
Saudi–Pakistan defense pact poses strategic challenges for India’s security
भारत की Security Strategy मंडराता खतरा: सऊदी–पाक समझौता
ईरान से लेकर नई दिल्ली तक हलचल: रियाद–इस्लामाबाद डिफेंस डील
सऊदी और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक रक्षा समझौता भारत और ईरान की सुरक्षा नीति पर गहरा असर डाल सकता है।
दुनिया की बदलती सियासत में रियाद और इस्लामाबाद का नया डिफेंस पैक्ट अचानक ही भारत के लिए बड़ी चिंता बन गया है। सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक ऐसा समझौता किया है, जिसे कई विश्लेषक “NATO-जैसा सुरक्षा गठबंधन” बता रहे हैं। इस एग्रीमेंट के मुताबिक अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो दूसरा देश उसे अपने खिलाफ हमला मानेगा। यानी पाकिस्तान पर हमला, सऊदी पर हमला और सऊदी पर हमला, पाकिस्तान पर हमला।
नई दिल्ली, जिसने पहले ही साफ शब्दों में चेतावनी दी थी कि किसी भी आतंकी हमले की स्थिति में पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया जाएगा, अब असमंजस में है कि ऐसी स्थिति में रियाद कहां खड़ा होगा।
विश्लेषण (Analysis)
सऊदी–पाकिस्तान रिश्ते कोई नए नहीं हैं। दोनों देशों को जोड़ने वाले धागे इस्लामी उम्माह, साझा धार्मिक पहचान और आर्थिक–सैन्य सहयोग से जुड़े हैं। पाकिस्तान लंबे समय से सऊदी अरब की सैन्य ताकत और सुरक्षा नीतियों में अहम भूमिका निभाता आया है। वहीं रियाद, पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को आर्थिक मदद देता रहा है।
1. सामरिक स्तर पर:
डिफेंस समझौते में ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज़, इंटेलिजेंस शेयरिंग, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और डिफेंस प्रोडक्शन को शामिल किया गया है।
इससे पाकिस्तान की रक्षा क्षमता को बढ़ावा मिलेगा, जबकि सऊदी को परमाणु छतरी का भरोसा।
2. क्षेत्रीय राजनीति:
यह समझौता ऐसे वक्त में हुआ है, जब खाड़ी क्षेत्र ईरान–सऊदी प्रतिद्वंद्विता और इस्राइल–फ़लस्तीन संघर्ष से गुजर रहा है।
दक्षिण एशिया में भारत–पाकिस्तान तनाव पहले से ही उच्च स्तर पर है।
3. भारत पर असर:
भारत ने हाल ही में “ऑपरेशन सिंदूर” की घोषणा कर आतंकवाद के खिलाफ कठोर रुख दिखाया है।
लेकिन अब अगर किसी आतंकी हमले की सूरत में भारत पाकिस्तान पर जवाबी हमला करता है, तो क्या सऊदी अरब पाकिस्तान के साथ खड़ा होगा?
यही सवाल भारतीय रणनीतिकारों को बेचैन कर रहा है।
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तर्क–वितर्क (Counterpoints)
भारतीय नजरिया:
भारत को लगता है कि यह समझौता सीधे–सीधे उसकी सुरक्षा नीति को कमजोर करता है। कूटनीतिक हलकों में चर्चा है कि पाकिस्तान को अब सिर्फ बीजिंग ही नहीं, बल्कि रियाद का भी खुला समर्थन हासिल हो गया है।
सऊदी–पाक पक्ष:
सऊदी और पाकिस्तान का कहना है कि यह समझौता रक्षात्मक है, आक्रामक नहीं। उनका तर्क है कि क्षेत्रीय स्थिरता और साझा सुरक्षा ही इसका लक्ष्य है।
अमेरिकी और पश्चिमी विश्लेषण:
इयान ब्रेमर जैसे विश्लेषकों ने इसे “भारत की सुरक्षा के लिए गेम–चेंजर” बताया है। उनका मानना है कि नई दिल्ली को अब अपने समीकरण बदलने होंगे।
ईरान की चिंता:
ईरान इस डील को अपने खिलाफ एक स्ट्रैटेजिक चाल मानता है। रियाद–इस्लामाबाद की नजदीकी से तेहरान को अपनी पॉलिसी और रक्षा रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
सऊदी–पाकिस्तान का यह रक्षा समझौता क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों में बड़ा बदलाव लाने की क्षमता रखता है। भारत, जो पहले से ही पाकिस्तान और चीन से घिरा महसूस करता है, अब उसे रियाद की नई पोज़ीशन को भी ध्यान में रखना होगा।
यह डिफेंस पैक्ट केवल दो देशों का मिलिट्री एग्रीमेंट नहीं है, बल्कि यह पूरे साउथ एशिया और मिडिल ईस्ट की सुरक्षा राजनीति का री–ड्रॉइंग है।
नई दिल्ली को अब तीन मोर्चों पर एक साथ रणनीति तैयार करनी होगी:
कूटनीतिक स्तर पर रियाद से संवाद और संतुलन बनाए रखना।
सैन्य स्तर पर पाकिस्तान की किसी भी आक्रामक हरकत का जवाब देने के लिए तैयार रहना।
क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत करना, खासकर ईरान और खाड़ी देशों के साथ।
सवाल यह है कि क्या भारत इस नए समीकरण को एक अवसर के रूप में देखेगा, या इसे सिर्फ खतरे के रूप में?




