
Exposing hypocrisy in the name of religious leaders
बाबाओं का सच: आस्था के नाम पर अपराध
धर्मगुरु या अपराधी: समाज को धोखा किसने दिया?
📍दिल्ली | 27 सितम्बर 2025
समाज बार-बार बाबाओं के जाल में क्यों फँसता है? दिल्ली वाले बाबा का केस सिर्फ़ एक अपराध नहीं, बल्कि हमारी आस्था, राजनीति और समाज पर गहरा सवाल है। यह विश्लेषण उसी पर केंद्रित है।
पाखंड का धंधा और इंसानियत की हार
आज सवाल यह नहीं है कि दिल्ली वाला बाबा गुनाहगार है या नहीं। असल सवाल यह है कि क्यों समाज बार-बार इन पाखंडी बाबाओं के जाल में फँस जाता है। क्यों लोग तर्क और विवेक को छोड़कर चमत्कार और झूठी कहानियों पर भरोसा करने लगते हैं? क्यों हमारे मुल्क में धर्म का मतलब केवल चोला पहन लेना और लंबी-लंबी बातें करना रह गया है?
असलियत यह है कि समाज की बेबसी, असुरक्षा और डर ने इन बाबाओं को जन्म दिया है। जब आम आदमी की ज़िंदगी में तकलीफ़ आती है — बीमारी, बेरोज़गारी, पारिवारिक संकट — तो वह साइंस और तर्क के बजाय किसी “चमत्कार” का सहारा ढूँढ़ता है। और वहीं से शुरू होती है इन पाखंडियों की दुकानदारी। बाबा कहता है: “तुम्हारी हर परेशानी मेरे दर से हल होगी।” और भोला-भाला इंसान उसके आगे झुक जाता है।
लेकिन जब वही बाबा हवस का गुलाम बनकर किसी औरत की इज़्ज़त लूटता है, तो पूरा समाज शर्मसार हो जाता है। दिल्ली वाले बाबा के खिलाफ़ आया केस हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि असल धर्म और अध्यात्म की पहचान क्या है। अगर धर्म सिर्फ़ चोला ओढ़कर, प्रवचन देकर और भक्तों से पैसा ऐंठने तक सीमित है, तो यह धर्म नहीं बल्कि कारोबार है। और इस कारोबार का सबसे बड़ा व्यापारी वही बनता है जो सबसे बड़ा झूठ बोल सके।
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धर्म के नाम पर अपराध का इतिहास
अगर हम तारीख़ के पन्ने पलटें तो पाएँगे कि हर मज़हब में ऐसे गुनाहगार मौजूद रहे हैं।
हिंदू समाज में कई बाबाओं ने औरतों का शोषण किया और जेल पहुँचे।
मुस्लिम समाज में कुछ मौलवियों ने मज़हब की आड़ में बच्चों और औरतों को निशाना बनाया।
ईसाई समाज में चर्च और पादरियों के बलात्कार कांडों ने पूरी दुनिया को हिला दिया।
यहाँ तक कि बौद्ध और सिख समाज तक में मठों और गुरुद्वारों के अंदर अपराध सामने आए।
तो क्या यह कहना ग़लत होगा कि समस्या मज़हब में नहीं, बल्कि उन इंसानों में है जो मज़हब का चोला पहनकर अपनी हवस छिपाते हैं? असली मज़हब इंसान को सिखाता है संयम, रहम और इंसानियत। लेकिन जब इंसान खुद शैतान बन जाए और धर्म को ढाल बना ले, तो वह सबसे खतरनाक साबित होता है।
कानून और समाज की भूमिका
दिल्ली वाले बाबा का केस हमें यह भी दिखाता है कि क़ानून और न्याय व्यवस्था कितनी अहम है। अगर किसी बाबा, मौलवी या पादरी पर बलात्कार का इल्ज़ाम लगे, तो सबसे पहले उसका “धर्मगुरु” वाला तमगा हटाकर उसे सिर्फ़ एक अपराधी समझना चाहिए। लेकिन हमारे मुल्क में अक़्सर उल्टा होता है। भक्त कोर्ट-कचहरी में भीड़ लगाते हैं, नेता बीच में आ जाते हैं, और मीडिया का एक हिस्सा पैसा लेकर चुप हो जाता है।
नतीजा यह निकलता है कि पीड़िता ही बदनाम कर दी जाती है। लेकिन इस चुप्पी और ढोंग को तोड़ना होगा। हमें समझना होगा कि बलात्कार सिर्फ़ व्यक्तिगत गुनाह नहीं है। जब कोई धर्मगुरु ऐसा अपराध करता है, तो वह करोड़ों लोगों की आस्था को चोट पहुँचाता है। यह अपराध औरत के जिस्म पर नहीं, बल्कि पूरे समाज की आत्मा पर हमला है। और इसकी सज़ा भी उतनी ही सख़्त होनी चाहिए।
आस्था और इंसानियत
आज सबसे बड़ी ज़रूरत यह है कि बच्चों और नौजवानों को जागरूक किया जाए कि वे किसी भी इंसान को भगवान न मानें। किसी गुरु का इज़्ज़त करना ठीक है, लेकिन आँख मूँदकर उसकी पूजा करना आत्महत्या है। मज़हब व्यक्तिगत आस्था का मामला है, लेकिन इंसानियत उससे कहीं बड़ा मज़हब है। अगर कोई गुरु इंसानियत की हदें तोड़ता है, तो वह किसी मज़हब का प्रतिनिधि नहीं रह जाता।
राजनीति, मीडिया और बाबाओं की सांठगांठ
दिल्ली वाले बाबा का केस सिर्फ़ एक कोर्टरूम तक सीमित नहीं रहना चाहिए। समाज को जागना होगा और यह समझना होगा कि बाबाओं की दुनिया राजनीति, मीडिया और बिज़नेस से गहराई से जुड़ी है। बाबा नेता को वोट दिलाता है, व्यापारी को धंधा और मीडिया को विज्ञापन। बदले में बाबा को सुरक्षा और चुप्पी मिलती है। यह गंदा खेल तब तक चलता रहेगा जब तक आम आदमी अपनी आवाज़ बुलंद नहीं करेगा।
आख़िरी अपील
राशिद अली की कलम से यह सीधी अपील है कि हर मज़हब के लोग अपनी आँखें खोलें। न हिंदू बाबा पर आँख मूँदकर भरोसा करें, न मुस्लिम मौलवी पर, न ईसाई पादरी पर। भरोसा इंसानियत पर करें, संविधान पर करें, न्याय व्यवस्था पर करें।
आज वक्त हमें एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा कर रहा है। या तो हम चुप रहेंगे और इन बाबाओं को अपनी बेटियों-बहनों की ज़िंदगी बर्बाद करने देंगे, या फिर खड़े होकर कहेंगे: “अब बहुत हो चुका।” दिल्ली वाला बाबा सिर्फ़ एक चेहरा है, मगर यह चेहरा हर उस पाखंडी का प्रतीक है जिसने धर्म के नाम पर इंसानियत को कलंकित किया।
अगर हम ऐसे चेहरों को पहचानकर इनके खिलाफ़ खड़े नहीं होंगे, तो कल कोई और बाबा, मौलवी या पादरी हमारी आस्था का बलात्कार करेगा। इसलिए अब जागने का समय है। असली धर्म करुणा, मोहब्बत और सेवा है। जो इंसान इंसानियत की हिफ़ाज़त नहीं कर सकता, वह किसी धर्म का प्रतिनिधि नहीं, बल्कि इंसानियत का दुश्मन है। ऐसे लोगों का बहिष्कार करना ही आज का सबसे बड़ा धर्म है।

✍️राशिद अली