
Uttar Pradesh BJP SP political rivalry corruption issue debate
सत्ता बनाम विपक्ष: आरोप, जवाब और जनता का सवाल
राजनीति की चालबाज़ियाँ और जनता की बेचैनी
📍 लखनऊ
📅 05 अक्तूबर 2025
✍️ असिफ़ खान
उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच टकराव अब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर और तेज़ हो गया है। अखिलेश यादव लगातार आरोप लगा रहे हैं कि सरकारी मशीनरी लूट और बेईमानी में डूबी है। भाजपा इन आरोपों को विपक्ष की हताशा बता रही है। सवाल है कि जनता किस पर भरोसा करे और चुनावी राजनीति किस दिशा में जाएगी।
भाजपा–सपा की जंग में करप्शन सबसे बड़ा मुद्दा
उत्तर प्रदेश की राजनीति हमेशा से सत्ता और विपक्ष के बीच कड़े मुकाबले के लिए जानी जाती रही है। पिछले कुछ वर्षों में यह प्रतिस्पर्धा और तीखी हुई है। एक तरफ़ भारतीय जनता पार्टी है, जो लगातार सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी है, जो हर मोर्चे पर सत्ता को चुनौती देना चाहती है।
अखिलेश यादव ने हाल ही में जिस अंदाज़ में बयान दिया, उसने पूरे राजनीतिक माहौल में हलचल मचा दी। उनका आरोप है कि प्रदेश की सरकार ने पूरे सरकारी ढांचे को भ्रष्टाचार से भर दिया है। बजट का बंदरबांट हो रहा है, अधिकारी और नेता मिलकर जनता के पैसों की लूट में लगे हैं। ज़मीनों की ख़रीद-फ़रोख़्त से लेकर अवैध खनन तक, हर जगह सत्ता संरक्षित गड़बड़ियाँ सामने आ रही हैं।
सत्ता की आलोचना और विपक्ष का हमला
अखिलेश यादव का कहना है कि जीएसटी विभाग से जुड़े अफ़सरों ने सैकड़ों करोड़ की काली कमाई की और बड़े पैमाने पर ज़मीनें ख़रीदीं। बेनामी संपत्तियों का खेल तेज़ी से बढ़ा। उनका आरोप है कि यह सब सरकार की मिलीभगत से हो रहा है। यही वजह है कि प्रदेश में हर तरफ़ करप्शन की चर्चा है।
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दूसरी ओर भाजपा नेताओं का कहना है कि विपक्ष केवल झूठ फैलाकर जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है। उनका दावा है कि प्रदेश में विकास की योजनाएँ तेज़ी से चल रही हैं। सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं पर बड़ा काम हो रहा है। भाजपा यह भी कहती है कि विपक्ष को डर है कि अगर विकास का यह सिलसिला जारी रहा तो उनकी सियासत हमेशा के लिए हाशिए पर चली जाएगी।
करप्शन के किस्से और हक़ीक़त
ज़मीनी स्तर पर देखें तो हालात उतने आसान नहीं हैं। कई ज़िलों में निर्माण कार्य अधूरे पड़े हैं। जल जीवन मिशन जैसी योजनाओं में गड़बड़ियों की रिपोर्ट बार-बार सामने आती रही है। पाइपलाइन टूटने से लेकर सड़कों के गड्ढामुक्त अभियान तक, जनता सवाल उठा रही है। भाजपा इन खामियों को स्वीकार करने के बजाय इन्हें विपक्षी साज़िश बताती है।
एक किसान कहता है कि उसकी ज़मीन पर ज़बरन कब्ज़ा कर लिया गया। एक छोटे व्यापारी का कहना है कि अफ़सर रिश्वत माँगे बिना कोई काम नहीं करते। ये सिर्फ़ शिकायतें नहीं हैं, बल्कि आम जनता का अनुभव बन चुकी हैं। यही वजह है कि करप्शन चुनावी मुद्दा बन रहा है।
भाजपा–सपा प्रतिद्वंद्विता का असर
इस टकराव का सबसे बड़ा असर 2027 के चुनावों पर पड़ेगा। भाजपा का दावा है कि योगी सरकार ने प्रदेश को माफ़ियाओं से मुक्त कराया। वहीं सपा का आरोप है कि भाजपा राज में नए माफ़िया पैदा हुए और सरकारी संरक्षण में पनपे।
राजनीति में यह आम बात है कि सत्ता पक्ष अपने कामकाज को उपलब्धि बताता है और विपक्ष उसी को विफलता करार देता है। मगर जब मुद्दा करप्शन का हो, तो जनता का गुस्सा बढ़ना स्वाभाविक है। चुनावी मैदान में यही गुस्सा किसके ख़िलाफ़ निकलेगा, यह देखने वाली बात होगी।
मीडिया और जनता की धारणा
मीडिया में लगातार भ्रष्टाचार की ख़बरें सामने आती हैं। कभी ज़मीन की रजिस्ट्री में गड़बड़ी, कभी खनन माफ़िया, तो कभी अफ़सरों की अरबों की बेनामी संपत्तियाँ। सोशल मीडिया पर युवा तबका इन ख़बरों पर खुलकर चर्चा करता है। भाजपा समर्थक इसे विपक्ष का प्रोपेगेंडा बताते हैं, जबकि विपक्षी इसे जनता की आवाज़ मानते हैं।
इस माहौल में जनता असमंजस में है। एक तरफ़ विकास की बात, दूसरी ओर भ्रष्टाचार के किस्से। आम नागरिक के लिए यह समझना आसान नहीं कि हक़ीक़त क्या है। लेकिन चुनावी वक़्त आने पर वही जनता बैलेट बॉक्स में अपना फ़ैसला सुनाती है।
भविष्य की राजनीति
अगर विपक्ष अपने आरोपों को सबूतों के साथ पेश करता है, तो भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वहीं अगर भाजपा यह साबित करने में कामयाब रहती है कि यह सब महज़ राजनीति है, तो जनता का भरोसा बरकरार रह सकता है।
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दोनों दल एक-दूसरे को घेर रहे हैं। मगर असली सवाल यह है कि क्या जनता को राहत मिलेगी? क्या वाक़ई भ्रष्टाचार रुकेगा या यह सिर्फ़ चुनावी नारों तक सीमित रहेगा?
प्रदेश की राजनीति इस समय एक ऐसे मोड़ पर है जहाँ पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदारी जैसे शब्द सबसे अहम हो गए हैं। जो दल इन मूल्यों पर जनता का भरोसा जीत लेगा, वही भविष्य की सत्ता की कुर्सी पर बैठेगा।