
Jaishankar and Rubio's historic meeting in New York, a new beginning in India-US relations.
न्यूयॉर्क में जयशंकर-रुबियो मुलाक़ात: व्यापारिक विवादों के दरमियान नई शुरुआत
भारत-अमेरिका रिश्तों में नई दिशा: जयशंकर-रुबियो मुलाक़ात से कूटनीतिक तनाव कम होने का इशारा
न्यूयॉर्क में एस. जयशंकर और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की मुलाक़ात ने भारत-अमेरिका रिश्तों में नई रफ़्तार दी। टैरिफ, H1B वीज़ा और रूस से तेल आयात जैसे संवेदनशील मुद्दों पर संवाद जारी रखने पर सहमति बनी। यह मुलाक़ात वैश्विक आर्थिक और कूटनीतिक संदर्भों में अत्यंत अहम है।
भारत और अमेरिका के रिश्ते बीते तीन दशकों से लगातार चर्चा में रहे हैं। कभी रणनीतिक साझेदारी ने इन्हें मज़बूत किया, तो कभी व्यापारिक मतभेदों और वीज़ा नीतियों ने तनाव पैदा किया। हाल ही में न्यूयॉर्क में हुई विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की बैठक ने यह दिखाया कि संवाद और कूटनीति से पुराने विवादों को सुलझाने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।
व्यापारिक मतभेदों की जड़
ट्रंप प्रशासन ने भारतीय उत्पादों पर पहले 25% अतिरिक्त शुल्क लगाया और फिर रूस से तेल आयात के मसले पर इसे और बढ़ाकर 50% कर दिया। इसने भारत के निर्यातकों पर गहरी चोट की। अमेरिका, जो भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, उसके लिए यह कदम नुकसानदेह भी था।
दरअसल, अमेरिका अपने घरेलू उद्योगों को बचाने के नाम पर प्रोटेक्शनिज़्म बढ़ा रहा है, जबकि भारत अपनी आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने के लिए वैश्विक बाज़ार पर निर्भर है। यही टकराव दोनों देशों के बीच तनाव की जड़ रहा।
H1B वीज़ा विवाद और भारतीय युवाओं का भविष्य
भारतीय IT सेक्टर के लिए H1B वीज़ा “लाइफ़लाइन” है। लाखों भारतीय इंजीनियर और टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स अमेरिकी कंपनियों में काम कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन की कड़ी नीतियों से वीज़ा हासिल करना मुश्किल हो गया।
यह सिर्फ भारत का नुकसान नहीं था, बल्कि अमेरिकी कंपनियों का भी, जिन्हें स्किल्ड वर्कफ़ोर्स की ज़रूरत है। यही कारण है कि जयशंकर-रुबियो मुलाक़ात में इस मुद्दे पर खुलकर बात हुई और संकेत मिला कि आगे कोई संतुलित समाधान निकलेगा।
रूस से तेल आयात और ऊर्जा की राजनीति
अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से तेल न खरीदे, जबकि भारत की ऊर्जा ज़रूरतें बहुत बड़ी हैं। भारत हर साल लाखों बैरल कच्चा तेल आयात करता है, और रूस से मिलने वाला तेल सस्ता पड़ता है।
भारत ने साफ़ किया है कि राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है। अमेरिका को भी यह समझना होगा कि भारत उसकी Indo-Pacific रणनीति में साझेदार है, लेकिन ऊर्जा सुरक्षा में स्वतंत्र निर्णय लेना उसका अधिकार है।
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कूटनीतिक संकेत और बहुपक्षीयता
यह बैठक केवल टैरिफ या वीज़ा तक सीमित नहीं थी। दोनों नेताओं ने इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र की सुरक्षा, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक सप्लाई चेन जैसे विषयों पर भी चर्चा की।
यूएनजीए के मंच पर यह संदेश गया कि भारत और अमेरिका अगर साथ खड़े हों, तो वैश्विक चुनौतियों का समाधान आसान हो सकता है।
आर्थिक दृष्टिकोण से महत्व
भारत-अमेरिका व्यापार 200 अरब डॉलर से ऊपर है और लगातार बढ़ रहा है। अगर टैरिफ विवाद सुलझता है, तो यह साझेदारी 500 अरब डॉलर तक पहुँच सकती है।
H1B जैसे वीज़ा नीतियों में सुधार से भारतीय युवाओं के लिए रोज़गार के नए अवसर खुलेंगे और अमेरिकी टेक इंडस्ट्री भी मज़बूत होगी।
भविष्य की राह
जयशंकर और रुबियो दोनों ने यह स्वीकार किया कि मतभेदों के बावजूद संवाद जारी रहना चाहिए। यही स्वस्थ कूटनीति की पहचान है।
भारत और अमेरिका को समझना होगा कि प्रतिस्पर्धा के बीच सहयोग ही उनके दीर्घकालिक हित में है। चाहे वह व्यापार हो, रक्षा सहयोग, तकनीक या ऊर्जा — साझेदारी ही भविष्य का रास्ता है।