratic setup के लिए test बन गया है। पंचायत स्तर का चुनाव grassroots democracy की बुनियाद है। अगर वहीं पर irregularities और law & order failure हो, तो जनता का विश्वास हिलना स्वाभाविक है।
लोकतंत्र की असल ताक़त अवाम का एतमाद है। अगर अवाम यह महसूस करे कि उनका वोट सुरक्षित नहीं या उसकी गिनती सही नहीं होगी, तो democratic structure hollow साबित होगा।
अदालत परिसर में सुरक्षा
स्थिति को देखते हुए नैनीताल हाईकोर्ट परिसर और उसके आसपास धारा 144 लागू कर दी गई है। पुलिस बल की भारी तैनाती की गई है ताकि किसी भी प्रकार की अनहोनी को रोका जा सके। यह व्यवस्था बताती है कि प्रशासन अब पूरी तरह alert mode में है, लेकिन सवाल बना हुआ है कि preventive measures पहले क्यों नहीं उठाए गए।
नैनीताल केस से उठते सवाल
क्या प्रशासन वाक़ई चुनाव को secure करने में नाकाम रहा?
क्या सोशल मीडिया पर फैलाए गए वीडियोस को रोकने के लिए कोई मज़बूत mechanism मौजूद है?
क्या re-polling ही इस विवाद का सबसे न्यायसंगत समाधान है?
क्या future elections में ऐसे incidents से बचने के लिए नई policy बनाई जानी चाहिए?
नैनीताल चुनाव विवाद से यह साफ़ है कि democracy सिर्फ़ votes तक सीमित नहीं, बल्कि उस पूरी process की credibility पर निर्भर करती है। यहां जो घटनाएँ हुईं, उन्होंने transparency, law and order और administrative accountability तीनों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
हाईकोर्ट की सख़्ती दरअसल जनता का खोया हुआ भरोसा वापस लाने की कोशिश है। लेकिन जब तक ground level पर सुधार नहीं होते, तब तक अदालत की टिप्पणियाँ महज़ कानूनी दस्तावेज़ बनकर रह जाएँगी।
Democracy का असली मतलब है कि हर नागरिक का वोट counted और respected हो। अगर वो भरोसा डगमगाए, तो पूरी व्यवस्था हिल जाती है।
नैनीताल पंचायत चुनाव से जुड़ा यह विवाद अब सिर्फ़ एक local electoral fight नहीं रहा, बल्कि यह न्यायपालिका, प्रशासन और राजनीतिक दलों की credibility की परीक्षा बन गया है। 19 अगस्त की सुनवाई में अदालत क्या निर्णय लेगी, इस पर पूरे राज्य और देश की निगाहें टिकी हैं।
यह केस एक reminder है कि लोकतंत्र का मज़बूत ढाँचा तभी क़ायम रह सकता है जब कानून का सख़्ती से पालन हो और हर नागरिक का वोट पूरी ईमानदारी से सुरक्षित रखा जाए।