
वक्फ संशोधन अधिनियम 2025: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की आपात बैठक में बड़ा संकल्प
सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले पर AIMPLB का रुख, विवादित वक्फ कानून के खिलाफ जारी रहेगा संघर्ष
AIMPLB की आपात बैठक में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले की समीक्षा की गई। बोर्ड ने विवादित प्रावधानों को संविधान और मुस्लिम अधिकारों पर हमला बताया।
भारत का राजनीतिक और धार्मिक परिदृश्य इन दिनों एक अहम बहस से गुजर रहा है। वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश ने देशभर में नई हलचल पैदा कर दी है। एक तरफ अदालत ने कुछ प्रावधानों पर राहत दी है, तो दूसरी ओर विवादित हिस्सों पर चुप्पी साध ली है। इसी संदर्भ में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी की अध्यक्षता में आपात ऑनलाइन बैठक बुलाई।
यह बैठक न सिर्फ एक कानूनी समीक्षा थी, बल्कि इसने भारतीय मुसलमानों और वक्फ संस्थाओं के भविष्य से जुड़े राजनीतिक-सामाजिक सवालों को भी केंद्र में ला दिया।
सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश: राहत और निराशा
अदालत ने यह माना कि कलेक्टरों को वक्फ संपत्तियों पर असीमित अधिकार देना न्यायसंगत नहीं है। साथ ही “उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ” यानी जो संपत्तियां लंबे समय से धार्मिक उपयोग में हैं, उन्हें संरक्षण दिया गया है। यह मुस्लिम समाज के लिए बड़ी राहत मानी गई।
लेकिन अदालत ने कुछ विवादित प्रावधानों पर चुप्पी साध ली, जिनमें शामिल हैं:
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अंतर्गत आने वाली संपत्तियों का वक्फ दर्जा समाप्त करना
वक्फ संपत्तियों का अनिवार्य पंजीकरण
सीमा कानून से छूट खत्म करना
वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना
आदिवासियों द्वारा वक्फ भूमि समर्पण पर प्रतिबंध
इन प्रावधानों ने AIMPLB और मुस्लिम समाज की चिंता बढ़ा दी है।
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2. सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले पर AIMPLB का रुख, विवादित वक्फ कानून के खिलाफ जारी रहेगा संघर्ष
3. वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा पर AIMPLB सख्त, सरकार से विवादित संशोधन वापस लेने की मांग
AIMPLB की प्रतिक्रिया और संकल्प
बैठक में बोर्ड ने साफ कहा कि यह संघर्ष केवल अदालत तक सीमित नहीं है। यह एक व्यापक नीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य मुस्लिम वक्फ संपत्तियों को कमजोर करना है।
बोर्ड का मानना है कि वक्फ संपत्तियां केवल धार्मिक ट्रस्ट नहीं हैं, बल्कि ये मुस्लिम समाज की तालीम, तहज़ीब और तरक़्क़ी का अहम ज़रिया हैं। मदरसे, मस्जिदें, दरगाहें, स्कूल, कॉलेज और सामाजिक संस्थान—ये सब वक्फ की देन हैं।
इसलिए बोर्ड ने संकल्प लिया:
जब तक विवादित संशोधन वापस नहीं होते, संघर्ष जारी रहेगा।
कानूनी लड़ाई के साथ-साथ जन-आंदोलन भी खड़ा किया जाएगा।
विपक्षी दलों और सिविल सोसायटी से गठजोड़ मजबूत किया जाएगा।
संविधान और अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी।
विपक्ष और नागरिक समाज की भूमिका
बैठक में AIMPLB ने उन राजनीतिक दलों और संगठनों का आभार जताया, जिन्होंने संसद और सड़कों पर वक्फ संशोधन अधिनियम का विरोध किया। विपक्षी दलों का मानना है कि यह कानून अल्पसंख्यक अधिकारों को कमजोर करता है।
मानवाधिकार संगठनों ने भी चेताया कि इससे communal harmony प्रभावित होगी और यह संवैधानिक समानता के खिलाफ है।
विवादित प्रावधानों की गहन समीक्षा
1. ASI संपत्तियों का वक्फ दर्जा खत्म करना
सरकार का कहना है कि स्मारकों और ऐतिहासिक धरोहरों पर धार्मिक दावा अनुचित है। लेकिन AIMPLB का तर्क है कि मस्जिदें और दरगाहें सदियों से वक्फ संपत्ति हैं और इन्हें मिटाना इतिहास के साथ छेड़छाड़ होगा।
2. अनिवार्य पंजीकरण
इसे transparency कहा जा रहा है, लेकिन मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि यह वक्फ संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में लेने का रास्ता है।
3. सीमा कानून से छूट खत्म करना
अब पुराने वक्फ दावों को चुनौती दी जा सकेगी। इसका मतलब है कि मुसलमानों को लंबी और महंगी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
4. गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति
बोर्ड का कहना है कि वक्फ की धार्मिक प्रकृति को समझे बिना outsiders की नियुक्ति से संस्थागत character कमजोर होगा।
5. आदिवासी भूमि पर रोक
AIMPLB ने इसे अल्पसंख्यकों और आदिवासियों के साझा अधिकारों पर हमला बताया।
AIMPLB बैठक के प्रतिभागी
इस आपात बैठक में शामिल रहे:
मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी (अध्यक्ष)
मौलाना मोहम्मद फजलुर रहीम मुजद्दिदी (महासचिव)
सैयद सदातुल्लाह हुसैनी (उपाध्यक्ष)
मौलाना उमरैन महफूज रहमानी (सचिव)
मौलाना यासीन अली उस्मानी (सचिव)
डॉ. एस.क्यू.आर. इलियास (प्रवक्ता)
मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली
मौलाना खलीलुर रहमान सज्जाद नोमानी
मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी
मौलाना रहमतुल्लाह मीर कासमी (श्रीनगर)
डॉ. मोहम्मद मतीनुद्दीन कादरी
मौलाना अब्दुल शकूर कासमी
मौलाना मलाक मोहम्मद
मौलाना मुफ्ती अहमद देवलवी
न्यायाधीश सैयद शाह मोहम्मद क़ादरी
मौलाना महमूद दरियाबादी
मौलाना अबू तालिब रहमानी
एडवोकेट एम.आर. शमशाद
एडवोकेट फुजैल अहमद अय्यूबी
एडवोकेट ताहिर हकीम
एडवोकेट जलीसा सुल्ताना
प्रोफेसर मुनीसा बुशरा आबिदी
प्रोफेसर हसीना हाशिया
श्रीमती निगहत प्रवीण खान
श्री मोहम्मद अदीब (पूर्व सांसद)
एडवोकेट तलहा अब्दुर रहमान
राजनीतिक निहितार्थ
इस मुद्दे के कई राजनीतिक असर सामने आ सकते हैं:
मुस्लिम वोट बैंक – यह मामला मुस्लिम समाज की एकजुटता को बढ़ा सकता है।
चुनावी रणनीति – विपक्ष इसे 2026 और आगे के चुनावों में मुद्दा बना सकता है।
ध्रुवीकरण – communal politics को बल मिल सकता है।
अंतरराष्ट्रीय असर – OIC और अन्य मंचों पर यह मामला भारत की छवि को प्रभावित कर सकता है।
नतीजा
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की यह आपात बैठक भारत के धार्मिक और राजनीतिक विमर्श में एक नया मोड़ है। सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आने तक अनिश्चितता बनी रहेगी, लेकिन AIMPLB का संकल्प साफ है—वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और संविधान में निहित अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा।
यह संघर्ष केवल एक कानूनी battle नहीं, बल्कि एक सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन का रूप ले चुका है।




