
BJP flag waving during a political rally in Lucknow ahead of Uttar Pradesh Assembly Election 2027 | Shah Times
BJP की तैयारी: यूपी में बड़े पैमाने पर टिकट कटौती, नया चेहरा होगा दांव
सपा के PDA से बढ़ी बीजेपी की मुश्किलें, टिकट बंटवारे में नया फ़ॉर्मूला
यूपी में BJP का इंटरनल सर्वे, कमजोर विधायकों की छुट्टी तय। 2027 चुनाव में जीत की हैट्रिक के लिए पार्टी की नई रणनीति।
यूपी विधानसभा चुनाव 2027: बीजेपी का आंतरिक सर्वे और टिकटों पर लटकी तलवार
उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2027 का विधानसभा चुनाव धीरे-धीरे नज़दीक आता जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने पहले ही चुनावी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। पार्टी अब किसी भी चूक को दोहराना नहीं चाहती। यही वजह है कि बीजेपी ने अपने विधायकों का आंतरिक सर्वे कराने का फ़ैसला लिया है। यह सर्वे केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि टिकट वितरण का आधार बनने जा रहा है। राजनीतिक हलकों में इस कदम ने हलचल मचा दी है।
बीजेपी की रणनीति: परफ़ॉर्मेंस ही टिकट की गारंटी
पार्टी सूत्रों के मुताबिक इस बार बीजेपी लगभग 100 से 115 विधायकों के टिकट काट सकती है। जिन विधायकों की पकड़ जनता में कमजोर है या जो क्षेत्रीय कार्यों में सक्रिय नहीं रहे, उनका टिकट कटना तय माना जा रहा है। यह सर्वे तीन स्तरों पर होगा –
संगठन की रिपोर्ट
जनता का फीडबैक
चुनावी संभावनाओं का आंकलन
पार्टी लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों को भी आधार बनाकर आगे की रणनीति तैयार करेगी।
विधायकों में बेचैनी
जैसे ही सर्वे की जानकारी बाहर आई, मौजूदा विधायकों में बेचैनी बढ़ गई। कई विधायक मान रहे हैं कि पार्टी अब किसी भी कीमत पर केवल परफ़ॉर्मेंस पर ध्यान देगी। यह भी कहा जा रहा है कि सर्वे के लिए किसी निजी एजेंसी की मदद ली जाएगी, ताकि निष्पक्ष रिपोर्ट सामने आ सके। यानी इस बार पैरवी, दबाव और परिवारवाद के बल पर टिकट हासिल करना मुश्किल होगा।
नए चेहरे और विपक्ष से आए नेताओं पर भरोसा
बीजेपी इस बार युवाओं और लोकप्रिय चेहरों को प्राथमिकता देने का मन बना रही है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी आधे से ज़्यादा सीटों पर नए उम्मीदवार उतार सकती है। साथ ही सपा या अन्य दलों से आए बागी नेताओं को भी टिकट दिया जा सकता है, मगर उनकी शर्त वही होगी – सर्वे में पास होना। यानी बीजेपी चाहती है कि मैदान में वही उतरे जो जीतने की क्षमता रखते हैं।
समाजवादी पार्टी का PDA: बीजेपी के लिए नई चुनौती
बीजेपी की यह रणनीति आसान नहीं होगी। दरअसल समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDA) का नया फार्मूला पेश किया है। अखिलेश यादव लगातार इस नारे को ज़मीनी स्तर पर मज़बूत कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में इसके असर की झलक पहले ही दिख चुकी है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो PDA ने बीजेपी की पारंपरिक वोट बैंक राजनीति को चुनौती दी है। यही कारण है कि बीजेपी अब और सतर्क हो गई है।
बीजेपी का मिशन: तीसरी बार पूर्ण बहुमत
बीजेपी का लक्ष्य स्पष्ट है – यूपी में लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाना। इसके लिए पार्टी नेतृत्व किसी भी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं कर रहा। जिन विधायकों के बारे में शिकायतें मिल रही थीं कि वे जनता से कट चुके हैं, उन्हें साफ़ संदेश दे दिया गया है – “या तो परफ़ॉर्मेंस सुधारो, वरना टिकट की उम्मीद छोड़ दो।”
टिकट वितरण में बदलाव
इस बार बीजेपी के टिकट वितरण में बड़ा बदलाव दिख सकता है। परिवारवाद, पैरवी और गुटबाज़ी का दौर ख़त्म होने वाला है। टिकट उन्हीं को मिलेगा जो जमीनी स्तर पर जनता से जुड़े हैं और जीतने की संभावना रखते हैं। यही वजह है कि कई विधायकों में हड़कंप मचा हुआ है।
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सपा और बीजेपी के बीच सीधी जंग
2027 का चुनाव अब बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच सीधी टक्कर का रूप लेता दिख रहा है। कांग्रेस और बसपा की स्थिति अभी भी कमजोर है। ऐसे में बीजेपी को पता है कि सबसे बड़ी चुनौती अखिलेश यादव की सपा और उसका PDA फार्मूला ही है। इसीलिए पार्टी बिना समय गंवाए हर सीट पर पहले से रणनीति तैयार करना चाहती है।
सर्वे का संदेश
इस आंतरिक सर्वे का सबसे बड़ा संदेश यही है कि बीजेपी अपने विधायकों को यह जताना चाहती है कि अब केवल पार्टी के नाम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। जनता से जुड़ाव, कामकाज और लोकप्रियता ही टिकट की गारंटी होंगे। जो विधायक इन कसौटियों पर खरे नहीं उतरेंगे, उनके लिए टिकट पाना लगभग असंभव होगा।
नतीजा
यूपी विधानसभा चुनाव 2027 केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति, नए चेहरों और जनता से जुड़ाव की परीक्षा भी है। बीजेपी का आंतरिक सर्वे इस बात का संकेत है कि पार्टी अब किसी भी कीमत पर चुनावी गलती नहीं दोहराना चाहती। वहीं, समाजवादी पार्टी का PDA समीकरण बीजेपी की राह को कठिन बना रहा है। कुल मिलाकर 2027 का चुनाव उत्तर प्रदेश की सियासत का सबसे बड़ा इम्तिहान साबित होगा।