
देहरादून बाढ़ त्रासदी में जमीअत ने बढ़ाया मदद का हाथ, बच्चों की शिक्षा भी संभाली
उत्तराखंड आपदा: जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने बढ़ाया मदद का हाथ, पीड़ितों के लिए इंसानियत की मिसाल
उत्तराखंड की आपदा में जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने प्रभावित परिवारों की आर्थिक मदद, मृतकों के परिजनों से मुलाक़ात और बच्चों की शिक्षा का जिम्मा उठाकर इंसानियत की नई मिसाल कायम की।
उत्तराखंड आपदा में इंसानियत की मिसाल बनी जमीअत उलेमा-ए-हिंद
~शाह नज़र
देहरादून,(Shah Times) । उत्तराखंड की धरती इस समय एक भीषण आपदा से गुजर रही है। मूसलाधार बारिश, भूस्खलन और नदियों में आई बाढ़ ने हज़ारों लोगों के घर तबाह कर दिए। रिस्पना नदी में आया जल प्रलय तो जैसे कई परिवारों की ज़िंदगियों को मलबे में बदल गया। इस त्रासदी ने जहां पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया है, वहीं इंसानियत और हमदर्दी की तस्वीर पेश की है जमीअत उलेमा-ए-हिंद उत्तराखंड ने।
आपदा और इंसानियत का सबक
आपदा के बीच जब लोग टूट चुके थे, ऐसे वक़्त पर जमीअत ने न सिर्फ राहत पहुंचाई बल्कि यह एहसास भी दिलाया कि मुसीबत में कोई अकेला नहीं। जमीअत के प्रदेश महासचिव मौलाना शराफत अली क़ासमी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल प्रभावित क्षेत्रों—परवल, डालनवाला स्थित एमडीडीए कॉलोनी और अधोईवाला—पहुंचा। वहां का मंजर किसी क़यामत से कम नहीं था। जिंदगियां बिखरी हुईं, मकान जमींदोज़ और दुकानों का नामोनिशान मिट चुका।
मौलाना शराफत ने प्रभावित परिवारों से मुलाक़ात की, उनके दर्द को सुना और साझा किया। उन्होंने कहा, “यह वक़्त सिर्फ चिंता जताने का नहीं बल्कि असली मदद पहुंचाने का है। हम हर प्रभावित परिवार के साथ खड़े हैं और राहत कार्यों को प्राथमिकता दे रहे हैं।”
आर्थिक मदद और पुनर्वास का ऐलान
जमीअत ने तत्काल आर्थिक मदद का एलान किया। एमडीडीए कॉलोनी में जिनके घर पूरी तरह ढह गए—बिट्टू, इंद्रसैन और जफ़र—उनकी सीधी आर्थिक मदद की जाएगी। साथ ही मृतकों के परिजनों के लिए राहत राशि और बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी भी जमीअत ने उठाई है।
जमीअत (आ) और जमीअत (एम) ने परवल निवासी फरमान की विधवा को 25 हज़ार रुपये की नकद सहायता दी और उनके बच्चों की पढ़ाई का पूरा जिम्मा उठाने की घोषणा की। यह कदम इस बात का सबूत है कि सामाजिक संस्थाएं सिर्फ राहत ही नहीं बल्कि भविष्य की सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकती हैं।
सरकार से अपील और नीति सुधार की मांग
मौलाना शराफत अली क़ासमी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि यह केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानवीय त्रासदी है। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि उत्तराखंड को आपदाग्रस्त क्षेत्र घोषित किया जाए और राहत कार्यों में तेजी लाई जाए।
उन्होंने राज्य सरकार से यह भी अपील की कि आपदा नियमों में संशोधन कर तत्काल राहत राशि वितरित की जाए ताकि पीड़ितों को तुरंत सहारा मिल सके। मौलाना का कहना था कि जब तक हर प्रभावित परिवार तक मदद नहीं पहुंचेगी, राहत कार्य अधूरा रहेगा।
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श्रद्धांजलि और हमदर्दी का पैग़ाम
प्रतिनिधिमंडल ने आपदा में जान गंवाने वाले परवल के फरमान के घर जाकर श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर प्रदेश उपाध्यक्ष मुफ़्ती रईस अहमद क़ासमी ने परिवार से कहा, “आप अकेले नहीं हैं। आपका दुख हमारा दुख है। अल्लाह सबको इस मुश्किल घड़ी से बाहर निकाले।”
यह शब्द सिर्फ तसल्ली नहीं बल्कि एक मजबूत यक़ीन का पैग़ाम थे कि इंसानियत के रिश्ते हर मुसीबत से बड़े होते हैं।
राहत कार्यों में सक्रिय भूमिका
जमीअत का प्रतिनिधिमंडल सिर्फ सांत्वना तक सीमित नहीं रहा। उनके साथ मौलाना मासूम क़ासमी, मुफ़्ती तौफ़ीक इलाही, मौलाना असद, मौलाना हारून, मौलाना आबाद, मौलाना अब्दुल सत्तार, मुफ़्ती शम्सुल हुदा और कई अन्य उलेमा व कार्यकर्ता मौजूद थे। सबने प्रभावित परिवारों तक राहत सामग्री पहुंचाई और यकीन दिलाया कि जमीअत उनके साथ लगातार खड़ी रहेगी।




सामाजिक संगठनों की भूमिका क्यों अहम है?
आपदा प्रबंधन सिर्फ सरकार का काम नहीं होता। सामाजिक और धार्मिक संगठन भी तबाही के समय बड़ा सहारा बनते हैं। जमीअत का यह कदम समाज को यह पैग़ाम देता है कि राहत सिर्फ राशन और पैसों तक सीमित नहीं, बल्कि पीड़ितों के मनोबल को उठाना और उनके बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करना भी है।
उत्तराखंड की संवेदनशील भौगोलिक स्थिति
उत्तराखंड भौगोलिक रूप से आपदा-प्रवण राज्य है। यहां हर साल भारी बारिश, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन (climate change) और अति-निर्माण (over-construction) ने स्थिति और भी गंभीर बना दी है। इसीलिए, यहां राहत और पुनर्वास की रणनीति हमेशा तैयार रहनी चाहिए।
इंसानियत ही असली ताक़त
इस पूरी घटना ने यह साबित किया कि जब आपदा आती है तो इंसानियत ही असली ताक़त बनकर सामने आती है। जमीअत उलेमा-ए-हिंद का कदम सिर्फ एक संगठन का कार्य नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए एक मिसाल है। मदद का यह सिलसिला यह बताता है कि “हम सब एक दूसरे के लिए ज़िम्मेदार हैं।”
निष्कर्ष
उत्तराखंड आपदा ने कई परिवारों को उजाड़ दिया, लेकिन इंसानियत ने उम्मीद की रोशनी भी दिखाई। जमीअत का यह प्रयास साबित करता है कि सामाजिक संगठनों की भूमिका आपदा प्रबंधन में कितनी अहम है। राहत, पुनर्वास और बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी लेकर जमीअत ने न सिर्फ मदद की बल्कि एक स्थायी समाधान की दिशा भी दिखाई।






