
रामपुर कोर्ट में अब्दुल्ला आज़म बरी: सियासी रंजिश या न्याय की जीत?
रामपुर की अदालत का बड़ा फ़ैसला, आज़म ख़ान परिवार को मिली राहत
रामपुर कोर्ट ने पूर्व कैबिनेट मंत्री आज़म खान के बेटे अब्दुल्ला आज़म को हत्या की साज़िश मामले में दोषमुक्त कर दिया, विपक्ष ने जताई नाराज़गी।
Rampur,(Shah Times) । रामपुर की सियासत एक बार फिर सुर्ख़ियों में है। पूर्व कैबिनेट मंत्री आज़म ख़ान के बेटे और युवा विधायक रह चुके अब्दुल्ला आज़म को हत्या की साज़िश के केस में अदालत ने बरी कर दिया। ये मुक़दमा आप नेता फै़सल ख़ान लाला की शिकायत पर दर्ज हुआ था, जिन्होंने आरोप लगाया था कि 2019 में उन्हें जान से मारने की धमकियाँ दी गईं।
यह मामला न सिर्फ़ एक कानूनी लड़ाई थी, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीतिक ज़मीन पर गहरी जड़ें जमाए हुए सत्ता और विपक्ष के टकराव की गवाही भी देता है।
रामपुर का यह केस एक मिसाल बन गया है कि कैसे सियासी रंजिशें अक्सर आपराधिक मामलों का रूप ले लेती हैं। फै़सल ख़ान लाला लंबे समय से आज़म ख़ान और उनके ट्रस्ट की ज़मीन से जुड़े मुद्दों पर विरोध दर्ज कराते रहे हैं।
शिकायत में कहा गया था कि अब्दुल्ला आज़म, फसाहत शानू और सलीम क़ासिम ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी।
सोशल मीडिया पर उनके समर्थकों द्वारा अभद्र टिप्पणियाँ पोस्ट की गईं।
पहले भी फै़सल ख़ान पर हमले हो चुके हैं, जिनका मुक़दमा अलग से चल रहा है।
कोर्ट में बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि यह मामला सियासी दुश्मनी से प्रेरित है और सबूत पर्याप्त नहीं हैं। वकील विनोद कुमार ने कहा कि अदालत ने सबूतों की कमी और गवाहों के असंगत बयान देखते हुए अब्दुल्ला आज़म को बरी किया।
प्रतिपक्षीय तर्क
लेकिन यहाँ सवाल उठता है—क्या हर सियासी मामला वाक़ई साज़िश ही कहलाता है या सच में किसी के जीवन पर ख़तरा होता है? विपक्षी नेताओं का मानना है कि अदालत के फ़ैसले का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन “पॉवर और इन्फ्लुएंस” का असर भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
फै़सल ख़ान लाला का आरोप है कि “अदालत में दबाव बनाकर केस कमज़ोर किया गया।”
मुझे धमकाने और सोशल मीडिया पर मेरे ऊपर अभद्र टिप्पणीयां करने के मामले में अब्दुल आज़म को MP-MLA कोर्ट ने दोष मुक्त किया है इस मामले में हम अपने लीगल एडवाइज़रो के पैनल से मशवरा कर रहे हैं, फैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट जाएंगे।
फ़ैसल खान लाला
प्रदेश प्रवक्ता आप
विपक्षी दलों का कहना है कि कानून अमीर और ग़रीब के लिए अलग-अलग तरीक़े से काम करता है।
वहीं आज़म ख़ान के समर्थक इसे न्याय की जीत बता रहे हैं।
ये तर्क एक व्यापक प्रश्न की ओर इशारा करते हैं—क्या भारतीय राजनीति का आपराधिकरण वास्तव में कम हो रहा है, या ऐसे फ़ैसले उसे और मज़बूत बना देते हैं?
रामपुर कोर्ट का यह फ़ैसला अब्दुल्ला आज़म और उनके परिवार के लिए राहत लेकर आया है, लेकिन इससे जुड़े राजनीतिक सवाल अभी भी हवा में तैर रहे हैं।
भारत की सियासत में यह कोई नया दृश्य नहीं कि मुक़दमे, गिरफ़्तारी और बरी होना राजनीतिक रणनीति का हिस्सा बन जाते हैं। मगर जनता के सामने यह सवाल हमेशा बना रहेगा कि न्याय केवल अदालतों में होता है या सियासी गलियारों में भी उसकी दिशा तय होती है।






