
Uttar Pradesh politics, OBC caste focus, Congress-SP alliance, BJP concerns
पिछड़ों की गोलबंदी से भाजपा पर दबाव
कांग्रेस की रणनीति से बदली यूपी की हवा
📍लखनऊ, 05 अक्टूबर 2025। शाह टाइम्स ब्यूरो
यूपी में कांग्रेस और सपा पिछड़े वर्ग की गोलबंदी में सक्रिय हो गई हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल जयसिंह, प्रदेश अध्यक्ष मनोज यादव और शीर्ष नेतृत्व के निर्देशों से यह अभियान और तेज़ होने जा रहा है। भाजपा, जिसने 2013 से धार्मिक ध्रुवीकरण को आधार बनाकर सत्ता पर कब्ज़ा किया था, अब बेरोज़गारी, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर घिरी नज़र आ रही है।
सामाजिक न्याय की राजनीति ने बदल दिया समीकरण
उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है। 2024 लोकसभा चुनाव में उम्मीद से ज़्यादा सीटें जीतकर सपा उत्साहित है और अब कांग्रेस भी मैदान में सक्रिय हो गई है। खास बात यह है कि दोनों दल पिछड़े वर्ग को अपनी राजनीति के केन्द्र में रखकर आगे बढ़ रहे हैं। यह वही वर्ग है जिसने लंबे समय तक भाजपा के लिए समर्थन का काम किया।
भाजपा की चुनौती
2013 में जब भाजपा ने देशभर की राजनीति में कदम बढ़ाया था, तो उसने धार्मिक ध्रुवीकरण के ज़रिए माहौल बनाया। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति ने पार्टी को सत्ता दिलाई। लेकिन अब जनता सवाल पूछ रही है।
बेरोज़गारी अपने चरम पर है। महंगाई आम आदमी की कमर तोड़ रही है। किसानों को राहत नहीं मिल रही। अफसरशाही बेलगाम है। अफसर ज़मीनों पर कब्ज़ा कर रहे हैं और अपनी दौलत रियल एस्टेट में लगा रहे हैं। इन मामलों पर जब सवाल उठते हैं, तो भाजपा का जवाब वही पुराना—हिंदू-मुसलमान।
लेकिन इस बार पिछड़ा वर्ग कह रहा है कि उसे जुमले नहीं चाहिए, बल्कि रोजगार और सम्मान चाहिए।
कांग्रेस की सक्रियता
कांग्रेस ने हाल के दिनों में अपने “पिछड़ा वर्ग विभाग” को नई ऊर्जा दी है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल जयसिंह ने यूपी इकाई को निर्देश दिए हैं कि सामाजिक न्याय से जुड़े कार्यक्रम तेज़ किए जाएं।
प्रदेश स्तर पर इस जिम्मेदारी को संभाल रहे मनोज यादव, जो पिछड़ा वर्ग विभाग के प्रदेश अध्यक्ष हैं, उन्होंने बताया कि कार्यकारिणी की सूची तैयार कर ली गई है। इसमें हर जाति के लोगों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। जैसे ही शीर्ष नेतृत्व की मंजूरी मिलती है, कार्यकारिणी घोषित होगी और उसके बाद हर मंडल में सम्मेलन होंगे।
सपा का आधार
सपा पहले से ही यादव और कई अन्य जातीय समूहों पर मजबूत पकड़ रखती है। अखिलेश यादव लगातार पिछड़े वर्ग के मुद्दों को उठाते रहे हैं। अब अगर कांग्रेस और सपा का तालमेल सही तरीके से आगे बढ़ा, तो यह भाजपा के लिए गंभीर चुनौती होगी।
विशेषकर पूर्वांचल और मध्य यूपी जैसे क्षेत्रों में, जहाँ भाजपा ने धार्मिक ध्रुवीकरण के सहारे भारी जीत दर्ज की थी, वहां कांग्रेस और सपा की साझेदारी गेमचेंजर साबित हो सकती है।
जनता की नब्ज़
युवा लगातार यह सवाल कर रहे हैं कि नौकरी क्यों नहीं मिल रही। किसान पूछ रहे हैं कि उपज का दाम क्यों नहीं मिलता। व्यापारी शिकायत कर रहे हैं कि कारोबार चौपट हो गया है।
लोग कहते हैं—“अब हिन्दू-मुसलमान के मुद्दे से पेट नहीं भरता। हमें रोज़गार चाहिए, राहत चाहिए, महंगाई से निजात चाहिए।” यही माहौल भाजपा की सबसे बड़ी परेशानी है।
भ्रष्टाचार और प्रशासन
जनपदों में तैनात अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। लोग कहते हैं कि अफसर आम जनता की ज़मीन पर कब्ज़े करा रहे हैं और रियल एस्टेट कारोबार में मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।
जब ऐसे मामलों पर हंगामा होता है, तो सत्ता पक्ष वातावरण को बदलने के लिए धार्मिक विवाद छेड़ देता है। लेकिन यह तरीका अब असरदार नहीं रह गया है।
कांग्रेस की नई संरचना
मनोज यादव ने कहा कि सम्मेलन की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। कार्यकारिणी में हर जातीय समूह को जगह दी गई है। राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल जयसिंह लगातार निगरानी कर रहे हैं।
लखनऊ से शुरू होकर मंडलवार सम्मेलन होंगे। पार्टी कार्यकर्ताओं को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे गांव-गांव जाकर जनता को समझाएं कि कांग्रेस किस तरह से संसद और सड़क दोनों पर उनके हक की लड़ाई लड़ रही है।
सियासी असर
भाजपा के लिए यह सबसे बड़ी चिंता है कि उसका वोट बैंक खिसक सकता है। पिछड़ा वर्ग, जिसकी संख्या सबसे ज्यादा है, अगर एकजुट होकर कांग्रेस और सपा के साथ खड़ा हो गया तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
सियासत के जानकार मानते हैं कि 2027 का विधानसभा चुनाव पूरी तरह इसी वर्ग के इर्द-गिर्द लड़ा जाएगा।
निष्कर्ष
यूपी की राजनीति अब नए मोड़ पर है। धार्मिक बहसों की बजाय सामाजिक न्याय और रोज़गार जैसे मुद्दे छा रहे हैं। कांग्रेस और सपा की रणनीति भाजपा को परेशान कर रही है। नामों की मौजूदगी इस बात को पुख्ता करती है कि यह लड़ाई अब संगठनों और चेहरों के साथ जनता के असली मुद्दों पर है।