
Ramlila performance Kidwai Nagar Dussehra celebration
रामलीला मंचन: धर्म, कला और एकता का उत्सव
दशहरा पर्व ने दिया सत्य और विजय का संदेश
📍 किदवई नगर, दक्षिणी दिल्ली
📅 2 अक्टूबर 2025
✍️ आसिफ़ ख़ान
किदवई नगर में दशहरा पर्व पर आयोजित भव्य रामलीला मंचन ने धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक एकता को सजीव रूप में प्रस्तुत किया। कुम्भकरण और मेघनाथ वध जैसे प्रसंगों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। सांसद बासुरी स्वराज की उपस्थिति और अनेक गणमान्य व्यक्तियों की सहभागिता ने इस आयोजन को और ऐतिहासिक बना दिया।
आस्था का उत्सव और परंपरा की विरासत
दशहरा केवल एक पर्व नहीं है, यह उस शाश्वत संदेश का प्रतीक है कि असत्य और अन्याय चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, धर्म और सत्य की विजय निश्चित है। किदवई नगर में दक्षिणी दिल्ली धार्मिक रामलीला समिति (पंजी.) के तत्वावधान में आयोजित रामलीला ने इस संदेश को नए अंदाज़ में जीवंत किया।
जब मंच पर कुम्भकरण वध का दृश्य प्रस्तुत हुआ तो दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे। विशालकाय पात्र का धराशायी होना केवल नाटकीय दृश्य नहीं था, बल्कि यह प्रतीक था कि आलस्य, लोभ और अहंकार का अंत अनिवार्य है। इसी प्रकार मेघनाथ वध का प्रसंग शौर्य, पराक्रम और धर्मनिष्ठा का प्रतीक बन गया। दर्शकों ने हर पल तालियों और जयकारों से कलाकारों का उत्साहवर्धन किया।
आयोजन की गरिमा और विशिष्ट उपस्थिति
इस आयोजन की गरिमा तब और बढ़ गई जब सांसद सुश्री बासुरी स्वराज मंच पर पहुँचीं। समिति द्वारा उनका सम्मान किया गया और उनके हाथों पुतला दहन संपन्न हुआ। यह क्षण केवल औपचारिकता नहीं था, बल्कि यह इस बात का संदेश था कि नेतृत्व और समाज एक साथ चलें तो पर्वों का महत्व और भी बढ़ जाता है।
मंचन प्रारंभ से पहले आचार्य अनुराग मिश्र और गुरुकुल के छात्रों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार और पूजा-अर्चना ने वातावरण को पवित्र और आध्यात्मिक बना दिया। मुख्य यज्ञमान के रूप में समिति के प्रधान सुनील मित्तल, महामंत्री राजेश सेनी, मा.चो. ओम प्रकाश, मा. सुरेश अग्रवाल और प्रमोद गुप्ता ने वैदिक अनुष्ठान में भाग लिया।
रामलीला का मंचन राघव जानकी आर्ट सोसायटी की टीम ने किया। उनकी कला, संवाद और मंच सज्जा ने दर्शकों को ऐसा अनुभव कराया मानो रामायण की कथाएँ फिर से जीवित हो गई हों।
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सामूहिक सहभागिता और जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी
इस धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन की गरिमा बढ़ाने के लिए अनेक प्रमुख व्यक्तित्व उपस्थित रहे। मंचन के दौरान समिति के पदाधिकारियों के साथ-साथ भाजपा जिला नेता राविद्र चौधरी, राघव पाल मण्डल अध्यक्ष, मानीनीय विनोद गुप्त, रमेश लाल गुप्त, महेंद्र अग्रवाल, अमित अग्रवाल, कोशल गुप्त, अशोक गोयल, विजय बंसल, केशव सेनी, विनीत मित्तल, और अशीश सिक्का सहित अनेक गणमान्य लोगों ने अपनी मौजूदगी से कार्यक्रम को और भव्य बनाया।
उनकी उपस्थिति यह दर्शाती है कि धार्मिक आयोजन केवल परंपरा तक सीमित नहीं रहते, बल्कि समाज के हर वर्ग और नेतृत्व को एक सूत्र में जोड़ते हैं। ऐसे पर्व सामाजिक एकता, आपसी भाईचारे और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण का माध्यम बनते हैं।
सामाजिक एकता का संदेश
दशहरा पर्व हमेशा से यह संदेश देता आया है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है। इस आयोजन ने यह स्पष्ट किया कि समाज को जोड़ने और युवाओं को प्रेरित करने के लिए धार्मिक पर्वों का महत्त्व आज भी उतना ही है जितना सदियों पहले था।
यह पंक्तियाँ आयोजन की भावना को सटीक रूप से बयान करती हैं:
“ज़ुल्म कितना भी बड़ा हो, इंसाफ़ की रोशनी उसे मिटा देती है।”
रामलीला का मंचन केवल मनोरंजन नहीं था, यह पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा और संस्कृति का जीवंत स्वरूप था। इसमें बच्चों ने अपने माता-पिता से यह सीखा कि अच्छाई की राह कठिन हो सकती है, लेकिन वही सच्चा मार्ग है।
कला और संस्कृति की भूमिका
रामलीला कलाकार केवल पात्र नहीं निभाते, वे धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को जीवित रखते हैं। समिति के प्रधान सुनील मित्तल ने अपने उद्बोधन में सही ही कहा कि कलाकारों की मेहनत समाज को जोड़ने का साधन बनती है। हर कलाकार जब राम, लक्ष्मण, सीता या रावण का रूप धारण करता है, तो वह केवल अभिनय नहीं करता, बल्कि श्रोताओं के दिलों में धार्मिक और नैतिक भावनाओं को जाग्रत करता है।
आधुनिक समाज में प्रासंगिकता
आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में, जहाँ लोग तकनीक और डिजिटल दुनिया में उलझे रहते हैं, ऐसे आयोजन हमें वास्तविक सामाजिक अनुभव कराते हैं। बच्चे और युवा जब मंच पर ‘रामायण’ के प्रसंग देखते हैं, तो उन्हें यह समझ आता है कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य सत्य, धर्म और कर्तव्य के पालन में है।
दर्शकों के बीच बैठे बुज़ुर्गों के चेहरे पर संतोष था, क्योंकि उनके सामने वही परंपरा जीवित थी जो उन्होंने अपने बचपन में देखी थी। वहीं युवाओं की आँखों में उत्साह था कि वे भी इस परंपरा का हिस्सा हैं। यही सांस्कृतिक धरोहर की असली ताक़त है—पीढ़ियों को जोड़ने वाली डोर।
राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संतुलन
ऐसे धार्मिक आयोजन राजनीति और समाज को एक मंच पर लाते हैं। नेताओं की मौजूदगी यह बताती है कि सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण केवल समाज की नहीं, बल्कि नेतृत्व की भी ज़िम्मेदारी है। यह आयोजन धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक परंपरा और सामाजिक एकता का सुंदर संगम था।