
US Government Shutdown Crisis 2025 Shah Times
अमेरिका में सरकारी शटडाउन: सियासत बनाम जनता
वॉशिंगटन का गतिरोध और अमेरिकी लोकतंत्र की परीक्षा
📍वॉशिंगटन डी.सी.
🗓️ 1 अक्तूबर 2025
✍️ आसिफ़ ख़ान
अमेरिका एक बार फिर सरकारी शटडाउन की चपेट में है। सीनेट अस्थायी फंडिंग बिल पास करने में नाकाम रही, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सख़्त सियासत और डेमोक्रेट्स की मांगों ने टकराव को और गहरा दिया। लगभग 7.5 लाख फ़ेडरल कर्मचारी छुट्टी पर भेजे जा सकते हैं और कई डिपार्टमेंट बंद होने की कगार पर हैं। यह शटडाउन सिर्फ अमेरिका की राजनीति का संकट नहीं है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर भी बड़ा सवाल है।
अमेरिका में शटडाउन से क्या दुनिया भी हिलेगी?
अमेरिका की सियासत इस वक़्त एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां हुकूमत और अवाम दोनों ही इंतज़ार में हैं। सीनेट में अस्थायी फंडिंग बिल गिर गया और इसके साथ ही सरकार की सांसें थम गईं। शटडाउन एक ऐसा शब्द है जो अमेरिकी राजनीति में बार-बार गूंजता है। लेकिन इस बार हालात पहले से ज़्यादा नाज़ुक हैं।
शटडाउन क्या है और क्यों होता है?
सरकारी शटडाउन तब होता है जब कांग्रेस और व्हाइट हाउस संघीय एजेंसियों को चलाने के लिए फंडिंग पर सहमत नहीं हो पाते। अमेरिकी क़ानून “एंटीडेफिशिएंसी एक्ट” के तहत बिना अनुमति पैसा खर्च करना गैरक़ानूनी है। नतीजा यह होता है कि जैसे ही बजट पास नहीं होता, गैर-जरूरी सरकारी सेवाएं बंद कर दी जाती हैं।
सरल भाषा में कहें तो यह वैसा ही है जैसे किसी घर का बजट समय पर तय न हो और महीने के बीच में बिजली-पानी का बिल, किराया और बच्चों की फ़ीस रुक जाए। फर्क बस इतना है कि यह मामला दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का है।
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पॉलिटिकल गतिरोध
इस बार गतिरोध की जड़ राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियां और डेमोक्रेट्स की मांगें हैं। रिपब्लिकन पार्टी चाहती है कि खर्चे सीमित हों, मेडिकेड पर कटौती हो और कुछ टैक्स क्रेडिट वापस लिए जाएं। डेमोक्रेट्स इसे जनता-विरोधी क़दम मानते हैं और पूरी ताक़त से विरोध कर रहे हैं।
ट्रंप ने तो यहाँ तक कह दिया कि शटडाउन के दौरान लाखों कर्मचारियों को स्थायी रूप से हटाया भी जा सकता है। यह बयान उस वक़्त आया जब अमेरिकी अवाम पहले ही महंगाई, हाउसिंग क्राइसिस और हेल्थकेयर की लागत से परेशान है।
असर सबसे पहले जनता पर
किसी भी शटडाउन का सबसे बड़ा असर आम नागरिकों पर होता है।
लगभग 7.5 लाख फ़ेडरल कर्मचारी या तो छुट्टी पर भेज दिए जाएंगे या बिना वेतन काम करेंगे।
नेशनल पार्क बंद हो जाएंगे।
ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स जैसी एजेंसियां रिपोर्ट जारी नहीं कर पाएंगी।
छोटे बिज़नेस लोन, हवाई यात्रा की सुरक्षा और वीज़ा सेवाएं प्रभावित होंगी।
यहां तक कि जो मासिक जॉब रिपोर्ट अमेरिकी अर्थव्यवस्था की धड़कन मानी जाती है, वो भी इस बार नहीं आ पाएगी। इसका मतलब निवेशक, कंपनियां और आम लोग—सब अनिश्चितता में डूब जाएंगे।
सियासी अदावत बनाम अवामी मसाइल
अमरीका की सियासत में ये शटडाउन महज़ बजट का मसला नहीं है बल्कि इंतिहाई अदावत और अहंकार की लड़ाई है। हुक़ूमत और अपोज़िशन के दरमियान ऐसा टकराव कि अवाम के मसाइल पीछे छूट गए। लाखों वर्कर्स की नौकरी, हेल्थ सर्विसेज़ और तालीमी प्रोग्राम सब दांव पर लग गए हैं।
वॉशिंगटन की गलियों में ये बहस आम है कि अगर हर साल इसी तरह बजट पर सियासी बाज़ीगरी होती रही तो डेमोक्रेसी का असल मक़सद क्या रह जाएगा? शटडाउन दरअसल सिस्टम की कमजोरी को उजागर करता है।
ग्लोबल असर
अमेरिका की अर्थव्यवस्था में किसी भी तरह का झटका पूरी दुनिया को प्रभावित करता है।
वॉल स्ट्रीट में गिरावट का मतलब एशियाई मार्केट्स में भी हलचल।
डॉलर की मज़बूती या कमज़ोरी का असर भारत जैसे देशों की करेंसी पर।
IMF और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं में अमेरिकी योगदान भी देर से मिल सकता है।
यह सिर्फ अमेरिका का घरेलू संकट नहीं है, बल्कि एक ग्लोबल इवेंट है।
ट्रंप की पॉलिटिक्स: हार्डलाइन या स्ट्रैटेजी?
राष्ट्रपति ट्रंप इस शटडाउन को अपनी पॉलिटिकल स्ट्रैटेजी के तौर पर भी इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने पब्लिकली कहा कि “हमारे पास फंड नहीं है तो हमें ज़रूरी डिपार्टमेंट ही चलाने चाहिए, बाक़ी को बंद कर देना चाहिए।” यह बयान हार्डलाइनर समर्थकों को लुभाता है लेकिन मध्यम वर्गीय अमेरिकियों और डेमोक्रेट मतदाताओं के लिए डर पैदा करता है।
यहां सवाल यह उठता है कि क्या ट्रंप वाकई वित्तीय अनुशासन चाहते हैं या फिर शटडाउन को हथियार बनाकर अपने विरोधियों को झुकाना चाहते हैं?
अवाम की राय
गैलप और प्यू जैसे सर्वे बताते हैं कि आम अमेरिकियों की राय बहुत बंटी हुई है। कुछ लोग मानते हैं कि यह सख्ती ज़रूरी है ताकि खर्चे पर कंट्रोल हो सके। लेकिन बहुमत मानता है कि सरकार का बंद होना एक असफलता है।
न्यूयॉर्क में रहने वाली एक महिला टीचर का कहना था—”हमारे बच्चों की क्लास में सब्जेक्ट टूर कैंसिल हो गया क्योंकि नेशनल म्यूज़ियम बंद हो गया है। बजट पर लड़ाई का बोझ हम पर क्यों?”
अमरीकी इमेज पर असर
दुनिया भर में अमरीका को सुपरपावर समझा जाता है लेकिन बार-बार का शटडाउन उसकी इमेज को धुंधला कर देता है। जब अवामी खिदमात रुक जाती हैं और वर्कर्स सड़कों पर आ जाते हैं तो ये सवाल उठता है कि अगर अमरीका अपनी अवाम की बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पा रहा तो दूसरों को डेमोक्रेसी का सबक़ कैसे देगा?
डेमोक्रेसी ऑन टेस्ट
शटडाउन सिर्फ पैसे का मसला नहीं है, बल्कि यह विश्वसनीयता का भी सवाल है। जब दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र समय पर बजट पास नहीं कर पाती, तो यह असफलता का संकेत देती है। सहयोगी अमेरिका की स्थिरता पर सवाल उठाने लगते हैं, जबकि चीन और रूस जैसे विरोधी इसे प्रचार का साधन बनाते हैं।
कई मायनों में यह अमेरिकी लोकतंत्र का एक स्ट्रेस टेस्ट है। क्या यह सिस्टम अपनी जनता के लिए काम कर पाएगा, या अनंत राजनीतिक टकराव में फंस जाएगा?
लंबी लड़ाई या अस्थायी झटका?
पिछली बार 2018 में शटडाउन 34 दिन चला था। इस बार भी हालात गंभीर हैं। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों ही अपनी पोज़िशन से पीछे हटने को तैयार नहीं। ऐसे में संभावना है कि यह संकट लंबे समय तक खिंच सकता है।
अगर वाकई यह हफ़्तों तक चला तो अमेरिकी इकोनॉमी को अरबों डॉलर का नुकसान होगा। स्टॉक मार्केट हिलेगा और बेरोज़गारी बढ़ेगी।
नज़रिया
अमेरिका का शटडाउन लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी है। यह बताता है कि जब राजनीति व्यक्तिगत एजेंडा और पॉलिटिकल अहंकार पर आ जाती है तो जनता सबसे बड़ी क़ीमत चुकाती है।
आज वॉशिंगटन की लड़ाई सिर्फ रिपब्लिकन बनाम डेमोक्रेट नहीं है, बल्कि यह अवाम बनाम सत्ता की जिद भी है। सवाल यह है कि दुनिया की सबसे पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था कब समझेगी कि बजट और नीतियां जंग का मैदान नहीं, बल्कि समझौते और सहयोग का ज़रिया होनी चाहिए।