
अमेरिका के ट्रेड वार में भारत-चीन बने एशियाई अर्थव्यवस्था के इंजन
भारत-चीन सहयोग और अमेरिकी टैरिफ़: एशिया की अर्थव्यवस्था पर नया भूचाल
भारत-चीन सहयोग और अमेरिकी टैरिफ़ पर नया आर्थिक समीकरण। चीन ने भारत को समर्थन दिया, रूसी तेल सौदे में बढ़त हासिल की।
एशियाई महाद्वीप इस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था का धड़कता हुआ दिल बन चुका है। भारत और चीन जैसे दो बड़े इंजन न सिर्फ़ क्षेत्रीय विकास को गति दे रहे हैं बल्कि पूरी दुनिया की आर्थिक दिशा भी तय कर रहे हैं। ऐसे समय में जब अमेरिका ने भारत पर भारी-भरकम टैरिफ़ लगाए हैं, चीन ने साफ़ संदेश दिया है कि वह भारत के साथ खड़ा है। यह बयान ऐसे दौर में आया है जब भू-राजनीतिक समीकरण तेज़ी से बदल रहे हैं और ऊर्जा बाज़ार में भी बड़ा उथल-पुथल देखने को मिल रहा है।
चीन का भारत को आश्वासन
चीनी राजदूत शू फेइहोंग ने अमेरिका की टैरिफ़ पॉलिसी का विरोध करते हुए कहा कि “ख़ामोशी सिर्फ़ दबाव डालने वालों को और ताक़त देती है। चीन मजबूती से भारत के साथ खड़ा रहेगा।”
उनके मुताबिक़, भारत और चीन एशिया के आर्थिक विकास के दो मज़बूत इंजन हैं, जिनकी साझेदारी न सिर्फ़ क्षेत्रीय, बल्कि ग्लोबल स्थिरता के लिए भी ज़रूरी है।
भारत-चीन रिश्ते की नई परिभाषा
राजदूत शू ने यह भी कहा कि दोनों देशों को प्रतिस्पर्धा की जगह साझेदारी को तरजीह देनी चाहिए। उनकी नज़र में भारत-चीन सहयोग एशिया के लिए “दोस्ताना विकास मॉडल” साबित हो सकता है।
भारत और चीन की एकता पूरे एशिया की तरक़्क़ी के लिए अहम
आपसी भरोसे और रणनीतिक संवाद को मज़बूत करने पर ज़ोर
चीनी मार्केट में भारतीय प्रोडक्ट्स के लिए दरवाज़े खोलने का वादा
सीमा विवाद और कूटनीतिक वार्ता
भारत और चीन के बीच जारी सीमा विवाद अब भी एक बड़ा मसला है। हाल ही में दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों की 24वीं बैठक हुई, जिसमें चीनी विदेश मंत्री वांग यी और भारतीय एनएसए अजीत डोभाल मौजूद रहे।
इस मीटिंग में 10 अहम सहमतियां बनीं
दोनों देशों ने सीमा पर शांति बनाए रखने का वादा किया
बातचीत से मसलों को सुलझाने की सहमति दोहराई गई
यह संकेत है कि दोनों पक्ष विवाद को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
अमेरिकी दबाव और भारत की मुश्किलें
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ़ नीतियों ने वैश्विक बाज़ार में अस्थिरता पैदा कर दी है।
भारत पर 50% तक टैरिफ़ का ऐलान
रूसी तेल की खरीद को लेकर भारत को टारगेट करना
ऊर्जा सुरक्षा और सप्लाई चेन पर असर
इससे भारत पर दोहरा दबाव है—एक तरफ़ अमेरिका की नाराज़गी और दूसरी तरफ़ घरेलू अर्थव्यवस्था की ज़रूरतें।
चीन का अवसरवाद और रूसी तेल
जब भारत अमेरिकी दबाव के चलते रूसी कच्चे तेल की खरीद घटा रहा है, वहीं चीन इस मौके को भुनाने में जुट गया है।
चीन ने अक्टूबर-नवंबर के लिए 15 बड़े रूसी ऑयल कार्गो सुरक्षित किए
हर शिपमेंट में 7 से 10 लाख बैरल कच्चा तेल
भारत की कमी को चीन ने अपने लिए अवसर में बदला
यह स्पष्ट करता है कि चीन ऊर्जा सुरक्षा के मामले में आक्रामक रणनीति अपना रहा है और भारत को अमेरिकी दबाव के बीच अकेला पड़ने का डर सताने लगा है।
भारत-चीन आर्थिक साझेदारी: संभावनाएं और चुनौतियां
भारत और चीन के बीच व्यापारिक रिश्ते लंबे समय से असंतुलित रहे हैं।
भारत का चीन से आयात ज़्यादा, निर्यात कम
तकनीक, डिजिटल और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सहयोग की संभावना
राजनीतिक अविश्वास और सीमा विवाद सबसे बड़ी रुकावट
अगर दोनों देश आर्थिक स्तर पर सहयोग गहरा करते हैं तो यह न सिर्फ़ अमेरिका की दबाव राजनीति का जवाब होगा बल्कि एशिया में नई आर्थिक धुरी का निर्माण भी कर सकता है।
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भू-राजनीतिक निहितार्थ
भारत-चीन की साझेदारी वैश्विक सप्लाई चेन को प्रभावित करेगी
अमेरिकी-यूरोपीय नीतियों को संतुलित करने में मदद मिलेगी
रूस-भारत-चीन का ऊर्जा त्रिकोण नया पावर सेंटर बन सकता है
लेकिन इसके लिए भारत को अपनी विदेश नीति में संतुलन साधना होगा, ताकि वह अमेरिका और पश्चिम से पूरी तरह दूर न हो जाए।
निष्कर्ष
भारत और चीन की साझेदारी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकती है। लेकिन यह तभी संभव है जब दोनों देश आपसी अविश्वास को पीछे छोड़कर सहयोग की दिशा में ठोस कदम उठाएँ। अमेरिका की टैरिफ़ पॉलिसी ने एशिया को एक अवसर दिया है कि वह अपनी “स्वतंत्र आर्थिक व्यवस्था” विकसित करे। भारत के लिए यह चुनौती और अवसर दोनों है कि वह अपनी कूटनीतिक चालों से एशिया की नई आर्थिक धुरी का हिस्सा बने।






