
Azam Khan greets supporters after being released from Sitapur jail.
23 महीने बाद आज़म खान की रिहाई: सपा, बसपा और यूपी की सियासत पर असर
आज़म खान की वापसी: यूपी में बदलते सियासी समीकरण
सीतापुर जेल से आज़म खान की रिहाई ने यूपी की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य और मुस्लिम राजनीति का अहम चेहरा, उनकी वापसी विपक्षी राजनीति को नया मोड़ दे सकती है। सवाल है कि क्या वे सपा में ही रहेंगे या किसी और पार्टी का रुख करेंगे।
Sitapur,(Shah Times) । आज़म खान का नाम सिर्फ़ रामपुर या यूपी तक सीमित नहीं रहा। वे समाजवादी पार्टी की पहचान, मुलायम सिंह यादव के साथी और मुस्लिम तबक़े की आवाज़ माने जाते रहे हैं। लेकिन बीते तीन सालों में उनका राजनीतिक सफ़र अदालतों और जेल की दीवारों में उलझ गया।
23 महीने बाद रिहाई
23 सितंबर 2025 को जब आज़म खान जेल से बाहर आए, तो उनके साथ सैकड़ों समर्थक मौजूद थे। बेटे अब्दुल्ला और अदीब ने उन्हें “आज का हीरो” कहा। कोर्ट ने आख़िरी केस में जमानत दी और इस तरह उनका रास्ता साफ़ हुआ।
104 मुकदमे और सियासी साज़िश का आरोप
आज़म पर 104 मुक़दमे दर्ज हुए। समर्थकों का कहना है कि ज़्यादातर केस राजनीतिक प्रतिशोध के तहत दर्ज किए गए। शिवपाल यादव ने साफ़ कहा—”सरकार ने ग़लत सज़ा दी थी।” यह बयान बताता है कि सपा परिवार आज भी उन्हें पीड़ित मानता है।
बसपा की पेशकश और सपा की मुश्किलें
बलिया से बसपा विधायक उमाशंकर सिंह ने कहा कि अगर आज़म बसपा में आते हैं, तो उनका स्वागत है। यह बात छोटी नहीं है। मुस्लिम वोट बैंक पर नज़र गड़ाए बसपा के लिए आज़म किसी वरदान से कम नहीं। लेकिन सपा सांसद रुचि वीरा ने कहा—”आज़म साहब ने खून-पसीने से सपा को सींचा है, वो छोड़ेंगे नहीं।”
सियासत का समीकरण
यहां असली सवाल यही है कि आज़म की वापसी से किसे फायदा और किसे नुकसान होगा।
अगर वे सपा में रहते हैं, तो मुस्लिम मतदाता फिर से सपा की ओर आकर्षित होंगे।
अगर वे बसपा का रुख़ करते हैं, तो विपक्षी गठजोड़ में नई खाई पैदा हो सकती है।
बीजेपी के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण होगी, क्योंकि आज़म का राजनीतिक प्रभाव अभी भी रामपुर, मुरादाबाद और पश्चिम यूपी के मुस्लिम इलाक़ों में काफ़ी मज़बूत है।
व्यक्तिगत सज़ा और राजनीतिक भविष्य
कानूनी तौर पर आज़म, उनकी पत्नी और बेटा अगले चुनाव नहीं लड़ सकते। मगर राजनीति सिर्फ़ चुनाव लड़ने तक सीमित नहीं। नेतृत्व, दिशा और संदेश देना भी राजनीति है। यही वजह है कि सपा को उनकी ज़रूरत है।
नतीजा
आज़म खान की रिहाई महज़ एक नेता की जेल से वापसी नहीं है, बल्कि यूपी की राजनीति के पन्ने का नया अध्याय है। आने वाले महीनों में यह साफ़ होगा कि उनका झुकाव कहाँ है। लेकिन इतना तय है कि उनकी मौजूदगी से विपक्षी राजनीति और भी दिलचस्प हो जाएगी।