
Tehran faces new UN sanctions as nuclear deal crisis deepens | Shah Times Image Alt Text: United Nations
रूस-चीन नाकाम, ईरान पर UN की सख्ती बरकरार
ईरान की मुश्किलें और गहराईं, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर
नई दिल्ली | 28 सितम्बर 2025 |आसिफ़ ख़ान
संयुक्त राष्ट्र ने एक बार फिर ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगाए हैं। ये निर्णय उस समय आया है जब ईरान पहले से गंभीर आर्थिक संकट झेल रहा है। रूस और चीन के प्रयास नाकाम रहे और अब तेहरान के सामने परमाणु अप्रसार संधि से हटने का विकल्प खुला है। इस संपादकीय विश्लेषण में हम देखेंगे कि यह फैसला मध्य-पूर्व की राजनीति, वैश्विक सुरक्षा और आम जनता की ज़िंदगी पर क्या असर डालेगा।
ईरान पर संयुक्त राष्ट्र का नया प्रतिबंध सिर्फ़ एक राजनीतिक कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह आने वाले समय की भू-राजनीतिक तस्वीर को भी गहराई से प्रभावित करेगा। रविवार को लगाए गए इन प्रतिबंधों ने एक दशक पुराने विवाद को फिर से जगा दिया है। तेहरान अब इस बात पर विचार कर रहा है कि वह परमाणु अप्रसार संधि से बाहर निकले या नहीं।
ईरानी संसद के भीतर माहौल गरम है। स्पीकर मोहम्मद बाघेर कलीबाफ ने कहा कि अगर किसी भी मुल्क ने इन अवैध प्रस्तावों के आधार पर कार्रवाई की, तो ईरान सख्त जवाब देगा। यह बयान साफ़ इशारा करता है कि ईरान अब समझौते की सीमाओं से बाहर निकलने को तैयार है।
यूएन के बैन का सबसे अहम हिस्सा है स्नैपबैक मैकेनिज़्म। यह वही व्यवस्था है जो 2015 के परमाणु समझौते में शामिल की गई थी। इसके तहत किसी भी उल्लंघन की स्थिति में स्वतः ही पुराने प्रतिबंध वापस लगाए जा सकते हैं। यही हुआ है और अब ईरान की संपत्तियाँ फ्रीज़ हो चुकी हैं, हथियार सौदे रोक दिए गए हैं और मिसाइल कार्यक्रम पर कड़ी नज़र रखी जा रही है।
🌐 रूस और चीन की हार
ईरान के सबसे बड़े सहयोगी रूस और चीन ने आख़िरी समय तक कूटनीतिक कोशिशें कीं। मगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उनकी दलीलों को नज़रअंदाज़ कर दिया। यह पश्चिमी ताक़तों की एक बड़ी जीत मानी जा रही है। वॉशिंगटन से लेकर पेरिस और लंदन तक इस फ़ैसले का स्वागत किया गया।
💰 ईरान की अर्थव्यवस्था पर चोट
तेहरान की गलियों में लोग कह रहे हैं कि हालात अब और बदतर होंगे। ईरानी करेंसी रियाल ऐतिहासिक गिरावट पर है। महंगाई ने आम लोगों की ज़िंदगी मुश्किल कर दी है। एक दुकानदार ने कहा – “हर रोज़ दूध, पनीर और मक्खन की क़ीमत बढ़ रही है। मांस तो पहले ही ग़रीबों की पहुँच से बाहर है।”
जून 2025 तक आधिकारिक आँकड़े बताते हैं कि मुद्रास्फीति 34.5% पहुँच चुकी है। कुछ ज़रूरी खाद्य वस्तुएँ जैसे चावल और बीन्स 80% से ज़्यादा महँगी हो चुकी हैं। इस पृष्ठभूमि में नया प्रतिबंध ईरान के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने को हिला सकता है।
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⚖️ वैश्विक सुरक्षा और राजनीति
यह मामला सिर्फ़ ईरान तक सीमित नहीं है। Middle East की पॉलिटिक्स पहले से अस्थिर है – सीरिया, इराक़ और यमन की जंगों ने इस क्षेत्र को ज्वालामुखी बना दिया है। अब ईरान पर नया दबाव तेल बाज़ारों में भी अस्थिरता ला सकता है। अगर ईरान अपनी परमाणु नीति में बदलाव करता है, तो इससे पूरा वेस्ट एशिया न्यूक्लियर टेंशन में फँस सकता है।
अमेरिका के विदेश मंत्री ने कहा कि Diplomacy अब भी एक विकल्प है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ईरान पश्चिमी दबाव में बातचीत की टेबल पर लौटेगा या फिर टकराव की राह चुनेगा?
✍️ नजरिया
ईरान की सियासत में यह मोड़ बेहद नाज़ुक है। विदेश मंत्री अब्बास अराघची का कहना है कि इन पाबंदियों से उतना नुकसान नहीं होगा जितना पेश किया जा रहा है। उन्होंने इसे एक “राक्षस” करार दिया जो सिर्फ़ ईरानी अवाम को डराने के लिए गढ़ा गया है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि बाज़ार में महंगाई बढ़ रही है, बेरोज़गारी फैल रही है और आवाम की मुश्किलात दिन-ब-दिन गहरी हो रही हैं।
तेहरान की सड़कों पर लोग मायूस हैं। एक नौजवान ने कहा – “हमारे ख़्वाब बिखरते जा रहे हैं। हम हर रोज़ ग़ुरबत की नई तस्वीर देखते हैं।” इस तरह की आवाज़ें बता रही हैं कि ईरानी समाज के भीतर बेचैनी बढ़ रही है।
🔮 भविष्य का रास्ता
अगर ईरान वास्तव में परमाणु अप्रसार संधि से हटता है, तो यह सिर्फ़ तेहरान का फैसला नहीं होगा, बल्कि पूरी दुनिया की सुरक्षा पर असर डालेगा। International Atomic Energy Agency (IAEA) की निगरानी से बाहर जाने का मतलब है कि कोई भी ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर भरोसा नहीं कर पाएगा।
क्या यह नया युग शुरू करेगा, जिसमें मिडिल ईस्ट के और भी मुल्क न्यूक्लियर ताक़त बनने की कोशिश करेंगे? या फिर कूटनीति एक बार फिर इस संकट को संभाल लेगी? यह आने वाला वक्त बताएगा।