
Gaza city sunrise representing new hope after Trump’s Middle East Peace Plan announcement.
अमेरिका का Peace Plan:क्या मुमकिन है Real Ceasefire?
मिडिल ईस्ट की सियासत में ट्रंप की चाल या राहत का रास्ता?
📍 वॉशिंगटन डीसी / यरुशलम / ग़ज़ा
📅 5 अक्टूबर 2025
🖋️ Asif Khan
US Peace Plan से उभरती नई सुबह — ग़ज़ा, इज़रायल और Middle East की नई सियासी तस्वीर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को दुनिया को चौंकाते हुए कहा कि इज़रायल अब ग़ज़ा से अपनी “वापसी रेखा” पर राज़ी हो गया है।
अगर हमास इस समझौते को मंज़ूरी देता है, तो तुरंत युद्धविराम लागू होगा।
यह बयान एक तरफ़ जंग की थकान का संकेत देता है, दूसरी तरफ़ शांति की संभावनाओं की नयी राह खोलता है।
मिडिल ईस्ट की मिट्टी फिर सुलग रही है, मगर इस बार राख के नीचे उम्मीद की नमी महसूस की जा सकती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जो नया Peace Plan पेश किया है, उसने ग़ज़ा की सड़कों से लेकर व्हाइट हाउस तक नई हलचल पैदा कर दी है।
ट्रंप का यह ऐलान, कि “इज़रायल वापसी रेखा पर राज़ी है और हमास को केवल हाँ कहनी है”, सुनने में सरल लगता है, मगर इसके भीतर गहरे राजनीतिक अर्थ छिपे हैं।
इज़रायली प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतन्याहू ने इसे “बहुत बड़ी उपलब्धि के कगार पर” बताया है।
उधर हमास ने भी संकेत दिया है कि वो जीवित और मृत बंधकों को रिहा करने को तैयार है।
इससे जंग की धूल में एक बार फिर शांति का शब्द गूंजा है — सलाम, अमन, शांति।
ट्रंप की चाल या Peace का प्लान?
ट्रंप का यह कदम केवल मानवीय नहीं बल्कि Geo-Political Strategy भी है।
अमेरिका लंबे वक्त से मिडिल ईस्ट में अपने प्रभाव को फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।
बाइडन दौर के बाद ट्रंप का लौटना उस पुराने “Deal-Maker” अमेरिकी स्टाइल की याद दिलाता है —
“Make a Deal, Make it Loud.”
ट्रंप ने Truth Social पर जो नक़्शा शेयर किया, उसमें इज़रायली सेना की सीमाएँ
ग़ज़ा के दक्षिण में 6.5 किलोमीटर, बीच में 2 किमी, और उत्तर में 3.5 किमी तक सीमित दिखायी गयी हैं।
यह Partial Withdrawal योजना इज़रायल को “Security Assurance” देती है और हमास को “Existence Guarantee”।
मगर सवाल यही है — क्या यह सच में शांति का रास्ता है, या एक और राजनीतिक शतरंज की चाल?
हमास का जवाब और जनता की उम्मीदें
हमास ने इस Plan पर “Positive Response” दिया है।
उसने कहा कि वह बंधकों को रिहा करेगा और बातचीत जारी रखेगा,
मगर Disarmament यानी “हथियार डालने” की बात पर अब भी चुप है।
यह वही बिंदु है जहाँ से शांति की डोर फिर उलझ सकती है।
ग़ज़ा के लोगों के लिए यह मौका किसी चमत्कार से कम नहीं।
सालों की तबाही, हवाई हमलों, और भूख के बाद,
अगर एक वास्तविक Ceasefire होता है, तो शायद ये पीढ़ी पहली बार बिना सायरन की नींद सोएगी।
ग़ज़ा की एक महिला ने कहा —
“अगर यह सच हुआ, तो हम अपनी दीवारों पर फिर फूलों के रंग लगाएंगे,
न कि धुएँ का साया।”
नेतन्याहू की शर्तें और IDF की मौजूदगी
नेतन्याहू ने साफ कहा —
“हमास को Disarm किया जाएगा, और ग़ज़ा हथियारमुक्त ज़ोन बनेगा।”
यानि इज़रायल अपने “Security Umbrella” को पूरी तरह नहीं हटाने वाला।
वो कहता है — ‘IDF ग़ज़ा के भीतर और आसपास मौजूद रहेगी।’
यह वही पंक्ति है जो हमास को असहज करती है,
क्योंकि यह “Peace with Presence” का मॉडल है,
ना कि “Peace with Freedom”।
मध्यस्थता और मिस्र की भूमिका
अब सबकी नज़रें मिस्र पर हैं, जहाँ सोमवार को शांति वार्ता प्रस्तावित है।
मिस्र लंबे समय से इस संघर्ष में मध्यस्थ की भूमिका निभाता रहा है —
कभी चुपचाप, कभी पर्दे के पीछे।
काहिरा की गलियों में कूटनीति की फुसफुसाहट गूंज रही है —
क्या यह वह पल है जहाँ Cairo again becomes the Capital of Peace?
मानवीय संकट की तस्वीर
ग़ज़ा की तबाही किसी आँकड़े से बयाँ नहीं हो सकती।
67,000 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं,
90% से अधिक इमारतें मलबे में बदल चुकी हैं।
बिजली, पानी और दवाइयाँ दुर्लभ हैं।
इन सबके बीच ट्रंप का यह ऐलान आशा का कागज़ है,
जो अगर न भिगा, तो शायद कुछ जख़्म भर सके।
नई विश्व राजनीति की झलक
ट्रंप की यह पहल केवल ग़ज़ा की नहीं, बल्कि नई World Order की कहानी है।
अमेरिका, रूस, चीन और ईरान — सब इस शांति समीकरण में अपनी जगह ढूंढ रहे हैं।
जहाँ हर देश चाहता है कि उसे “Mediator” कहा जाए,
मगर असल में सब “Beneficiary” बनना चाहते हैं।
नजरिया — क्या यह अमन का सच है या एक और वादा?
इतिहास गवाह है कि मध्यपूर्व में हर “Ceasefire” एक “Pause” रहा है,
Peace नहीं।
लेकिन इस बार अगर सच में दोनों पक्षों ने दिल से ‘हाँ’ कहा,
तो शायद यह वह अध्याय होगा जहाँ अमन का शब्द, ताक़त के शोर से बड़ा होगा।
ग़ज़ा के आसमान में धुआँ कम हुआ है,
लोग फिर से खुले में सांस लेने लगे हैं।
ट्रंप का Plan चाहे Self-Interest से जन्मा हो,
मगर अगर इससे एक बच्चे की जान बचे,
तो शायद यह राजनीति से ऊपर की इंसानियत है।







