
Shah Times Punjab floods relief by Jamiat Ulama-i-Hind under Maulana Arshad Madani leadership
पंजाब बाढ़: जमीयत उलेमा-ए-हिंद की इंसानियत की मिसाल
मौलाना अरशद मदनी की अपील पर पंजाब में राहत का सैलाब
मौलाना अरशद मदनी की अपील पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने पंजाब बाढ़ पीड़ितों के लिए बड़े पैमाने पर मदद पहुँचाई, इंसानियत की मिसाल पेश की।
New Delhi,(Shah Times)। पंजाब की ज़मीन, जो कभी हरियाली और खुशहाली की मिसाल मानी जाती थी, आज बाढ़ के कहर से कराह रही है। नदियाँ उफान पर हैं, गाँव डूब चुके हैं, घर उजड़ चुके हैं और इंसानों के साथ जानवरों का भी जीना मुश्किल हो गया है। यह सिर्फ़ एक प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि लाखों इंसानों की ज़िंदगियों को झकझोर देने वाली त्रासदी है।
ऐसे में जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-i-Hind) और उसके सदर मौलाना अरशद मदनी (Maulana Arshad Madani) की अपील ने राहत कार्य को नई दिशा दी है। इस अपील का असर यह हुआ कि न सिर्फ़ पंजाब बल्कि पूरे मुल्क के अलग-अलग हिस्सों से लोग और संस्थाएँ मदद के लिए आगे आए।
पंजाब की बाढ़: तबाही का मंजर
खेतों में खड़ी फसलें पूरी तरह बह चुकी हैं।
मज़दूरों का रोज़गार ठप हो गया है।
छोटे कस्बों और गाँवों में लोग छतों पर शरण लिए बैठे हैं।
बच्चों और बुज़ुर्गों की सेहत सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई है।
सरकारी मशीनरी अपनी तरफ़ से राहत और बचाव में जुटी हुई है, मगर जब तबाही इतनी बड़ी हो तो सरकारी इंतज़ामात अक्सर नाकाफ़ी साबित होते हैं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की पहल
मौलाना अरशद मदनी की अपील पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने पंजाब के बाढ़ प्रभावित इलाक़ों में बड़े पैमाने पर राहत पहुँचाना शुरू किया।
उत्तराखंड जमीयत की मदद – 50 लाख रुपये की माली सहायता का ऐलान किया गया।
मध्य प्रदेश जमीयत का डेलीगेशन – एक लाख छह हज़ार दो सौ रुपये नकद, 100 राशन किट और गेहूं से भरी ट्रॉली शोपूर ज़िले के गुरुद्वारा कमेटी को सौंपी।
उत्तर प्रदेश के पश्चिमी ज़िले – मुज़फ़्फ़रनगर, सहारनपुर, बागपत से राहत सामग्री के काफ़िले रवाना किए गए।
गौरतलब यह रहा कि यह राहत सिर्फ़ मुस्लिम इलाक़ों तक सीमित नहीं रही, बल्कि सिख, हिंदू और ईसाई परिवारों तक बराबरी से पहुँची। यही पहलू इस मुहिम को इंसानियत का सबसे बड़ा पैग़ाम बनाता है।
एनालिसिस: इंसानियत की जीत
1. गंगा-जमुनी तहज़ीब का नमूना
जब एक मुस्लिम संगठन सिख गुरुद्वारे को राहत सौंपता है और वहाँ से वह मदद हर धर्म के लोगों तक पहुँचती है, तो यह इंटर-फेथ हार्मनी की जीती-जागती मिसाल है।
2. समाज और सरकार का संतुलन
सरकार राहत कार्य कर रही है लेकिन इतनी बड़ी आपदा में नागरिक समाज और धार्मिक संगठन ज़्यादा तेज़ी और लचीलापन दिखाते हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद का काम उसी संतुलन का हिस्सा है।
3. भरोसे का पुल
पीड़ितों ने एक स्वर में कहा कि मौलाना अरशद मदनी एक ऐसे रहनुमा हैं जो मज़लूमों के लिए आवाज़ उठाते हैं और हर हाल में उनके साथ खड़े होते हैं। इसने समाज में भरोसे और एकजुटता को मज़बूत किया।
Counterpoints
हर पहल की तरह इस राहत मिशन पर भी आलोचकों ने सवाल उठाए।
सियासी मक़सद का इल्ज़ाम – कुछ लोगों का कहना है कि ऐसे राहत कार्य धार्मिक और सियासी एजेंडा को मज़बूत करते हैं।
सरकारी ज़िम्मेदारी – आलोचक पूछते हैं कि अगर राहत का बोझ धार्मिक संस्थाओं पर ही डाल दिया जाए तो क्या सरकार की जवाबदेही कमज़ोर नहीं होगी?
मीडिया कवरेज का असंतुलन – कई बार यह भी कहा गया कि मुख्यधारा मीडिया ऐसी पहलों को उतना नहीं दिखाता जितना दिखाना चाहिए, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठता है।
लेकिन इसके बावजूद हक़ीक़त यही है कि आपदा की घड़ी में ऐसे संगठनों ने हमेशा ज़मीन पर पहुँचकर राहत पहुँचाई है, जो अक्सर प्रशासन से पहले पीड़ितों तक मदद ले जाते हैं।
इंसानियत बनाम मज़हब
पंजाब की बाढ़ ने यह साफ़ कर दिया कि इंसानियत किसी मज़हब की मोहताज नहीं।
मुस्लिम संगठन जब सिख परिवारों को मदद पहुँचाते हैं।
गुरुद्वारे मुस्लिम इलाक़ों में राशन और खाना पहुँचाते हैं।
हिंदू स्वयंसेवक राहत कैंप में मुसलमानों की सेवा करते हैं।
यह तस्वीर भारत की असली तसवीर है, जहाँ गंगा-जमुनी तहज़ीब, मोहब्बत और भाईचारा मज़बूत होता है।
Conclusion
पंजाब की बाढ़ सिर्फ़ तबाही नहीं लायी बल्कि इंसानियत और हमदर्दी के असली मायने भी सामने रख गई। जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-i-Hind) और उसके सदर मौलाना अरशद मदनी (Maulana Arshad Madani) की यह पहल इतिहास में दर्ज होगी कि कैसे एक धार्मिक संगठन ने मज़हब की सरहदें तोड़कर सिर्फ़ इंसानियत को तरजीह दी।