
अफ़ग़ानिस्तान में कम्युनिकेशन का अंधेरा डिजिटल हक़ से महरूम अफ़ग़ान जनता
अफ़ग़ानिस्तान में इंटरनेट ब्लैकआउट पर दुनिया भर में उठे सवाल
📍 काबुल | 1 अक्टूबर 2025
✍️ आसिफ़ ख़ान
तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क सेवाओं को लगभग पूरी तरह बंद कर दिया। आधिकारिक दावा यह है कि पुराना फाइबर-ऑप्टिक ढांचा जर्जर हो गया है और बदला जा रहा है, लेकिन हक़ीक़त कहीं ज़्यादा पेचीदा लगती है। शिक्षा, कारोबार, पत्रकारिता और इंसानी हक़ूक़ इस बंदी से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं।
अफ़ग़ानिस्तान एक बार फिर दुनिया से कट गया है। सोमवार से तालिबान ने देशभर में इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क बंद कर दिया। काबुल, हेरात, मजार-ए-शरीफ़, उरुज़गान जैसे बड़े शहर अचानक डिजिटल अंधेरे में डूब गए।
ब्लैकआउट की वजह
तालिबान का कहना है कि पुराने फाइबर-ऑप्टिक केबल घिस चुके हैं और उन्हें बदला जा रहा है। लेकिन लोकल इंटरनेट प्रोवाइडर्स, पत्रकार और साइबर निगरानी एजेंसियाँ मानती हैं कि यह सिर्फ़ बहाना है। नेटब्लॉक्स की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की इंटरनेट कनेक्टिविटी नॉर्मल लेवल के सिर्फ़ 14% पर रह गई।
यह आंकड़ा बताता है कि तकनीकी खराबी से ज़्यादा यह फैसला राजनीतिक मक़सद से लिया गया। तालिबान का इतिहास यही दिखाता है—जहाँ आवाज़ें उठें, वहाँ कम्युनिकेशन काट दो।
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असर लड़कियों की तालीम पर
हक़ीक़त यह है कि अफ़ग़ानिस्तान में सबसे बड़ी चोट लड़कियों और औरतों पर पड़ी है। स्कूल और यूनिवर्सिटी पर पहले से पाबंदी है। अब ऑनलाइन क्लास भी बंद।
कंधार की एक छात्रा ने कहा, “मैं इंग्लिश की क्लास ऑनलाइन ले रही थी। इंटरनेट बंद होते ही सब ठप हो गया।” एक दूसरी लड़की ने बताया, “मैं कोडिंग और ग्राफ़िक डिज़ाइन सीख रही थी। अब सब रुक गया।”
यानी, यह ब्लैकआउट सिर्फ़ नेटवर्क की बंदी नहीं, बल्कि ख़्वाबों की बंदी भी है।
कारोबार और रोज़गार पर चोट
मजार-ए-शरीफ़ का एक व्यापारी कहता है: “हम 21वीं सदी में हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि हम पीछे जा रहे हैं। मेरा पूरा बिज़नेस ऑनलाइन था। अब सब बर्बाद।”
बैंकिंग, पासपोर्ट दफ़्तर, सरकारी कामकाज सब ठप। एयरलाइन्स ने फ़्लाइट्स रोक दीं। लोकल दुकानदार से लेकर बड़े कारोबार तक, सब पर सीधा असर पड़ा।
इंसानी हक़ूक़ और मीडिया पर हमला
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के लोकल डायरेक्टर ने साफ़ कहा: “ऐसे फ़ैसले पत्रकारों और लोगों के सूचना पाने के हक़ को कुचलते हैं।”
तालिबान की नीयत समझनी होगी। “अनैतिक गतिविधियों” पर रोक का बहाना दिया गया है। लेकिन असल मक़सद है असंतोष दबाना और दुनिया से नज़रें चुराना।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
NetBlocks, TOLO News और अंतरराष्ट्रीय NGOs ने इसे बड़ा संकट बताया। सेव द चिल्ड्रन ने चेतावनी दी कि “कम्युनिकेशन चैनल बहाल करना इंसानी मदद पहुँचाने के लिए बेहद ज़रूरी है।”
कई देशों ने तालिबान से सवाल उठाए। आखिर क्यों एक पूरे मुल्क को डिजिटल दुनिया से काट दिया गया? तालिबान ने सफ़ाई दी कि अफ़वाहों पर यक़ीन न किया जाए। लेकिन किसी टाइमलाइन के बिना ये बयान और भी संदिग्ध हो जाता है।
डिजिटल अंधेरा और भविष्य
2024 तक अफ़ग़ानिस्तान में 9,350 किलोमीटर का फाइबर-ऑप्टिक नेटवर्क था। ये पिछले हुक़ूमतों ने बनवाया था ताकि मुल्क जुड़ सके। तालिबान ने अब इसे बंद करके यह मैसेज दिया है—टेक्नॉलजी हमारी शर्तों पर चलेगी, जनता की नहीं।
दुनिया 5G, AI और डिजिटल इकोनॉमी की बात कर रही है, और अफ़ग़ानिस्तान फिर से एक डिजिटल रेगिस्तान में बदल रहा है।
नतीजा
इंटरनेट बंद करना सिर्फ़ नेटवर्क काटना नहीं है। यह समाज को चुप कराना, औरतों की तालीम रोकना, कारोबार दबाना और दुनिया से कट जाना है। तालिबान के लिए यह सत्ता बचाने का हथियार है। मगर अफ़ग़ान जनता के लिए यह उनके मौलिक हक़ की सबसे बड़ी चोरी है।