
जेपीसी विवाद से डगमगाई इंडिया गठबंधन की एकता
जेपीसी पर कांग्रेस असमंजस में राहुल गांधी के सामने मुश्किल
पीएम-सीएम वाले बिल पर जेपीसी को लेकर इंडिया गठबंधन बिखरता दिख रहा है। कांग्रेस दबाव में, सहयोगी दल अलग राह पर। राहुल गांधी मुश्किल में।
New Delhi,( Shah Times) । भारतीय सियासत में इस वक़्त जो सबसे बड़ा सवाल खड़ा हुआ है, वह है प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को 30 दिन की हिरासत के बाद पद से हटाने वाले तीन विवादित विधेयक और उन पर विचार करने के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति। इस समिति को लेकर ही विपक्षी खेमे यानी इंडिया गठबंधन में दरारें सामने आ रही हैं।
कांग्रेस जहां जेपीसी में शामिल होकर बिल की कमज़ोरियों को उजागर करना चाहती है, वहीं समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव गुट) और आम आदमी पार्टी साफ़ कह चुकी हैं कि वे इस समिति का हिस्सा नहीं बनेंगी। सवाल यह है कि क्या यह मतभेद विपक्ष की एकता को तोड़ देगा?
बिल का विवादित प्रावधान
इस संविधान संशोधन बिल में प्रावधान है कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी ऐसे आपराधिक मामले में गिरफ्तार होता है जिसकी सज़ा पाँच साल या उससे ज़्यादा है, और वह 30 दिन से अधिक हिरासत में रहता है, तो वह स्वतः पद से हट जाएगा। हालांकि, जेल से छूटने के बाद वह दोबारा पद ग्रहण कर सकता है।
यह बिल संसद में पेश होते ही विवादों के घेरे में आ गया। विपक्ष का आरोप है कि भाजपा इस क़ानून का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए करेगी।
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इंडिया गठबंधन में मतभेद
सहयोगियों का बहिष्कार
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि यह भाजपा की साज़िश है और जेपीसी में शामिल होना इस साज़िश को वैधता देने जैसा होगा।
अखिलेश यादव ने इसे संघीय ढांचे पर हमला बताया और कहा कि यह राज्यों की स्वायत्तता छीनने की चाल है।
उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) ने भी बहिष्कार किया और कहा कि असली लड़ाई जनता के बीच लड़ी जाएगी, न कि भाजपा की बनाई कमेटी में।
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी साफ़ कहा कि यह बिल भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए नहीं बल्कि विपक्ष को टारगेट करने के लिए लाया गया है।
कांग्रेस की दुविधा
कांग्रेस नेतृत्व, ख़ासकर राहुल गांधी, जेपीसी में शामिल होने के पक्ष में हैं। उनका तर्क है कि समिति के भीतर जाकर बिल के कमजोर पक्षों को रिकॉर्ड पर रखा जा सकता है। लेकिन सहयोगियों के बहिष्कार ने कांग्रेस को असमंजस में डाल दिया है।
विश्लेषण
कांग्रेस की रणनीति
कांग्रेस चाहती है कि भाजपा को खुले मंच पर चुनौती दी जाए। जेपीसी में जाकर बिल के संवैधानिक खामियों को उजागर करना पार्टी को एक ज़िम्मेदार विपक्ष के तौर पर पेश करेगा।
सहयोगियों का तर्क
ममता, अखिलेश और केजरीवाल का मानना है कि भाजपा की बनाई समिति में शामिल होना विपक्ष की ताक़त को कमज़ोर करेगा। उनका मानना है कि भाजपा संख्या बल के दम पर वैसे भी समिति में बिल के पक्ष में रिपोर्ट देगी।
गठबंधन की असली परीक्षा
यह विवाद बिहार विधानसभा चुनाव से ऐन पहले सामने आया है। राजद भी अब कांग्रेस से अलग राह पकड़ सकता है, जिससे गठबंधन की एकजुटता और कमज़ोर होगी। केवल डीएमके कांग्रेस के साथ खड़ी दिख रही है।
विरोधाभास और विकल्प
एक ओर कांग्रेस समिति में जाकर विपक्ष का स्टैंड दर्ज कराना चाहती है।
दूसरी ओर सहयोगी दल मानते हैं कि समिति का हिस्सा बनना भाजपा को राजनीतिक वैधता देना है।
सवाल यह है कि क्या विपक्ष सड़क पर लड़ाई लड़े या संसदीय समिति के भीतर?
विपक्ष की मुश्किलें
इंडिया गठबंधन का उद्देश्य था भाजपा को चुनौती देना। लेकिन अगर हर बड़े मुद्दे पर मतभेद खुलकर सामने आएंगे, तो भाजपा को विपक्ष की कमजोरी का फायदा मिलेगा।
राहुल गांधी इस समय “बीच मजधार” में हैं। अगर वे जेपीसी में जाते हैं तो सहयोगी नाराज़ होंगे। अगर नहीं जाते तो कांग्रेस की “मुख्य विपक्षी” की छवि को नुकसान होगा।
निष्कर्ष
पीएम-सीएम वाले बिल पर विवाद सिर्फ़ एक क़ानूनी बहस नहीं है, बल्कि यह विपक्षी राजनीति का अगला मोड़ तय करेगा। क्या कांग्रेस जोखिम उठाकर जेपीसी में जाएगी या गठबंधन की एकता बचाने के लिए पीछे हटेगी? यह आने वाले दिनों में साफ़ होगा।
इस पूरे विवाद ने एक बार फिर दिखा दिया है कि इंडिया गठबंधन अभी भी रणनीति और नेतृत्व पर एकमत नहीं है। विपक्ष की यह कमजोरी भाजपा के लिए सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार साबित हो सकती है।