
Prime Minister Narendra Modi and US President Donald Trump discussing tariff tensions, symbolizing India-US trade relations – Shah Times
रूस-यूक्रेन जंग पर भारत के रुख की सराहना, ट्रंप ने मोदी को दिया समर्थन
जन्मदिन की शुभकामनाओं के बहाने ट्रंप- मोदी रिश्तों में आई नई रौनक
पीएम मोदी के 75वें जन्मदिन पर ट्रंप की फोन कॉल ने रिश्तों में नई गर्माहट ला दी। व्यापारिक तनाव के बीच यह दोस्ताना इशारा अहम है।
अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में दोस्ती और व्यापार हमेशा एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। जब दो मुल्कों के बीच व्यापारिक टकराव बढ़ता है, तो उसका असर राजनीतिक रिश्तों और रणनीतिक सहयोग पर भी पड़ता है। आज भारत और अमेरिका के दरमियान यही कहानी दोहराई जा रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हालिया फोन कॉल ने इस जमी बर्फ को पिघलाने का काम किया है। लेकिन सवाल ये है कि क्या एक जन्मदिन की शुभकामना, लंबे वक्त से चली आ रही टैरिफ वॉर की तल्ख़ियों को मिटा पाएगी?
मोदी-ट्रंप की फोन कॉल: व्यक्तिगत रिश्ते और कूटनीतिक संकेत
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म Truth Social पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जन्मदिन की शुभकामनाएँ देते हुए उन्हें “मित्र” कहा। उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत के रुख़ की सराहना करते हुए लिखा कि नरेंद्र मोदी “tremendous job” कर रहे हैं।
यह कॉल प्रतीकात्मक से कहीं ज़्यादा मायने रखती है। जून 2025 से दोनों नेताओं के बीच बातचीत बंद थी, वजह थी टैरिफ का विवाद। लेकिन मोदी के 75वें जन्मदिन पर यह कॉल न सिर्फ़ दोस्ती का इज़हार था, बल्कि यह भी इशारा कि दोनों मुल्क तनाव कम करके आगे बढ़ना चाहते हैं।
टैरिफ विवाद की जड़ें
भारत और अमेरिका के रिश्ते पिछले एक दशक में उतार-चढ़ाव से गुज़रे हैं।
ट्रंप के पहले कार्यकाल में “Howdy Modi” और “Namaste Trump” जैसे आयोजन हुए।
मगर दूसरे कार्यकाल में टैरिफ ने रिश्तों में खटास डाल दी।
अमेरिकी प्रशासन ने भारतीय स्टील, एल्यूमिनियम और फ़ार्मास्यूटिकल्स पर 50% तक का भारी टैरिफ लगा दिया। साथ ही रूस से कच्चा तेल खरीदने पर 25% का अतिरिक्त शुल्क भी जोड़ा गया।
भारत ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिकी बादाम, सेब और मोटरसाइकिलों पर कस्टम ड्यूटी बढ़ा दी। इस टैरिफ वॉर से दोनों मुल्कों के व्यापारिक रिश्तों पर बुरा असर पड़ा और जून से दोनों नेताओं की बातचीत ठंडी पड़ गई।
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भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य: रूस-यूक्रेन युद्ध की भूमिका
रूस-यूक्रेन जंग ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दिशा बदल दी है।
अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए और पश्चिमी खेमे के साथ पूरी तरह खड़ा हो।
जबकि भारत का स्टैंड “Strategic Autonomy” यानी रणनीतिक स्वतंत्रता पर आधारित है।
भारत ने रूस से ऊर्जा खरीद जारी रखी, क्योंकि यह उसके लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद था। अमेरिका को यह नागवार गुज़रा और उसने टैरिफ का हथियार उठाया।
लेकिन अब ट्रंप का संदेश यह दर्शाता है कि वॉशिंगटन को एहसास हो गया है कि भारत को अलग-थलग करना उसके हित में नहीं है। रूस-यूक्रेन जंग के समाधान में भारत की भूमिका को अमेरिका भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।
आर्थिक असर: दोनों देशों को कितना नुकसान?
टैरिफ वॉर का नुकसान दोनों देशों को हुआ।
भारत को झटका
टेक्सटाइल और फ़ार्मा इंडस्ट्री को अमेरिकी मार्केट में प्रतिस्पर्धा कठिन हो गई।
आईटी सेवाओं पर निगरानी बढ़ने से भारत की सॉफ़्टवेयर कंपनियाँ प्रभावित हुईं।
अमेरिका को नुक़सान
भारत ने अमेरिकी कृषि उत्पादों पर टैक्स बढ़ा दिया, जिससे कैलिफ़ोर्निया के बादाम किसानों और वॉशिंगटन के सेब उत्पादकों को नुकसान हुआ।
हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिलों की बिक्री लगभग ठप हो गई।
क्या दोस्ती व्यापार से बड़ी है?
मोदी और ट्रंप दोनों नेता करिश्माई और पॉपुलिस्ट माने जाते हैं। व्यक्तिगत संबंधों में गर्मजोशी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह गर्मजोशी टैरिफ जैसे कठोर मुद्दों को हल कर सकती है?
इतिहास बताता है कि भारत-अमेरिका रिश्ते अक्सर “डिफेंस और स्ट्रैटेजिक रिलेशन” में मजबूत रहे हैं, लेकिन “ट्रेड और मार्केट” में हमेशा तनाव बना रहा है। यही पैटर्न अब भी नज़र आ रहा है।
ग्लोबल अफेयर्स में भारत की अहमियत
आज की दुनिया में भारत की भूमिका सिर्फ़ एक उभरती अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं है।
यह Quad (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत) का सदस्य है।
यह ब्रिक्स का भी अहम हिस्सा है, जिसमें रूस और चीन शामिल हैं।
G20 की अध्यक्षता कर चुका भारत, वैश्विक कूटनीति में “Bridge Builder” बनकर उभरा है।
अमेरिका समझता है कि भारत को खोना उसके लिए रणनीतिक गलती होगी। चीन की बढ़ती ताक़त और रूस की आक्रामकता के बीच भारत का सहयोग उसके लिए ज़रूरी है।
संभावित रास्ते: समाधान क्या हो सकता है?
टैरिफ समझौता: दोनों देशों को व्यापार समझौते पर बैठना होगा। वॉशिंगटन को भारत के लिए टैरिफ में राहत देनी होगी और दिल्ली को अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए बाज़ार खोलना होगा।
ऊर्जा सहयोग: अमेरिका अगर भारत को LNG और क्रूड ऑयल सप्लाई बढ़ाए तो रूस पर निर्भरता कम हो सकती है।
टेक्नोलॉजी साझेदारी: 5G, AI और क्वांटम कंप्यूटिंग में संयुक्त उपक्रम से रिश्ते और मजबूत होंगे।
डिफेंस डील्स: रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ेगा तो दोनों की अर्थव्यवस्थाओं पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
आलोचनात्मक दृष्टिकोण
यह भी पूछना ज़रूरी है कि क्या मोदी और ट्रंप की दोस्ती वास्तव में टैरिफ वॉर को हल कर सकती है या यह सिर्फ़ एक पब्लिक रिलेशन स्टंट है?
ट्रंप चुनावी साल में हैं, उन्हें भारतीय-अमेरिकी वोटरों को खुश करना है।
मोदी 75 की उम्र में ग्लोबल स्टेट्समैन के रूप में अपनी छवि और मज़बूत करना चाहते हैं।
इस लिहाज़ से यह फोन कॉल एक political optics भी हो सकता है।
निष्कर्ष
भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ वॉर का असर सिर्फ़ व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भू-राजनीति, रणनीतिक साझेदारी और ग्लोबल पावर बैलेंस को भी प्रभावित करता है।
मोदी और ट्रंप की जन्मदिन वाली फोन कॉल एक सकारात्मक शुरुआत है, लेकिन असली चुनौती टैरिफ विवाद के समाधान और ठोस व्यापार समझौते में है। अगर दोनों मुल्क इस दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो न सिर्फ़ उनकी दोस्ती गहरी होगी बल्कि पूरी दुनिया को एक स्थिर और मजबूत साझेदारी देखने को मिलेगी।






