
Rahul Gandhi with CRPF security and Parliament backdrop highlighting India’s political security concerns. | Shah Times
धमकियों के साए में लोकतंत्र: राहुल गांधी सुरक्षा पर उठते सवाल
पॉलिटिकल प्रोपेगेंडा या रियल सिक्योरिटी थ्रेट? राहुल गांधी केस एनालिसिस
📍 नई दिल्ली | 29 सितम्बर 2025
✍️ By Asif Khan | Shah Times
टीवी डिबेट में राहुल गांधी को मिली धमकी अब सिर्फ़ सिक्योरिटी का मुद्दा नहीं बल्कि लोकतंत्र की असल परीक्षा बन चुकी है। क्या यह महज़ लापरवाही है, या फिर राजनीति में ज़हर घोलने वाली संगठित साज़िश?
भारत की राजनीति आज ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां सुरक्षा और साज़िश का फ़र्क़ मिटता नज़र आ रहा है। राहुल गांधी को खुले मंच से दी गई गोली मारने की धमकी सिर्फ़ एक “एंग्री कमेंट” नहीं, बल्कि उस पॉलिटिकल कल्चर का आइना है, जिसमें असहमति को खतरे की तरह पेश किया जाता है।
28 सितम्बर को कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने गृह मंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखकर सीधा सवाल उठाया— “क्या भाजपा विपक्ष के नेताओं के खिलाफ हिंसा को वैध मानती है?”
यह सवाल महज़ एक धमकी पर नहीं, बल्कि उस राजनीतिक माहौल पर है जो लोकतंत्र को असुरक्षित बना रहा है।
लोकतंत्र और सुरक्षा का टकराव
भारत का लोकतंत्र असहमति की बुनियाद पर खड़ा है।
लेकिन जब विपक्ष का सबसे बड़ा नेता खुलेआम धमकी का शिकार हो और सत्ता पक्ष चुप रहे, तो संदेश साफ़ है: लोकतंत्र कमजोर हो रहा है।
राहुल गांधी उस परिवार से आते हैं जिसने दो प्रधानमंत्रियों को आतंक और हिंसा में खो दिया। इंदिरा गांधी को उनके ही सुरक्षा गार्ड्स ने गोली मारी थी, और राजीव गांधी को आत्मघाती हमलावर ने निशाना बनाया था। इस पृष्ठभूमि में सुरक्षा सिर्फ़ एक तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक जिम्मेदारी है।
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ऐतिहासिक संदर्भ
भारत ही नहीं, दुनिया के कई लोकतांत्रिक देशों में नेताओं की सुरक्षा राजनीतिक विवाद का हिस्सा रही है।
जॉन एफ. कैनेडी (JFK) – अमेरिका के लोकप्रिय राष्ट्रपति, जिन्हें 1963 में गोली मार दी गई।
बेनज़ीर भुट्टो – पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री, जिन्हें 2007 में रैली के दौरान आतंकियों ने निशाना बनाया।
मार्टिन लूथर किंग जूनियर – नागरिक अधिकारों के आंदोलन के नेता, जिन्हें नफ़रत की राजनीति ने खत्म कर दिया।
इन घटनाओं ने साबित किया कि सत्ता में बैठे लोगों की चुप्पी या लापरवाही लोकतांत्रिक इतिहास को बदल सकती है।
CRPF बनाम विपक्ष
CRPF ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने सुरक्षा प्रोटोकॉल कई बार तोड़ा है।
पिछले 9 महीनों में 6 बार विदेश यात्राओं पर बिना सूचना गए।
इटली, वियतनाम, लंदन, दुबई, मलेशिया और कतर का दौरा किया।
Z+ सिक्योरिटी के बावजूद यलो बुक प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया।
यहां दो पहलू हैं:
अगर राहुल गांधी सचमुच प्रोटोकॉल तोड़ रहे हैं, तो यह उनकी निजी लापरवाही है।
लेकिन अगर सरकार इसे पब्लिक नैरेटिव में बार-बार उठाकर उनकी इमेज पर सवाल खड़े कर रही है, तो यह एक राजनीतिक हथियार है।
ग्लोबल पॉलिटिक्स में राहुल गांधी
राहुल गांधी की साउथ अमेरिका यात्रा ने भाजपा को असहज किया।
क्योंकि यह दिखाता है कि राहुल केवल भारत तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनकी पॉलिटिकल इमेज ग्लोबल फ्रेम में उभर रही है।
ब्राज़ील, कोलंबिया और अन्य देशों में उनकी मीटिंग्स विपक्षी राजनीति को इंटरनेशनल वैलिडेशन देती हैं।
यही कारण है कि धमकी का मुद्दा अब सिर्फ़ नेशनल सिक्योरिटी का मामला नहीं, बल्कि ग्लोबल डिप्लोमैटिक एंगल भी रखता है।
साज़िश का नेरेटिव
यहां कांग्रेस कह रही है:
धमकी सिर्फ़ एक बयान नहीं, बल्कि सत्ता की चुप्पी से वैधता पा रही है।
अगर कार्रवाई नहीं होती, तो यह साबित करता है कि सत्ता विपक्ष की सुरक्षा से खेल रही है।
वहीं भाजपा और उसके प्रवक्ता कहते हैं:
यह सब पॉलिटिकल ड्रामा है।
राहुल गांधी खुद सुरक्षा तोड़ते हैं और फिर सरकार को दोष देते हैं।
असल मुद्दा क्या है?
असल मुद्दा यह है कि:
राजनीति में असहमति को दुश्मनी बना दिया गया है।
सुरक्षा को सत्ता और विपक्ष के बीच हथियार बना दिया गया है।
जनता के सामने लोकतंत्र की साख गिर रही है।
जनता की नज़र से
आम नागरिक यह सोचने पर मजबूर है कि अगर देश का विपक्षी नेता भी सुरक्षित नहीं है, तो आम आदमी की क्या स्थिति होगी?
राहुल गांधी को मिली धमकी आज सियासी बहस का हिस्सा है, लेकिन यह बहस उस असली सवाल को दबा रही है कि:
👉 क्या लोकतंत्र अब सिर्फ़ सत्ता पक्ष की सुविधानुसार चलेगा?
नज़रिया
राहुल गांधी की सुरक्षा सिर्फ़ एक व्यक्ति का मसला नहीं है।
यह इस बात की परीक्षा है कि भारत का लोकतंत्र असहमति और आलोचना को कितनी जगह देता है।
अगर सत्ता विपक्ष की सुरक्षा पर राजनीति करेगी, तो यह आग से खेलने जैसा है। और अगर विपक्ष सिर्फ़ साज़िश का नैरेटिव गढ़ेगा, तो जनता का भरोसा कमजोर होगा।
इसलिए ज़रूरी है कि इस पूरे विवाद को पारदर्शिता से निपटाया जाए। कार्रवाई हो, दोषी पकड़े जाएं, और सुरक्षा राजनीति से ऊपर उठकर लोकतांत्रिक जिम्मेदारी बने।




