
अमेरिका-भारत रिश्तों में तल्ख़ी
डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के दरमियान तनावपूर्ण रिश्तों की झलक
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ़, नोबेल सियासत और क्वाड दौरे को लेकर सख़्त रुख़ अपनाया। जानें क्यों बिगड़ रहे हैं भारत-अमेरिका रिश्ते।
भारत-अमेरिका रिश्तों में नया मोड़
भारत और अमेरिका के रिश्ते हमेशा से “स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप” के तौर पर पेश किए जाते रहे हैं। मगर हाल के महीनों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तेवर बदलते दिखे। पहले 50% टैरिफ़, फिर क्वाड सम्मेलन के लिए भारत यात्रा का रद्द होना, और उसके बाद भारत की अर्थव्यवस्था को “Dead” बताने वाली टिप्पणी ने नई बहस छेड़ दी है। सवाल उठता है: क्या यह सब महज़ ट्रंप की घरेलू राजनीति का हिस्सा है, या फिर भारत-अमेरिका रिश्ते वाक़ई एक निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं?
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टैरिफ़ पॉलिसी या पर्सनल नाराज़गी?
अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर 25% टैरिफ़ व्यापार घाटा कम करने के नाम पर और अतिरिक्त 25% रूस से तेल खरीदने के लिए सज़ा के तौर पर लगाया। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि यह “इकोनॉमिक पॉलिसी” से ज़्यादा “पॉलिटिकल नाराज़गी” का इशारा है।
दरअसल, वॉशिंगटन में यह धारणा है कि भारत ने अमेरिकी दबाव के बावजूद रूस से तेल खरीद कर ट्रंप की नीति को चुनौती दी। ट्रंप की राजनीति में “अनकंडीशनल ऑबीडियंस” यानी बग़ैर सवाल जवाब आज्ञापालन अहम है। जब दिल्ली ने यह रास्ता नहीं चुना तो नाराज़गी लाज़िमी थी।
नोबेल शांति पुरस्कार की चाहत और भारत का इनकार
17 जून को हुई एक फोन कॉल ने इस पूरी तनातनी की शुरुआत की। ट्रंप ने दावा किया कि भारत-पाक संघर्ष उन्होंने ख़त्म कराया और पाकिस्तान उन्हें नोबेल के लिए नामित कर रहा है। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से मोदी से उम्मीद की कि वे भी समर्थन करें।
मोदी का जवाब साफ़ था: “सीज़फायर में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं रही।” यही से दोनों नेताओं के बीच खटास पैदा हुई। मोदी की सख़्त असहमति ने ट्रंप के अहंकार को चोट पहुंचाई।
व्यापार समझौते और मोदी का “ना”
अमेरिका चाहता था कि Mini Trade Deal पर साइन हो। मगर भारत तैयार नहीं था।
अमेरिकी अधिकारियों का डर था कि ट्रंप अपने प्लेटफ़ॉर्म पर किसी भी समझौते को अपने हिसाब से प्रस्तुत कर सकते हैं, जिससे विश्वास में कमी आ सकती है।
मोदी ने बार-बार उनकी कॉल्स का जवाब नहीं दिया। यह डिप्लोमैटिक साइलेंस ही नाराज़गी का सबसे बड़ा सबब बना।
क्वाड सम्मेलन और रद्द हुआ दौरा
भारत इस साल के अंत में Quad Summit होस्ट कर रहा है। शुरुआत में ट्रंप ने आने की हामी भरी थी, लेकिन अब यह प्लान रद्द कर दिया गया।
असल मसला यह था कि ट्रंप उसी समय पाकिस्तान के आर्मी चीफ़ को भी मुलाक़ात में शामिल करना चाहते थे। दिल्ली ने इसे “क्रॉस-लाइन” मान लिया और इंकार कर दिया। नतीजा: ट्रंप का दौरा रद्द।
इमिग्रेशन, वीज़ा और भारतीय डायस्पोरा का मसला
H1B वीज़ा पर सख़्ती, भारतीय छात्रों की वीज़ा समीक्षा, और अवैध प्रवासियों को क़ैद कर वापस भेजने की घटनाओं ने भी रिश्तों में ज़हर घोला।
भारतीय प्रवासी समुदाय, जो हमेशा अमेरिका-भारत रिश्तों की “ब्रिजिंग फोर्स” रहा है, अब असुरक्षित महसूस कर रहा है।
Analysis : “Make America Great Again” बनाम “New India”
ट्रंप की नीति का मूल है MAGA (Make America Great Again), जबकि भारत की नीति है Atmanirbhar Bharat (Self-Reliant India)।
जब दो राष्ट्रीय नेता अपने-अपने वोट बैंक के लिए प्रोटेक्शनिज़्म अपनाते हैं, तो टकराव नैसर्गिक है। यही वजह है कि अमेरिका-भारत रिश्ते अब सिर्फ़ रणनीतिक नहीं, बल्कि पर्सनल पॉलिटिक्स के रंग में रंगे जा रहे हैं।
काउंटरपॉइंट्स: क्या ट्रंप सही थे?
क्या भारत वास्तव में रूस से तेल खरीदकर अमेरिका को चुनौती दे रहा था?
क्या मोदी का बार-बार ट्रंप को इग्नोर करना डिप्लोमैटिकली सही था?
क्या ट्रंप की नाराज़गी उनकी नोबेल पॉलिटिक्स से अधिक अमेरिका की ट्रेड पॉलिसी का हिस्सा थी?
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के टैरिफ़ भारत को सीधे निशाना बनाने से ज्यादा उनका चुनावी नारेटिव मजबूत करने का हिस्सा थे।
नतीजा: रिश्ते संभलेंगे या और बिगड़ेंगे?
भारत और अमेरिका दोनों ही रणनीतिक रूप से एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण हैं—Quad, Indo-Pacific, टेक्नोलॉजी और ट्रेड के मोर्चे पर।
लेकिन ट्रंप और मोदी के बीच व्यक्तिगत मतभेद अगर ऐसे ही बने रहे तो इसका असर पूरे रिश्ते पर पड़ेगा।
इतिहास यह दिखाता है कि राज्य के रिश्ते व्यक्तिगत नाराज़गी से अधिक अहम होते हैं। सवाल यह है कि क्या दिल्ली और वॉशिंगटन इस तल्ख़ी को काबू कर पाएंगे या यह फासला और बढ़ेगा।