
Gaza peace plan with Trump ultimatum, Hamas agreeing to hostage release, Modi supporting peace efforts
ट्रंप की शांति योजना पर सहमत हुआ हमास, मोदी बोले- भारत देगा पूरा समर्थन
गाज़ा संकट में ट्रंप की एंट्री, शांति प्रक्रिया पर दुनिया की नज़रें
📍 नई दिल्ली | 04 अक्टूबर 2025
✍️ आसिफ़ ख़ान
गाज़ा युद्ध को थामने की कोशिश में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीस सूत्रीय शांति योजना रखी। हमास ने इस पर आंशिक सहमति जताते हुए सभी बंधकों की रिहाई का ऐलान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कोशिश को सराहते हुए कहा कि भारत स्थायी और न्यायपूर्ण अमन के लिए हर प्रयास का समर्थन करेगा।
मिडिल ईस्ट में लंबे अरसे से जारी संघर्ष एक बार फिर वैश्विक सुर्खियों में है। गाज़ा की धूल और धुएँ के दरमियान अचानक उम्मीद की किरण तब जगी जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बीस सूत्रीय शांति योजना पेश की। इस योजना में सबसे अहम बिंदु था हमास के कब्ज़े में मौजूद सभी इजरायली बंधकों की रिहाई और गाज़ा प्रशासन को अंतरराष्ट्रीय निगरानी में सौंपने का प्रस्ताव।
हमास ने शुरुआत में इस पर सख़्त रुख दिखाया, मगर ट्रंप के अल्टीमेटम के बाद उसका सुर नरम पड़ा। उसने कहा कि वह बंधकों को छोड़ने को तैयार है, लेकिन कई और शर्तों पर बातचीत चाहता है। यह घटनाक्रम न केवल गाज़ा बल्कि पूरे विश्व की राजनीति में नई हलचल लेकर आया है।
ट्रंप का अल्टीमेटम और हमास की बैकफुट स्थिति
ट्रंप ने हमास को साफ संदेश दिया कि रविवार शाम तक उसका जवाब चाहिए, वरना हालात और बिगड़ेंगे। इस अल्टीमेटम ने हमास पर दबाव बनाया। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहले से ही अलग-थलग पड़े संगठन ने अंततः अपनी सहमति दी। उसने ऐलान किया कि चाहे बंधक ज़िंदा हों या मृत, सबको रिहा किया जाएगा।
यह ऐलान अपने आप में बड़ा मोड़ है। अक्टूबर 2023 के हमले के बाद से सैकड़ों परिवार इंतज़ार कर रहे थे कि उनके अपनों की कोई ख़बर मिले। अब अगर यह रिहाई अमल में आती है तो यह संघर्ष के सबसे दर्दनाक पहलू पर मरहम जैसा होगा।
ट्रंप का सोशल मीडिया बयान
ट्रंप ने अपनी पोस्ट में लिखा कि हमास का हालिया बयान दर्शाता है कि वे स्थायी शांति के लिए तैयार हैं। उन्होंने इजरायल से भी बमबारी रोकने की अपील की ताकि बंधकों को सुरक्षित बाहर निकाला जा सके।
ट्रंप का अंदाज़ हमेशा से विवादास्पद और आक्रामक रहा है। मगर इस बार उन्होंने धमकी और आश्वासन दोनों का मिला-जुला प्रयोग किया। शायद यही वजह रही कि हमास पीछे हटा।
मोदी का समर्थन
भारत ने ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीन और इजरायल दोनों के साथ संबंध बनाए रखे हैं। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा कि गाज़ा में शांति प्रयासों में निर्णायक प्रगति का स्वागत किया जाएगा। उन्होंने ट्रंप की पहल को सराहा और कहा कि भारत हर उस कदम का साथ देगा जो स्थायी और न्यायपूर्ण अमन की दिशा में उठाया जाएगा।
मोदी का बयान केवल कूटनीतिक रस्म नहीं था। भारत, जो ऊर्जा और प्रवासी दोनों मामलों में अरब दुनिया से गहरे जुड़ा है, उसके लिए मध्य पूर्व की स्थिरता बेहद अहम है।
हमास का आंशिक समर्थन क्यों अहम है
हमास की ओर से बंधक रिहाई पर हामी भरना एक बड़ा संकेत है। यह दिखाता है कि संगठन अंतरराष्ट्रीय दबाव को अनदेखा नहीं कर सकता। हालाँकि उसने यह भी साफ किया कि अन्य शर्तों पर बातचीत ज़रूरी होगी।
यानी अभी तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है। गाज़ा प्रशासन किसके हाथों में जाएगा, सुरक्षा व्यवस्थाएँ कौन देखेगा, पुनर्निर्माण का ख़र्च कौन उठाएगा — इन सवालों का जवाब अभी बाकी है।
वैश्विक प्रतिक्रिया
अरब देशों में मिश्रित प्रतिक्रिया दिखी। कुछ सरकारों ने इसे सकारात्मक कदम बताया, तो कुछ ने कहा कि ट्रंप की योजना फिलिस्तीनी जनता की वास्तविक माँगों को नज़रअंदाज़ करती है।
इजरायल की ओर से आधिकारिक बयान सतर्क था। सरकार ने कहा कि जब तक बंधक सुरक्षित वापस नहीं आ जाते, तब तक किसी निष्कर्ष पर पहुँचना जल्दबाज़ी होगी।
यूरोपीय संघ ने भी इसे वेलकम किया और कहा कि हर हाल में मानवीय संकट को खत्म करना ज़रूरी है।
एडिटोरियल एनालिसिस
इस पूरे घटनाक्रम में तीन परतें हैं।
पहली परत, मानवीय राहत। बंधकों की रिहाई से सीधे तौर पर पीड़ित परिवारों को राहत मिलेगी।
दूसरी परत, कूटनीति। ट्रंप ने धमकी और योजना का मिश्रण करके बातचीत का नया दरवाज़ा खोला।
तीसरी परत, राजनीतिक छवि। ट्रंप आने वाले चुनावी माहौल में इसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर भुनाना चाहेंगे। अगर योजना सफल होती है तो उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि मज़बूत होगी।
मगर चुनौतियाँ कम नहीं हैं। गाज़ा की ध्वस्त इमारतें, बेघर लोग, बेरोज़गार नौजवान और गुस्से से भरे समुदाय—इन सबके बीच स्थायी अमन आसान नहीं। केवल काग़ज़ी समझौते से नफ़रत और अविश्वास मिटने वाला नहीं।
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भविष्य की चुनौतियाँ
कार्यान्वयन: बंधकों की रिहाई का ऐलान हो चुका, लेकिन असल मायने तभी होंगे जब यह सुरक्षित और पारदर्शी ढंग से पूरा हो।
गाज़ा प्रशासन: अंतरराष्ट्रीय निगरानी कौन करेगा? क्या संयुक्त राष्ट्र या किसी क्षेत्रीय गठबंधन को जिम्मेदारी दी जाएगी?
इजरायल की भूमिका: क्या वह बमबारी पूरी तरह रोकेगा? या केवल अस्थायी विराम पर राज़ी होगा?
फिलिस्तीनी जनता की आवाज़: अमन तभी टिकेगा जब उनकी राजनीतिक आकांक्षाओं को गंभीरता से सुना जाए।
नतीजा
गाज़ा की ज़मीन आज भी खून और बारूद से सराबोर है। लेकिन इस धुंध में एक किरण दिखाई दी है। ट्रंप का प्लान कामयाब होता है या नहीं, यह आने वाले हफ्तों में साफ होगा। पर इतना तय है कि यह पहल संघर्ष को नई दिशा दे सकती है।
भारत की ओर से मिला समर्थन इस पहल को और मजबूती देगा। सवाल यह है कि क्या हमास और इजरायल दोनों अपने पुराने ज़ख्म भुलाकर एक नए सफ़े की ओर बढ़ेंगे?