
यूपी की सियासत में 2027 का पहला सरगर्म मंजर: छत्रपों की कतारें और रणनीति
यूपी सियासत 2027: छत्रपों की कतारें और सत्ता की नई रणभूमि
लखनऊ की सियासी गलियां 2027 की तैयारी में, क्षेत्रीय छत्रप सत्ता के मंदिरों में मत्था टेकने जुटे, सपा-भाजपा के बीच शह और मात की राजनीति जोरों पर।
~ लखनऊ से तौसीफ़ कुरैशी
Lucknow,( Shah Times) । यूपी की सियासत अभी से ही 2027 की राजनीतिक रणभूमि की तैयारी में है। वैसे तो चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन क्षेत्रीय छत्रप अपने सियासी आकाओं के दर पर मत्था टेकने की कतारों में खड़े नजर आ रहे हैं।
सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों अपनी-अपनी रणनीति में जुटे हैं। सत्ता पक्ष का मकसद स्पष्ट है – विपक्ष को सत्ता के करीब नहीं आने देना। वहीं, विपक्ष लगातार कोशिश कर रहा है कि सत्ता से भगाने का रास्ता निकाल सके।
लखनऊ की गलियां गवाह हैं कि सियासत का शह और मात का खेल हर दिन नए मोड़ ले रहा है। हर क्षेत्रीय नेता अपने आकाओं को रिपोर्ट दे रहा है और सपा या भाजपा के मुखिया रणनीति तैयार कर रहे हैं कि अगले चुनाव में कौन सा फार्मूला काम आएगा।
सपा कंपनी की रणनीति: राहुल गांधी से लेकर क्षेत्रीय छत्रप तक
सपा के क्षेत्रीय छत्रप अभी से सक्रिय हैं। 2024 में 37 लोकसभा सीटों की जीत के बाद सपा कंपनी का नजरिया यह दर्शा रहा है कि 2027 में सत्ता उनके हाथ में है।
हालांकि, पिछले चुनाव का अनुभव यह बताता है कि भाजपा को कमजोर मानना भारी पड़ सकता है। इसके बावजूद सपा क्षेत्र में गुटबाजी को कम करने और प्रत्याशियों का सही चयन करने में जुटी है।
हालांकि अभी चुनाव बहुत दूर है लेकिन फिर भी सियासत के लंबरदार अपने-अपने सियासी मुख्यालयों पर अपने सियासी आकाओं के साथ कार्यकर्ताओं का जमघट लगा रहे है।
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जननायक राहुल गांधी के कंधे पर सवार होकर 2024 के लोकसभा चुनाव में 37 लोकसभा की सीटें जीतने वाली सपा कंपनी के सीईओ का नजरिया अभी से ही यह दर्शा रहा है कि जैसे उन्होंने मान लिया है कि 2027 में हम सत्ता में आ रहे हैं ऐसी ही गलती उन्होंने 2022 में भी की थी जिसका परिणाम सबने देखा ऐसा ही नजरिया वह अब भी दर्शा रहे हैं।
सपा के मालिक हर रोज क्षेत्रीय नेताओं से फीडबैक ले रहे हैं, और छत्रप उन्हें क्षेत्र की वास्तविक स्थिति बता रहे हैं। इस बार फार्मूला ऐसा अपनाया जा रहा है कि प्रत्याशी चयन और घोषणापत्र दोनों पर ध्यान रहे।
यदि यह फार्मूला जमीन पर सफलतापूर्वक उतरा, तो 2027 में विपक्ष भाजपा के लिए सच्ची चुनौती खड़ी कर सकता है।
प्रत्याशी चयन और घोषणापत्र: रणनीति की बुनियाद
सपा खुली बैठकें कर रही है, जहाँ प्रत्याशियों और घोषणापत्र पर चर्चा हो रही है।
क्षेत्रीय मुद्दों को प्राथमिकता
जातीय समीकरण का ध्यान
प्रत्याशियों की पकड़ और अनुपयुक्तता की जाँच
सभी पहलुओं पर काम करना जरूरी है ताकि सत्ता के चक्रव्यूह से बचा जा सके। समय रहते प्रत्याशी चयन से उन्हें स्थानीय पकड़ मजबूत करने का मौका मिलेगा।
विपक्ष का संकट: गठबंधन और सरकारी मशीनरी
2027 में राज्य सरकार बनाना विपक्ष के लिए चुनौतीपूर्ण है। 2024 के चुनावों की तुलना में स्थिति बदल चुकी है।
सभी दलों में गठबंधन कैसे होगा?
सरकारी मशीनरी का झुकाव भाजपा की ओर है, इससे निपटना होगा।
रणनीति के लिए समय पर निर्णायक कदम उठाना जरूरी है।
सियासी आंकड़ों और स्थानीय जमीन की वास्तविकता का अध्ययन विपक्ष को सफलता के रास्ते दिखा सकता है।
आज़म खान की वापसी: यूपी सियासत में तूफ़ान
आजम खान साहब सिर्फ़ जाति से ही खान साहब नहीं सियासत मेंं भी खान साहब ही है बात हम कर रहे हैं आज़म खान की सुना है कि वह जल्द ही जेल की सलाखों से बाहर आ रहे हैं जब सियासत के खान साहब अपने विरोधियों के कानूनी शिकंजे से आजाद हो जाएंगे तो फिर शांत पड़ी यूपी की सियासत भी उछाले ना ले ये हो ही नहीं सकता है वैसे ही हो भी रहा है कहीं मंथन है तो कहीं चिंतन है इस बात के कयास लगाए जाने लगे हैं क्या जिनके सियासी षड्यंत्रों का शिकार हुए हैं सियासत के खान साहब द्वारा उनसे सियासी बदला लिया जाएगा या नहीं और ऐसा हो नहीं सकता कि सियासी शेर आजाद होने पर दहाड़ ना लगाए उसी दहाड़ की दहशत महसूस भी की जा रही है और कहीं उनकी सियासी दहाड़ का लाभ होने की खुशी भी महसूस हो रही है ।
सियासी अटकलें: रावण, मौलाना और बबुआ
2027 की तैयारी में विभिन्न नेता मनोवैज्ञानिक स्थिति में हैं:
रावण खुश: सत्ता की संभावनाओं का लाभ महसूस कर रहे हैं।
मौलाना बेचैन: गठबंधन और चुनावी रणनीति पर सोच रहे हैं।
बबुआ उलझन में: विपक्षी चालों और सरकारी मशीनरी के दबाव में संतुलन बनाने में कठिनाई।
सियासत के ये पहलू 2027 के राजनीतिक परिदृश्य को तय करेंगे।
2027 की सियासत की दिशा
अभी चुनाव दूर हैं, लेकिन क्षेत्रीय छत्रपों और सियासी आकाओं की गतिविधियां स्पष्ट संकेत देती हैं कि यूपी सियासत 2027 में काफी प्रतिस्पर्धात्मक और चुनौतीपूर्ण होगी।
सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों सक्रिय
गठबंधन, प्रत्याशी चयन और घोषणापत्र की रणनीति
जमीनी स्तर पर तैयारी और जातीय समीकरण
आजम खान जैसी सियासी ताकतों की वापसी
ये सभी मिलकर यूपी की सियासत को 2027 तक रोमांचक और अप्रत्याशित मोड़ पर ले जाने वाले हैं।






