
योगी आदित्यनाथ का विज़न: मज़दूरों की सुरक्षा और निवेश को बढ़ावा
यूपी की नई पहल: श्रम कानून सुधार से उद्योगों और कामगारों दोनों को राहत
सीएम योगी आदित्यनाथ ने यूपी श्रम कानूनों में सुधार का ऐलान किया। अब जेल की जगह जुर्माना, आपराधिक प्रावधान होंगे गैर-आपराधिक। उद्योग और श्रमिक दोनों को राहत।
Lucknow,( Shah Times )। लखनऊ की सियासी फिज़ा में गुरुवार की सुबह एक नया पैग़ाम गूंजा जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सरकारी आवास पर श्रम कानून विभाग की समीक्षा बैठक की। इस बैठक से जो फ़ैसले निकले, उन्होंने न केवल सूबे की इंडस्ट्री और ट्रेड की शक्ल-सूरत बदलने का संदेश दिया बल्कि मज़दूरों और कामगारों के हक़ूक़ की हिफ़ाज़त का भी भरोसा दिलाया।
सीएम योगी का ऐलान साफ़ था – यूपी अब उन चंद राज्यों में शामिल होने जा रहा है जो आपराधिक कानूनों को गैर-आपराधिक श्रेणी में बदलकर श्रम कानूनों में जेल की जगह जुर्माना को प्राथमिकता देंगे।
विश्लेषण
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा आबादी वाला प्रदेश है और यहां के उद्योग, व्यापार और कृषि ढांचा देश की इकोनॉमी को बड़ा सहारा देते हैं। लंबे समय से यह शिकायत उठती रही कि जटिल श्रम कानून और आपराधिक प्रावधान न केवल उद्योगपतियों को डराते हैं बल्कि निवेशकों को भी हिचकिचाहट में डालते हैं।
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योगी सरकार ने इस ऐतिहासिक सुधार के ज़रिए एक तरफ़ उद्योग जगत को यह संदेश दिया है कि Ease of Doing Business का रास्ता और आसान होगा, वहीं दूसरी तरफ़ मजदूरों और कामगारों को यह भरोसा दिया है कि उनके हक़ूक़ पर कोई आँच नहीं आने दी जाएगी।
बैठक में सीएम योगी ने यह भी कहा कि “आउटसोर्सिंग कंपनियों को किसी भी सूरत में मज़दूरों का शोषण करने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। हर मज़दूर को पूरा वेतन मिलेगा और अतिरिक्त ख़र्च का बोझ सरकार ख़ुद उठाएगी।”
मुख्य सुधार बिंदु
आपराधिक कानूनों का गैर-आपराधिक रूपांतरण
श्रम कानूनों में जेल की जगह जुर्माना
फैक्ट्री लाइसेंस की अवधि बढ़ाना
दुकानों व प्रतिष्ठानों के नियमों में व्यावहारिक बदलाव
महिलाओं को अधिक अवसर उपलब्ध कराना
निरीक्षण व्यवस्था में स्व-सत्यापन और थर्ड पार्टी ऑडिट
निवेश मित्र 3.0 के ज़रिए डिजिटल और पारदर्शी प्रक्रिया
प्रतिवाद और सवाल
हालांकि यह सुधार एक सकारात्मक पहल के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन मज़दूर यूनियनों और कुछ सामाजिक संगठनों ने इस पर सवाल भी उठाए हैं।
उनका कहना है कि जब आपराधिक कानूनों को गैर-आपराधिक बनाया जाएगा, तो कई बार कंपनियां इसे ढाल की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं और मज़दूरों के अधिकारों को नज़रअंदाज़ कर सकती हैं। जुर्माना देना बड़ी कंपनियों के लिए आसान है, लेकिन इसका असली असर मज़दूर तबके पर पड़ सकता है।
एक और बड़ा सवाल पारदर्शिता का है। अगर निरीक्षण केवल थर्ड पार्टी या स्व-सत्यापन पर आधारित होगा तो छोटे स्तर पर मज़दूरों की शिकायतों को कैसे गंभीरता से लिया जाएगा?
इस सुधार को लेकर विपक्षी दलों ने भी बयान दिए हैं। उनका कहना है कि योगी सरकार केवल उद्योगपतियों को राहत देने का खेल खेल रही है, मज़दूरों के असली मसले – न्यूनतम मज़दूरी, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा और ठेका मज़दूरी का समाधान अब तक अधूरा है।
नतीजा
फिर भी एक बात साफ़ है कि उत्तर प्रदेश ने देश के सामने श्रम कानून सुधारों की एक नई मिसाल पेश की है। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो यह मुमकिन है कि आने वाले समय में अन्य राज्य भी इसी राह पर चलें।
सीएम योगी आदित्यनाथ का यह कदम न सिर्फ़ निवेशकों के लिए संदेश है बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी यह दिखाता है कि यूपी अब ग्लोबल इन्वेस्टमेंट हब बनने की तैयारी में है।
उद्योग जगत इसे Ease of Doing Business 2.0 की तरह देख रहा है, जबकि मज़दूरों के लिए यह वक़्त है जागरूक रहने का और यह सुनिश्चित करने का कि उनके हक़ूक़ को जुर्माने की परछाई में दबाया न जाए।
समाप्ति पर यही कहा जा सकता है कि यह फैसला अगर ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ लागू हुआ तो यूपी का आर्थिक और सामाजिक ढांचा दोनों मज़बूत होंगे। मगर निगरानी और मज़दूरों की आवाज़ को तवज्जो देना सरकार के लिए सबसे अहम ज़िम्मेदारी होगी।