
भारत में इकलौता ऐसा मंदिर जहां पर विराजमान है बिना सुंड वाले गणेश जी?
इस समय गणपति उत्सव की बड़े ही जोर-शोर से तैयारियां चल रही है। भारत में गणेश उत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोग अपने घरों में या फिर पंडाल में गणपति जी की प्रतिमा रखकर 10 दिन तक उनकी बड़ी श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करते हैं फिर उसके बाद गणपति जी का विसर्जन किया जाता है। जब तक गणपति जी घर में पधारे हुए होते हैं तब तक उनका बहुत ही समान पूर्वक पूजन एवं उनके खाने पीने तक का ध्यान रखा जाता है। लोग बड़ी ही श्रद्धा भाव से प्रसाद आदि का वितरण करते हैं। लेकिन अब तक आपने सिर्फ सुंड वाले गणेश जी को ही देखा होगा बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि विश्व में एक बिना सुंड वाला गणेश जी की प्रतिमा का मंदिर भी है। तो चलिए आज हम आपको इस मंदिर के बारे में बताने वाले हैं।जहां पर बिना सुंड वाले गणेश जी विराजमान है।
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता माना जाता है, इसलिए हर शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा करना हमारी परंपरा का हिस्सा है। देशभर में उनके सैंकड़ों मंदिर हैं, लेकिन कुछ मंदिर अपनी विशेषता और अनोखी परंपराओं के कारण खास पहचान रखते हैं। इनमें से एक है गढ़ गणेश मंदिर जो राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित है।
आईए जानते हैं मंदिर का इतिहास?
यहां होती है भगवान गणेश के बाल स्वरूप कि पूजा
गढ़ गणेश मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां भगवान गणेश की मूर्ति को बाल रूप (बिना सूंड वाले गणेश) में स्थापित किया गया है। भक्त मानते हैं कि यहां गणपति बप्पा ‘पुरुषकृति’ स्वरूप में विराजमान हैं। यह अद्वितीय स्वरूप भक्तों के लिए आकर्षण और श्रद्धा का विशेष कारण है।
सैकड़ों साल पुराना है मंदिर का इतिहास
गढ़ गणेश मंदिर का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 18वीं शताब्दी में करवाया था। कहा जाता है कि जब उन्होंने जयपुर बसाने से पहले अश्वमेध यज्ञ किया, तभी इस मंदिर की नींव रखी। उन्होंने भगवान गणेश की मूर्ति इस प्रकार स्थापित की कि सिटी पैलेस के चंद्र महल से दूरबीन की मदद से भी इसे देखा जा सके। इस अनोखी योजना से महाराजा की भक्ति और स्थापत्य दृष्टि का अंदाजा लगाया जा सकता है। बता दें, गढ़ गणेश मंदिर से ही जुड़ा हुआ है बाड़ी चौपड़ स्थित ध्वजाधीश गणेश मंदिर, जिसे इसका ही हिस्सा माना जाता है।
मूषकों के कान में अपने दुख कहते हैं भक्त?
गढ़ गणेश मंदिर केवल अपनी प्राचीनता के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी विशिष्ट पूजा-पद्धति के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां भगवान गणेश की प्रतिमा अनोखी मानी जाती है। मंदिर परिसर में दो विशाल मूषक (चूहे) स्थापित हैं। श्रद्धालु इन मूषकों के कानों में अपनी समस्याएं और इच्छाएं बताते हैं। मान्यता है कि ये मूषक भक्तों की बात सीधे बप्पा तक पहुंचाते हैं और भगवान गणेश उनके कष्ट हर लेते हैं।
चिट्ठी लिखकर पूरी होती है मन्नतें
गढ़ गणेश मंदिर की सबसे दिलचस्प बात यह है कि भक्त अपनी मन्नतें चिट्ठी या निमंत्रण पत्र लिखकर भेजते हैं। जी हां, आप बिल्कुल सही पढ़ रहे हैं! लोग अपनी शादी, घर में बच्चे के जन्म, नई नौकरी या किसी भी शुभ कार्य का निमंत्रण सबसे पहले गणेश जी को भेजते हैं। इस मंदिर के पते पर रोजाना सैकड़ों चिट्ठियां आती हैं, जिन्हें पढ़कर भगवान के चरणों में रखा जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और भक्तों का मानना है कि गणेश जी उनकी हर पुकार सुनते हैं।
365 सीढ़ियां पार करके होते हैं बप्पा के दर्शन
मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 365 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो साल के 365 दिनों का प्रतीक हैं। यह चढ़ाई थोड़ी थकाऊ हो सकती है, लेकिन मंदिर तक पहुंचते ही जो शांति और सुकून मिलता है, वह हर थकान को दूर कर देता है। यहां से पूरे जयपुर शहर का मनोरम दृश्य दिखाई देता है, खासकर सूरज ढलने के समय।
अगर आप कभी जयपुर जाएं, तो गढ़ गणेश मंदिर के दर्शन जरूर करें। यहां का शांत वातावरण और भक्तों का अटूट विश्वास आपको एक अलग ही अनुभव देगा।