
Paris protest Block Everything clashes Emmanuel Macron opposition – Shah Times
‘ब्लॉक एवरीथिंग’ आंदोलन: फ्रांस में नया सियासी तूफ़ान
क्या फ्रांस फिर से ‘येलो वेस्ट’ दौर की ओर लौट रहा है?
फ्रांस में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की नीतियों के खिलाफ ‘ब्लॉक एवरीथिंग’ आंदोलन उग्र, पेरिस में आगजनी-पथराव और 200 से अधिक गिरफ्तारियां।
Paris,(Shah Times)। फ़्रांस इस वक़्त एक नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है। पेरिस की गलियों से लेकर बोर्डो और टूलूज़ तक, हर तरफ़ ग़ुस्से की लपटें उठ रही हैं। जनता का ऐलान साफ़ है—“हम थक चुके हैं, अब बस।” राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की आर्थिक नीतियाँ और ताज़ा बजट कटौती, जनता को मंज़ूर नहीं। यही वजह है कि “ब्लॉक एवरीथिंग” नाम से शुरू हुआ आंदोलन अचानक राष्ट्रीय स्तर का प्रोटेस्ट बन गया है।
फ्रांस की सड़कों पर ग़ुस्सा
पेरिस की सड़कों पर टायर जल रहे हैं, कूड़ेदानों को आग लगाई जा रही है और पुलिस पर पत्थरबाज़ी हो रही है। ट्रैफ़िक पूरी तरह जाम है, मेट्रो स्टेशन पर भीड़ है और अस्पतालों तक की सर्विस बाधित हो चुकी है। स्कूली बच्चे क्लास तक नहीं पहुँच पा रहे और दफ़्तरों में कामकाज रुक गया है।
गृह मंत्री ब्रूनो रिटेलो ने बताया कि केवल शुरुआती 12 घंटों में 200 से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया गया। राजधानी में ही 6 हज़ार पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं जबकि पूरे देश में यह संख्या 80 हज़ार से ऊपर है।
आंदोलन की जड़ें
इस विरोध की जड़ें सीधे जनता की जेब और ज़िंदगी से जुड़ी हैं। पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू ने बजट में 50 अरब डॉलर की कटौती का प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव में—
दो नेशनल हॉलिडे रद्द करना
2026 तक पेंशन पर रोक
हेल्थ सर्विस खर्चों में भारी कटौती
शामिल था। जनता इसे “सीधा हमला” मान रही है। लोग कह रहे हैं कि उनकी ज़िंदगी और इज़्ज़त को सस्ता समझ लिया गया है।
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नया प्रधानमंत्री और चुनौती
इसी बीच, मैक्रों ने सेबेस्टियन लेकोर्नु को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया। 39 वर्षीय लेकोर्नु पहले रक्षा मंत्री थे और मैक्रों के क़रीबी माने जाते हैं। लेकिन उनके पद संभालते ही देश में आग भड़क उठी। यह उनके लिए भी एक तरह की अग्निपरीक्षा है। विपक्षी लेफ़्ट ग्रुप ने इस आंदोलन की अगुवाई की है, जो पहले भी मैक्रों की नीतियों का कट्टर आलोचक रहा है।
विश्लेषण: क्यों भड़की जनता?
आर्थिक असमानता – आम आदमी महसूस कर रहा है कि अमीर वर्ग को राहत और ग़रीब वर्ग पर बोझ डाला जा रहा है।
वर्क कल्चर का संकट – छुट्टियों में कटौती और कामकाज पर अतिरिक्त बोझ, फ्रांस की “वर्क-लाइफ़ बैलेंस” पर चोट है।
पब्लिक सर्विस पर असर – हेल्थ, ट्रांसपोर्ट और शिक्षा सेवाओं पर सीधी चोट, जिससे आम नागरिक की रोज़मर्रा की ज़िंदगी ठहर गई है।
क्या दोहराया जा रहा है ‘येलो वेस्ट’ आंदोलन?
यह प्रोटेस्ट सीधे तौर पर 2018 के “येलो वेस्ट” आंदोलन की याद दिलाता है। उस समय भी मैक्रों सरकार की टैक्स नीति ने जनता को सड़क पर ला दिया था। आज की स्थिति और भी गंभीर है, क्योंकि इसमें सिर्फ़ पेट्रोल-डीज़ल का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरा बजट और जीवन-स्तर दांव पर लगा है।
प्रतिपक्षीय दृष्टिकोण
हालाँकि सरकार का दावा है कि ये कटौतियाँ फ़्रांस की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए ज़रूरी हैं। मैक्रों का कहना है कि बिना सख़्त क़दम उठाए, देश यूरोपीय संघ में अपनी वित्तीय स्थिति खो देगा। समर्थकों का तर्क है कि यह अल्पकालिक दर्द है लेकिन दीर्घकालिक सुधार लाएगा।
लेकिन सवाल यह है कि क्या जनता इतनी देर तक इंतज़ार कर सकती है? क्या लोग अपनी मौलिक सुविधाओं को गँवाकर आने वाले “बेहतर कल” की उम्मीद पर भरोसा करेंगे?
सोशल मीडिया की भूमिका
‘ब्लॉक एवरीथिंग’ आंदोलन की शुरुआत सोशल मीडिया और एन्क्रिप्टेड चैट ग्रुप्स से हुई। “डिजिटल लामबंदी” ने इस आंदोलन को शक्ति दी। ट्विटर (अब X), इंस्टाग्राम और टेलीग्राम पर लोगों ने एक-दूसरे को “जगह ब्लॉक करो, सिस्टम रोक दो” का आह्वान किया।
संभावित असर
राजनीतिक अस्थिरता – एक साल में चौथा प्रधानमंत्री, यह फ्रांस की राजनीति को कमजोर कर रहा है।
यूरोप पर असर – फ़्रांस यूरोपीय संघ का अहम देश है, और यहाँ की अस्थिरता यूरोपीय बाज़ार को प्रभावित करेगी।
वैश्विक प्रतिक्रिया – अंतरराष्ट्रीय मीडिया और विश्लेषक इसे पश्चिमी लोकतंत्र में “जनता बनाम सत्ता” के नए अध्याय के रूप में देख रहे हैं।
निष्कर्ष
फ्रांस की जनता इस समय ग़ुस्से और हताशा से भरी है। मैक्रों सरकार के लिए यह आंदोलन सिर्फ़ विरोध नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश है। सवाल यह है कि क्या राष्ट्रपति जनता की आवाज़ सुनेंगे या फिर इसे सख़्ती से दबाने की कोशिश करेंगे।
इतिहास गवाह है कि फ्रांस में जब जनता उठ खड़ी होती है, तो सत्ता की नींव हिल जाती है। “ब्लॉक एवरीथिंग” आंदोलन भी उसी परंपरा की गूंज है।